भारतीय संगीत की संकीर्ण रागिनियाँ
दुनिया में किसी भी क्षेत्र की संगीत प्रणाली व्यापकता और गहराई में भारतीय संगीत का मुक़ाबला नहीं कर सकती। यद्यपि प्राचीन काल से भारतीय संगीत प्रणाली में कुछ ऐसे तत्व शामिल हुए हैं जिनकी हैसियत मात्र पौराणिक है मगर उन तत्वों की वजह से भारतीय संगीत की एक ऐसी तस्वीर सामने आजाती है जिसमें अलग अलग रंग बोलते हुए दिखाई देते हैं। उदाहरण के लिए एक मिथक ये है कि हर राग की अपनी रागनी है और राग और रागनी के मिलन से पुत्र पैदा होते हैं और उन पुत्रों की जिनसे शादी होती है उन्हें भारजाईं कहते हैं। और पुत्र और भारजा के मिलन से धुन पैदा होती है। कुछ लोगों का मत है कि शास्त्रीय संगीत से उन पौराणिक तत्वों को निकाल देना चाहिए। मगर मेरा मानना ये है कि चूँकि उन तत्वों से शास्त्रीय संगीत की प्रणाली पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता लिहाज़ा उनके रहने में कोई आपत्ति नहीं। फिर ये भी है कि उन तत्वों की उपस्थिति भारतीय सभ्यता की परंपरा को जीवित रखती है।
शास्त्रीय संगीत की प्रणाली में हर ज़माने के गुरुजनों ने व्यापकता पैदा करने के लिए अपनी बौद्धिक और आविष्कारिक क्षमताओं का उपयोग किया है। अतः दूसरी चीज़ों के अलावा कई रागों के मेल से रागनियाँ बनाई गई हैं। उन्हें संकीर्ण रागनियाँ कहते हैं। आज हम ऐसी ही कुछ रागनियों के बारे में बात करते हैं।
आसावरी: यह रागनी मल्हार, पिरच और बसंत के मिश्रण से बन गई है। इसका ठाठ भैरवीं है।
अडाना: यह रागनी कान्हड़ा, देसाख और धन्नासिरी के मिश्रण से बन गई है। इसका ठाठ आसावरी है।
इलय्या बिलावल: यह रागनी मालसरी, बिलावल और मलार के मिश्रण से बन गई है। इसका ठाठ बिलावल है।
बसंत: यह रागनी मारवा, धन्नासिरी और कान्हड़ा के मिश्रण से बन गई है। इसका ठाठ पूरबी है।
भभास: यह रागनी खट, असावरी और देस के मिश्रण से बन गई है। इसका ठाठ भैरों है।
भोपाल: यह रागनी राम कली, गोंड सारंग, धन्नासिरी या तोड़ी, खट राग और सिंधवी से बन गई है। इसका ठाठ भैरों है। इसमें भोपाली के सुरों को “कोमल” कर दिया गया है। इसका चलन आम नहीं है।
भैरों: यह रागनी मालवा और केदार के मिश्रण से बन गई है। इसका ठाठ भैरवीं है।
पट मंजरी: यह रागनी मारवा, धन्नासिरी और केदार के मिश्रण से बन गई है। इसका ठाठ काफ़ी है।
पंचम: यह रागनी सिरी राग, मालसरी, सँकरा भरण या देवगिरि, नट मल्हार, सारंग और बिलावल के मिश्रण से बन गई है। इसका ठाठ मारवा है। यह रागनी शुद्ध मद्धम लगाने से ललित के समान होजाती है।
पूरबी: यह रागनी सिरी राग, गौरी और मालश्री के मिश्रण से बन गई है। इसका ठाठ पूरबी है।
तिलक कामोद: यह रागनी कामोद और खट के मिश्रण से बन गई है। इसका ठाठ खम्माच है।
टंक: यह रागनी सिरी राग, कान्हड़ा और भैरों के मिश्रण से बन गई है।
टोडी: यह रागनी कल्याण, भागड़ा और कान्हड़ा के मिश्रण से बन गई है। इसका ठाठ टोडी है।
चन्द्रकांत: यह रागनी जय जयवंती और मधुमाधवी के मिश्रण से बन गई है। इसका ठाठ कल्याण है। इसकी रचना कल्याण से मिलती है।
देसाख: यह रागनी गुण कली, राम कली, गंधारी और गुजरी के मिश्रण से बन गई है।
देसी: यह रागनी सँकराभरण, मल्हार और कान्हड़ा के मिश्रण से बन गई है। इसका ठाठ आसावरी है।
देवगिरी: यह रागनी पूर्वी और सारंग के मिश्रण से बन गई है। इसका ठाठ बिलावल है।
राम कली: यह रागनी सँकराभरण अडाना और सोरठ के मिश्रण से बन गई है। इसका ठाठ भैरवीं है।
सारंग: यह रागनी नट नारायन, सँकराभरण और बिलावल के मिश्रण से बन गई है। इसका ठाठ काफ़ी है।
सोहित बिलावल: यह रागनी नट नारायन और सँकराभरण के मिश्रण से बन गई है।
शुद्ध कामोद: यह रागनी कामोद और अलय्या के मिश्रण से बन गई है।
शंकराभरण: यह रागनी बिलावल और केदार के मिश्रण से बन गई है।
शहाना कान्हड़ा: यह रागनी मालवा, पूरी और धन्नासिरी के मिश्रण से बन गई है।
श्याम कल्याण: यह रागनी शुद्ध नट और केदार के मिश्रण से बन गई है।
काफ़ी: यह रागनी सिंधवी और कान्हड़ा के मिश्रण से बन गई है। इसका ठाठ काफ़ी है।
कामोद: यह रागनी बिलावल और गौरी के मिश्रण से बन गई है। इसका ठाठ कल्याण है।
कान्हड़ा: यह रागनी देसाख, चेतसिरी, ललित और शुद्ध नट के मिश्रण से बन गई है। इस का ठाठ काफ़ी है।
कन्हड़ी: यह रागनी कल्याण, कान्हड़ा और नट के मिश्रण से बन गई है।
कन्हड़ी कान्हड़ा: यह रागनी कान्हड़ा और धन्नासिरी के मिश्रण से बन गई है।
केदार: यह रागनी देसकार, ललित और कान्हड़ा के मिश्रण से बन गई है। इसका ठाठ कल्याण है।
गुण कली: यह रागनी गुजरी और असावरी के मिश्रण से बन गई है। इसका ठाठ भैरवीं है।
गुजरी: यह रागनी बिलावल और केदार के मिश्रण से बन गई है।
गोंड सारंग: यह रागनी त्रिवेणी और मालकोस के मिश्रण से बन गई है। इसका ठाठ कल्याण है।
ललित: यह रागनी देसी, त्रिवेणी और तोड़ी के मिश्रण से बन गई है। इसका ठाठ मारवा है।
लंकधन: यह रागनी सिंधवी, आसावरी, गौरी, देवगिरि और भैरवीं के मिश्रण से बन गई है।
मालश्री: यह रागनी सँकराभरण, केदार और आसावरी या पूरबी, सँकराभरण, केदार और बिलावल के मिश्रण से बन गई है।
मधुमाधवी: यह रागनी मारवा, मालश्री, शुद्ध नट, एमन कल्याण, बिलावल और केदार के मिश्रण से बन गई है।
मल्हार: यह रागनी कामोद, जय जयवंती और मालवा के मिश्रण से बन गई है। इसका ठाठ काफ़ी है।
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