वुजूद की ना-क़ाबिल-ए-बर्दाश्त लताफ़त, जिंसियत और मोहब्बत : मिलान कुंडेरा
वुजूद की ना-क़ाबिल-ए-बर्दाश्त लताफ़त कुंडेरा का बेहतरीन, अहम और कई नाविलियाती/ नाविलाती बहसों को पैदा करने वाला नॉवेल माना जाता है। उसके मुताबिक़ इस नॉवेल को जिन बुनियादों या जिन सुतूनों पर लिखा गया है उनमें बोझ, लताफ़त, रूह, जिस्म, ग्रैंड मार्च, किच या किश, गिर जाने की कैफ़ियत, क़ुव्वत और कमज़ोरी शामिल हैं। नॉवेल को पढ़ते हुए हम कई सतहों पर उसके फैलाव को देखते हैं और ये फैलाव वुजूद, जिंस, मोहब्बत, सियासत (प्रेग स्प्रिंग), फ़लसफ़ा, मौसीक़ी, किरदारों की सूरत-ए-हाल पर है और बक़ौल कुंडेरा “बेवफ़ाई, सरहद, मुक़द्दर, लताफ़त, ग़नाइयत; मुझे यूँ लगता है कि एक नॉवेल अक्सर कुछ गुरेज़ाँ इस्तिलाहों को पाने की तवील जुस्तजू के सिवा कुछ नहीं।