Sir Syed and Ghalib

सर सय्यद और ग़ालिब के बीच की नाराज़गी, जो किताब से शुरू हुई और बोतल पर ख़त्म हुई

ऐसे वक़्त में जब हिन्दोस्तान पर अंग्रेज़ों का तसल्लुत क़ायम हो चुका था, तमाम समाजी और सियासी इदारों में उनके अपने बनाए हुए उसूल और क़वानीन लागू किए जा चुके थे, स्थानीय सल्तनतें पतन के आख़िरी मरहले में थीं, सर सय्यद ने बीते हुए दौर की भूली हुई कहानियों को नये सिरे से पढ़ना और याद करना शुरू किया।

वाक़िया ये था कि दिल्ली के एक विद्या-प्रेमी व्यापारी ने सर सय्यद को मश्वरा दिया कि वे अकबर के समय की महत्वपूर्ण किताब ‘आईन-ए-अकबरी’ का संकलन व सम्पादन करें। दरबारी विद्वान अबुल फ़ज़ल की लिखी हुई ये किताब अकबर के समय के इतिहास, संस्कृति, सभ्यता, तरीक़ा-ए-हुकूमत और दरबार की तमाम हलचलों का विस्तृत बयान थी।

सर सैयद ने मुआवज़े की एक विशेष राशि के बदले ये काम शुरू कर दिया।

सर सय्यद ने ‘आईन-ए-अकबरी’ का संकलन व सम्पादन दिल्ली के एक विद्या-प्रेमी व्यापारी के मश्वरे से किया था।

माज़ी की अज़्मतों से शनासाई और उनके प्रचार का सर सय्यद के लिए ये दूसरा मौक़ा था। इससे पहले वे ‘आसार-उस-सनादीद’ जैसी अहम किताब लिख चुके थे। ‘आसार-उस-सनादीद’ दिल्ली शहर की पुरानी इमारतों के इतिहास, भूगोल और उनसे जुड़ी सभ्यता का एक विस्तृत बयान थी।

‘आईन-ए-अकबरी’ के प्रकाशन से पहले सर सय्यद को ख़्याल आया कि मिर्ज़ा ग़ालिब से इस किताब की भूमिका लिखवाई जाए। उन्होंने मिर्ज़ा से फ़र्माइश की कि वे इस अहम काम पर अपनी राय दें।

सर सय्यद की फ़र्माइश पर ग़ालिब ने एक मसनवी लिख कर भेज दी। ये मसनवी ‘तक़रीज़-ए-आईन-ए-अकबरी’ के नाम से ग़ालिब के फ़ारसी दीवान में शामिल है।

इस मसनवी में ग़ालिब ने सर सय्यद के अतीत-प्रेम को कड़ी आलोचना का निशाना बनाया और इस बात पर अफ़सोस का इज़हार किया कि सर सय्यद जैसा ज़हीन शख़्स घिसे-पिटे पुराने पाठों में अपना वक़्त बर्बाद कर रहा है। ग़ालिब को अकबर के समय के क़वानीन अंग्रेज़ों के बनाये क़ानून के सामने बहुत बे-वक़अत नज़र आते थे। ग़ालिब ने लिखा,

“मुर्दा परवरदन मुबारक कार नीस्त” (यानी मरे हुए लोगों की परस्तिश कोई अच्छा काम नहीं है)

ग़ालिब के ख़याल में ये किताब इतनी अहम नहीं थी कि इसको ठीक करने में सर सय्यद जैसा शख़्स अपाना इतना समय ख़राब करे।

अबुल फ़ज़ल की लिखी किताब ‘आईन-ए-अकबरी’ अकबर के समय के इतिहास, संस्कृति, सभ्यता, तरीक़ा-ए-हुकूमत और दरबार की तमाम हलचलों का विस्तृत बयान है।

ग़ालिब रौशन ख़याली का गहरा एहसास रखने वालों में सबसे आगे थे। उनके सामने अंग्रेज़ों के रोशन ज़हन और उनकी प्रगतिशील फ़िक्र के नमूने थे। वो चाहते थे हिन्दुस्तानी क़ौम को अपने अतीत में जीने के बजाय नए ज्ञान और नई ज़िंदगी का साथ देना चाहिए।

इस मसनवी में ग़ालिब ने सर सय्यद के काम पर इतनी आलोचना नहीं की जितनी उस घिसे-पिटे आईन (क़ानून) पर जो उनकी राय में उस समय अपना अर्थ खो चुका था।

ग़ालिब के जीवनी लेखक अल्ताफ़ हुसैन हाली लिखते हैं, “जब ये तक़रीज़ मिर्ज़ा ग़ालिब ने सर सय्यद को भेजी तो उन्होंने इसको मिर्ज़ा के पास वापस भिजवा दिया और लिखा, “ऐसी तक़रीज़ मुझे दरकार नहीं।”

सर सय्यद ने ग़ालिब की लिखी तक़रीज़ अपनी किताब के साथ प्रकाशित भी नहीं की।

तक़्रीज़-ए-आईन-ए-अकबरी का अक्सम, जिसे मिर्ज़ा ग़ालिब ने सर सय्यद की फ़रमाइश पर लिखा था।

इस घटना के बाद दोनों के बीच दूरियाँ बढ़ गईं और सम्बंध ख़राब होते चले गए। कई साल ऐसे गुज़रे कि मिर्ज़ा और सर सैयद के दरमियान संपर्क की कोई सूरत ही पैदा न हो सकी।

बरसों बाद सुलह-सफ़ाई की एक आकस्मिक स्थिति पैदा हुई। ये वाक़िया काफ़ी दिलचस्प रहा। सर सय्यद ख़ुद उसका बयान यूँ करते हैं,

“मैं जब मुरादाबाद में था (मुरादाबाद में वे जज के पद पर रहे) उस वक़्त मिर्ज़ा साहब नवाब यूसुफ़ अली ख़ाँ से मिलने रामपुर गए थे। उनके जाने की तो मुझे ख़बर नहीं हुई मगर जब वे वापस हुए तो मैंने सुना कि वे मुरादाबाद में एक सराय में ठहरे हुए हैं। मैं फौरन सराय में पहुँचा और मिर्ज़ा साहब को मा अस्बाब (सामान के साथ) और तमाम हम-राहियों के अपने मकान पर ले आया।”

सर सय्यद और ग़ालिब के बीच कई बरस तक नाराज़गी रही

मिर्ज़ा ने सर सय्यद के मकान पर पहुँचते ही हस्ब-ए-आदत शराब की बोतल निकाली और मेज़ पर रख दिया। बोतल ऐसी जगह रखी थी जहां तमाम आने-जाने वालों की नज़र उस पर पड़ती थी, इसलिए सर सय्यद ने बोतल उठा कर अंदर रख दी। थोड़ी देर बाद जब बोतल जगह पर न पाई तो मिर्ज़ा ने घबराकर पूछा,

“मेरी बोतल क्या हुई।”

इस पर सर सैयद मिर्ज़ा को एक कोठरी में ले गए जहाँ उन्होंने बोतल रखी थी।

बोतल देखते ही मिर्ज़ा बोले,

“इसमें ख़यानत हुई है, सच बताओ किस ने पी है।”

और फिर हाफ़िज़ का ये शेर पढ़ा,

वाइज़ां कीं जलवा-बर मेहराब-ओ-मिंबर मी-कुनद
चूँ ब-ख़लवत मी-रवंद आँ कार-ए-दीगर मी-कुनद

(वाज़-ओ-नसीहत करने वाले जो मिम्बर और मेह्राब पर आकर दिखावा करते हैं जब तन्हाई में होते हैं तो कुछ और ही करते हैं)

इस पर सर सय्यद हंस पड़े और इस तरह दोनों के दरमियान हाइल दूरियाँ भी ख़त्म हो गईं।