ग़ज़ल की मक़बूलियत का सफ़र
मौसीक़ी को पसंद करने वाले की तादाद तब ज़ियादा बढ़नी शुरू हुई, जब इसमें ग़ज़लों को दौर शुरू हुआ | ग़ज़ल की सबसे बड़ी ख़ासियत आहंग और अरूज़ ने गुलूकारों को वो आसानी बख्शी कि कोई भी उस्ताद गुलूकार ग़ज़ल गाए बग़ैर नहीं रह सका |
मौसीक़ी को पसंद करने वाले की तादाद तब ज़ियादा बढ़नी शुरू हुई, जब इसमें ग़ज़लों को दौर शुरू हुआ | ग़ज़ल की सबसे बड़ी ख़ासियत आहंग और अरूज़ ने गुलूकारों को वो आसानी बख्शी कि कोई भी उस्ताद गुलूकार ग़ज़ल गाए बग़ैर नहीं रह सका |
Alif echoes the sound ‘a’, as in the word ‘but’. In Devanagari, it’s written as “अ”. But to understand how monumental this little aspirant-letter is in the grand scheme of things
परवीन शाकिर अगर आज हयात होतीं तो अड़सठ (68) साल की होतीं, लेकिन न जाने ख़ुदा की क्या हिक्मत या मस्लिहत है कि वो हमसे उन लोगों को बहुत जल्दी छीन लेता है जो हमें बहुत महबूब होते हैं। ऐसे शाइरों, अदीबों और फ़नकारों की एक लंबी फ़ेहरिस्त है जो बहुत जल्दी हमें छोड़ गए। परवीन शाकिर भी बद-क़िस्मती से इसी फ़ेहरिस्त का हिस्सा हैं।
QissaKahani रेख़्ता ब्लॉग की नई सीरीज़ है, जिसमें हम आपके लिए हर हफ़्ते उर्दू शायरों, अदीबों और उर्दू से वाबस्ता अहम् शख़्सियात के जीवन से जुड़े दिलचस्प क़िस्से लेकर हाज़िर होते हैं। इस सीरीज़ की चौथी पेशकश में पढ़िए अकबर इलाहाबादी और मशहूर गायिका गौहर जान की मुलाक़ात का क़िस्सा।
पाँव के काँटे से ज़्यादा ख़ूबसूरत और मुनासिब मैटाफ़र शायद मुम्किन ही नहीं। इस एक काँटे को ऐसे रंग रंग के ख़्यालात के लिए इस्तिमाल किया जा सकता है, तो मेरा ये ख़्याल है कि (हालाँकि बहुत अजीब है) काँटे में फूल से ज़ियादा रंग होते हैं।
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