Archives : January 2024

Imroz the poet

इमरोज़-एक जश्न अपने रंग, अपनी रौशनी का

इमरोज़ की मिट्टी का गुदाज़, लोच और लचक देखकर हैरत होती है कि कोई इतना सहज भी हो सकता है। लोग जो भी बातें करते रहें, वो दर-अस्ल इमरोज़ को अमृता के चश्मे के थ्रू देख रहे होते हैं जबकि इमरोज़ किसी भी परछाईं से अलग अपने वजूद, अपने मर्कज़ से मुकम्मल तौर पर जुड़े रहे हैं।

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ریختہ کتب خزانہ اور تلاش نغمہ

یہ کسی بیگم ایچ اے نغمہ کی منظوم، درد ناک آپ بیتی تھی۔ اس کتاب میں شامل کچھ نظموں نے مجھے کچھ الجھن میں ڈال دیا اور میں مارے تجسس کے کانپور، لکھنؤ اور ڈھاکا تک پہنچ گئی۔ جی نہیں! مجھے کہیں جانے کی ضرورت نہیں پڑی ریختہ پر موجود کتابو ں میں اس الجھن کا سرا ڈھونڈ رہی ہوں، سفر جاری ہے۔ ذرا رکئے پہلے ایک نظر ’فریاد نغمہ‘ کے سر ورق پر ڈالتے چلیں۔

Munawwar Rana

मुनव्वर राना का आख़िरी मुशायरा

मुनव्वर राना, जिन्होंने गुज़िश्ता रात लखनऊ के पी.जी.आई. अस्पताल में कैंसर के मूज़ी मरज़ में आख़िरी साँस ली, मौजूदा दौर में उर्दू शायरी की आबरू थे। उन्होंने बरस-हा-बरस उर्दू शायरी के दीवानों पर अपना सिक्का चलाया। मुनव्वर राना को जो मक़बूलियत और शोहरत हासिल हुई, वो उनके हम-अस्र शोरा में कम ही लोगों का मुक़द्दर हो सकी।

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