Archives : February 2022

Metaphor in Urdu

रूपक जो शेर को ज़मीन से आसमान तक पहुँचा देते हैं

माशूक़ा के चेहरे या बदन की ख़ूब-सूरती बयान करने लिए चाँद, माह, माह से बना माह-पारा/ मह-पारा, माह-जबीं, गुल, गुल से बना गुल-बदन, गुल- फ़िशाँ, गुलाब, पंखुड़ी वग़ैरा। माशूक़ा के लिए ‘बुत’ लफ़्ज़ इस्तिआरे के तौर पर बे-इन्तेहा राइज है।

एक ऐसा परिवार जो छ पीढ़ियों से साहित्य की ख़िदमत कर रहा है

उर्दू अदब के चंद बेहतरीन और अहम शाइरों की फ़ेहरिस्त में जाँ निसार अख़्तर का नाम भी आता है। अपनी बात को आसान लहजे में कह देने का फ़न उन की शाइरी में भी देखने को मिलता है। वो अपने वक़्त से लेकर अब तक लोगों के पसंदीदा शाइर बने हुए हैं जब कि ऐसा कम शाइरों के साथ होता है। उनकी शाइरी को पसंद करने वाले लोगों में दिन-ब-दिन इज़ाफ़ा हो रहा है।

Mirza Ghalib Blog

जब कोलकता में ग़ालिब के एक फ़ारसी शेर पर विवाद खड़ा हो गया

एक तो ग़ालिब के जिस्म में दौड़ता ईरानी लहू और दिमाग में ईरानी उस्ताद की नसीहतें और तजर्बे, इन दोनों के मेल ने ग़ालिब को फ़ारसी का ज़बरदस्त और ज़हीन शायर बना दिया। सिर्फ़ शायर ही नहीं बल्कि उनके खाने पीने, उठने बैठनें, बात करने, कपड़े पहनने और सोचने समझने का अंदाज तक ख़ालिस ईरानी हो गया।

Jagjit Singh Blog

जगजीत सिंह: ग़ालिब की आत्मा की तलाश में

जगजीत सिंह का नाम ज़हन में आते ही चेहरे पर आज भी मुस्कुराहट आ जाती है। जगजीत सिंह पिछली सदी की नब्बे वाली दहाई में जवान होती नस्ल के नौस्टेलजिया का एक अहम किरदार है। वो पीढ़ी जिस तरह अपने बचपन में कार्टूनिस्ट प्राण के किरदारों की नई काॅमिक्स की बेतहाशा राह तका करती थी, ठीक उसी शिद्दत से जगजीत सिंह के नई कैसेट्स उस जवान होती पीढ़ी को मुंतज़िर रखते थे।

lata-mangeshkar

लता मंगेशकर : वो आवाज़ ही हमारी पहचान है

लता मंगेशकर उस ऐतिहासिक बदलाव का हिस्सा थीं, जब सिनेमा बदल रहा था, सिनेमा का संगीत बदल रहा था। सिनेमा के पर्दे पर पारसी शैली में गीतों के नाटकीय चित्रण से अलग उनकी आवाज़ हर तरफ छाने लगी। ग्रामोफोन के रिकार्ड्स के जरिए, रेडियो के जरिए और लोगों की गुनगुनाहट के जरिए। गीत अब महज किरदार की कहानी नहीं बयान करते थे, लोगों के दिलों की आवाज़ बनने लगे।

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