Archives : September 2021
मीर तक़ी मीर ने दिल्ली के गली-कूचों को ‘औराक़-ए-मुसव्वर’ यानी ‘सचित्र पन्नों’ की उपमा दी थी। ये वो ज़माना था जब दिल्ली में साहित्यिक, तहज़ीबी और सांस्कृतिक सर-गर्मियाँ चरम पर थीं और यहाँ हर तरफ़ शे’र-ओ-शायरी का दौर-दौरा था। दिल्ली के कूचा-ओ-बाज़ार अपनी रौनक़ों और अपने सौन्दर्य के ए’तबार से अपना कोई सानी नहीं रखते थे। दिल्ली की समाजी और साहित्यिक ज़िंदगी अपने विशेष मूल्यों की वजह से एक विशिष्ट और अद्वितीय मुक़ाम रखती थी।
By Masoom Moradabadi
September 30, 2021
یہ امر بہت دلچسپ ہے کہ شاستریہ سنگیت پر اسطور کی ایک ایسی دھند چھائی ہوئی ہے جو اسے نہ صرف پراسرار بنادیتی ہے بلکہ اس میں داستانوی رنگ بھر کر اسے مزید جاذبِ توجہ بنادیتی ہے۔ چنانچہ راگ سے راگنی کا ملن اور اس ملن کے نتیجہ میں پتروں کا پیدا ہونا اور پھر ان پتروں کا ملن بھارجاؤں سے ہوکر دھنوں کا پیدا ہونا ایک ایسا عمل ہے جس سے ہندوستانی تہذیب میں انسانی معاشرے کا زندگی اور فن کے ہر شعبے میں اثر انداز ہونے کا پتہ چلتا ہے۔
By Shafaq Sopori
September 28, 2021
मीर के बारे में अक्सर ये कहा जाता है कि उन्होंने सह्ल ज़बान या सरल भाषा में शाइरी की है। ऐसी ज़बान जिसे समझने में किसी को कोई परेशानी न हो और ये बात अक्सर ग़ालिब से उनका मवाज़ना/तुलना करते हुए कही जाती है। लेकिन क्या वाक़ई मीर की शाइरी आसान/आसानी से समझ में आ जाने वाली शाइरी है?
By Bakul Dev
September 21, 2021
अमूमन लोग मुहावरा और कहावत को एक समझते हैं। जब कि ऐसा नहीं है। मुहावरा अरबी ज़बान का लफ़्ज़ है जिसका मतलब मख़्सूस ज़बान में राइज मख़्सूस जुमलों से मुतअल्लिक़ा है, या’नी ऐसे वाक्यांश या शब्द-समूह जिन्हें जैसा का तैसा बोला या लिखा जाता है। जैसे: पानी-पानी होना, टेढ़ी खीर होना, आँख आना, सर पर चढ़ना वग़ैरा।
Born Shankar Dutt Kumar, in Bahawalpur, Pakistan, on 3rd July 1935, Kumar Pashi’s family left their house and belongings in Delhi after the Revolt of 1857. But, as fate would have it, Delhi called him back. At 12 years old, following the mass exodus of the Indo-Pak partition, he returned to Delhi.
By Rajat Kumar
September 17, 2021