Amrita Pritam
If one was to define Amrita Pritam’s journey in this world, one would simply say: “Love with Sahir, Marriage with Singh, Life with Imroz”.
If one was to define Amrita Pritam’s journey in this world, one would simply say: “Love with Sahir, Marriage with Singh, Life with Imroz”.
आज के ज़माने मे ये हुनर यानी एक, दो लफ़्ज़ों से मैयारी शायरी करना बड़े मुस्तनद और तजरबे-कार शाइरों मे ही पाया जाता है। मै चन्द मिसालों की मदद से रेख़्ता के कारईन बिल-ख़ुसूस नये लिखने वालों तक इस हुनर की तरसील करना चाहता हूँ…
मतरूकात दरअस्ल उन अल्फ़ाज़ को कहते हैं जिन्हें शाइरी में पहले बग़ैर किसी पाबन्दी के इस्ते’माल किया जाता था मगर बाद में मशाहीर और असातेज़ा ने उनका इस्ते’माल या तो बंद कर दिया या इस्ते’माल रवा रक्खा भी तो कुछ पाबंदियों के साथ रवा रखा। ये भी रहा है कि कुछ अल्फ़ाज़ शाइरी के लिए तो मतरूक हुए मगर नस्र में उनके इस्ते’माल को नहीं छेड़ा गया।
इब्न-ए-इंशा की कई ग़ज़लें ऐसी हैं जिन्हें किसी बड़े फ़नकार ने अपनी ख़ुश नवाई से दवाम बख़श दिया है। जगजीत सिंह की गाई हुई उनकी ग़ज़ल ‘कल चौदहवीं की रात थी शब-भर रहा चर्चा तिरा’ आज भी हर तबक़े में इंतिहाई मक़बूल है।
तो क़िस्सा मुख़्तसर ये कि कुछ वक़्त ये दोनों यानी ‘ब-नाम’ और ‘वर्सेस’ इक अदालत में साथ रह लिए थे तो अदालत के हुक्म से एक के मानी दूसरे को दे दिये गये। बेचारा मूल-अर्थ जो की अस्ली हक़-दार था वो अदालत का मुंह तकता रह गया और उसकी जगह पर किसी और को बसा दिया गया।
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