Archives : December 2022

Ghalib Blog

आइये! बनारस का हुस्न ग़ालिब की नज़र से देखते हैं

तख़लीक़ की इस दुनिया के बेताज बादशाह ‘ग़ालिब’ ने ऐसे में कलकत्ता का सफ़र किया, क्यों किया! ये आप सब जानते हैं, मगर वो रास्ते में कुछ जगहों पर रुकते भी गए, बांदा, लखनऊ और काशी या बनारस ऐसे ही मक़ामात हैं। जो लोग ग़ालिब के ख़तों को पढ़ चुके हैं, उसकी उर्दू-फ़ारसी शायरी का ठीक से अध्ययन कर चुके हैं, उन्हें ये बताने की ज़रुरत नहीं कि मिटती हुई दिल्ली और उजड़ती हुई दहलवी तहज़ीब से उसका लगाव ज़्यादा नहीं रह गया था।

पण्डित दत्तात्रिया कैफ़ी और बे-दख़्ल किये गए शब्दों की कहानी

मतरूकात दरअस्ल उन अल्फ़ाज़ को कहते हैं जिन्हें शाइरी में पहले बग़ैर किसी पाबन्दी के इस्ते’माल किया जाता था मगर बाद में मशाहीर और असातेज़ा ने उनका इस्ते’माल या तो बंद कर दिया या इस्ते’माल रवा रक्खा भी तो कुछ पाबंदियों के साथ रवा रखा। ये भी रहा है कि कुछ अल्फ़ाज़ शाइरी के लिए तो मतरूक हुए मगर नस्र में उनके इस्ते’माल को नहीं छेड़ा गया।

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