Imroz the poet

इमरोज़-एक जश्न अपने रंग, अपनी रौशनी का

इमरोज़ की मिट्टी का गुदाज़, लोच और लचक देखकर हैरत होती है कि कोई इतना सहज भी हो सकता है। लोग जो भी बातें करते रहें, वो दर-अस्ल इमरोज़ को अमृता के चश्मे के थ्रू देख रहे होते हैं जबकि इमरोज़ किसी भी परछाईं से अलग अपने वजूद, अपने मर्कज़ से मुकम्मल तौर पर जुड़े रहे हैं।

Dil ke Mausam by Azra Naqvi

दिल के मौसम: अज़रा नक़्वी की शायरी

अज़रा नक़वी उर्दू अदब में एक जानी-पहचानी आवाज़ का नाम है। वो एक शायरा होने के अलावा तर्जुमा निगार और कहानी कार भी हैं। उन्होंने जदीद अरबी अदब के फ़िक्शन और नॉन फ़िक्शन दोनों को उर्दू में तर्जुमा किया है। बहरकैफ़ वो ग़ज़ल और नज़्म दोनों असनाफ़ में मलका रखती हैं। उन्होंने बड़ी उम्दा और एक नई कैफ़ियत से भरी हुई नज़्मों को तख़लीक़ किया है।

Karbala---Blog-Cover

Components of Marsiya

explained through Meer Anees's poetry

Arab se ye shayari jab Iran pahunchi tou is ne mazeed farogh paya lekin marsiya ko asl urooj Urdu zaban mein hi mila. Meer Anees aur Mirza Dabeer ne apni mehnat-o-riyaazat se Marisya ko uski bulandi par pahunchaya.

A blog about patience

تخریب کے پردے میں تعمیر کا ساماں ہوتا ہے

کہیں ایسا تو نہیں، پھولوں نے، کلیوں نے،پتّوں نے، شاخوں نے ،چرند نے، پرند نے، مُرغ وماہی نے خالق ِ کائنات کے حضور ایک عرضی بھیجی ہو، التجا کی ہو کہ ربّا ! تیری اِس اَشرفُ المخلوقات سے تو ہم بہت تنگ آگئے ہیں۔ تیرا یہ خاکی کچھ زیادہ ہی سرکش ہو گیا ہے زمین و آسمان سب جگہ حاوی ہو گیا ہے۔ سمندر کے سینے پر بڑے بڑے جہاز اس تیز رفتار سے لے جاتا ہے کہ سمندر کی تہہ میں بھی مچھلیاں خوفزدہ ہو جاتی ہیں۔ کبھی کچھ گندگی ڈال جاتا ہے، کبھی کچھ۔ زمین و آسماں میں دھواں اِس قدر پھیلاتا ہے کہ بعض وقت سانس لینادشوار ہو جاتا ہے۔

PANDIT VIDYA RATTAN ASI Blog

ज़िंदगी की तल्ख़ सच्चाइयों का शाइर: पं. विद्या रतन आसी

आसी ने ज़िंदगी की महरूमियों को क़बूल ज़रूर किया लेकिन कभी हालात के आगे झुके नहीं. कभी ख़ुदकुशी करने की नहीं सोची. मुस्तक़िल उदासियों की सौगात ने आसी को हस्सास से हस्सासतर बनाया और वे राह में आने वाले हर अजनबी से पूरे ख़ुलूस और मुहब्बत से मिले और यही वजह है कि उनसे मिलने वाला हर अजनबी उनका अपना बन गया.

Pash the revolutionary poet

एक इंक़लाबी की डायरी

पाश ने मुसलसल डायरी नहीं लिखी। उनकी डायरी कई बरसों पर फैली हुई है। बेशतर साल की शुरूआत में डायरी लिखना शुरूअ किया और फिर बंद कर दिया। पाश की तमाम डायरियाँ संपादित हो कर पंजाबी में प्रकाशित हो चुकी हैं और इनका संपादन अमोलक सिंह ने किया है।

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