ताल का परिचय
ताल संगीत की हर क़िस्म में या हर प्रकार के संगीत में एक महत्वपूर्ण तत्व का स्थान रखता है। इसलिए कि ये संगीतमय ध्वनियों के प्राप्ति विस्तार को क्रमबद्ध और अनवरत रखता है। शायरी में जो स्थान छंद को प्राप्त है वही हैसियत संगीत में ताल को प्राप्त है। हिंदुस्तानी संगीत में ताल की अवधारणा वेदों से ही चली आरही है। वेदों के हम्दिया नग़मे (ईश्वर का स्तुतिगान) वो श्रोत हैं जिनसे आजकल की ज़रबें हासिल की गई हैं। ये हम्दिया नग़मे न केवल शुद्ध गीत थे बल्कि उनमें संगीतमय भाव भी छुपा था। वेदों में वक़्त की लम्बाई के तीन पहलू थे। एक हरस्व (छोटा), दूसरा दीर्घ और तीसरा प्लित (अतिदीर्घ)। ये एक, दो या तीन इकाइयों के पैमाने थे। शास्त्रीय संगीत में लय यानी ताल की तीन प्रकार हैं;
1: विलंबित
2: मध्य
3: द्रुत
अब आइए ताल की परिभाषाओं की व्याख्या करते हैं।
आड़ी: छंदों का एक प्रकार। चार मात्रे को त्रै मात्रिक(तीन मात्रा) छंद में बदलना।
अतीत गिरह: ताल के बाद का। अगर गाने का सम पहली धम्म के बाद आए तो उसे गिरह कहते हैं।
अदा: ताल में छोटी और आधी मात्रा।
अनागत गिरह: धम्म के पहले सम का आना।
अंग: वो कुछ प्रतीक जो पंडितों ने तालों के लिए आविष्कार की हैं।
बराबर: ताल में पूरी मात्रा।
बोल: मृदंग या तबले के बजाने से जो आवाज़ निकलती है जैसे धा, गा, गे, धन, धी, तन आदि।
प्राण: पंडितों के अनुसार तालों में मौजूद दस बिन्दुओं के परिभाषित नाम।
प्रण: शब्दों का वो संग्रह जो किसी ताल के ठेके के बोलों के अलावा उसी ताल में इस्तेमाल किए जाएं।
पल्टा: बोलों का वो संग्रह जो तबला या मृदंग पर बारी बारी बजाया जाता है।
ताल प्रस्तार: ताल का बढ़ाना और फैलाना।
ताल आवर्तन: ताल का चक्र (taal cycle) ।
तृप्ली चौपली: कोई टुकड़ा या गति का छंद विभाग जब तीन मात्रा का हो तो तृप्ली और चार मात्रा का हो तो चौपली कहलाता है।
तरोट: आला-ए-ताल के प्रण का गाना। उसे आम तौर पर तराना में शामिल करते हैं जैसे धरकट, दरुक्त, दर, धन्ना आदि।
था: ताल में आधी मात्रा।
तिहाई: ठेका बजाते समय जब किसी टुकड़े को अलग लय में तीन बार बजा कर सम पर मिलाया जाये तो उसे तिहाई या तीह कहते हैं।
टुकड़ा: तबला या मृदंग में बजाने के काबिल बोलों के मिले जुले शब्दों का संग्रह जब दोगुना, तिगुना आदि लय में बजाकर सम पर मिलाया जाये तो उसे टुकड़ा कहते हैं।
ठेका: ताल में मात्राओं के समान ताल के बोल जैसे, तट कट आदि। मात्रा, छंद और आवाज़। एक साथ लिखे गए तबला या मृदंग पर बजाने के लिए बन-बन बोल। उन्हें जब मिलाया या आवृत़्त किया जाये यानी घुमाया जाये या उनकी तकरार की जाये तो ठेका कहलाता है।
जाती: ग्रंथों के अनुसार नियमित तालें। पंडितों के अनुसार उनमें दस विशिष्ट बातें पाई जाती हैं, काल, मार्ग, क्रिया, अंग, गिरह, जाती, प्रुस्तार, लय, यति और वर्तिका।
चौगुन: ताल में चौगुनी मात्रा।
छंद विभाग: किसी ताल के बीच में मात्रा हिस्सों को छंद विभाग कहा जाता है। जैसे तीन ताल में सोलह मात्राएं चार बराबर भागों में विभाजित की गई हैं।
ख़ाली: ताल में जिस जगह गुणा (x) नहीं होता उसे ख़ाली कहते हैं। जिस जगह ख़ाली होती है उसकी मात्रा के नीचे (0) का निशान लगाते हैं। ताल वर्तन के छंद विभागों में जहाँ ताला घात होता है उसे ताली या भरी और जहाँ अनाघात होता है उसे ख़ाली कहते हैं।
दूनी: ताल में दोगुनी मात्रा।
लड़ी: किसी ख़ूबसूरत टुकड़े को अलग लय में बार-बार बजाना।
रेला: ताला वतन के हर एक “छंद विभागों” में अलग शब्दों की साफ़ आवाज़ मध्य लय में रेला कहलाती है। आम तौर पर रेला नई आवृत्तों के होते हैं।
सम: वो जगह जहाँ से ताल का आरंभ होता है। ताल की पहली मात्रा सम होती है। हर ताल आवर्तन में एक ही सम आता है। संगीत में ख़ास ज़ोर देकर सम को व्यक्त किया जाता है। आम तौर पर सम पर ही गाने का समापन होता है। ताल की भाषा में सम के स्थान पर(+) निशान लगाया जाता है।
सम पदी: ताला वर्तन के छंद विभागों की संख्या अगर बराबर हो तो उसे सम पदी कहते हैं।
सम गिरह: गीत और ताल का एक ही जगह से शुरू होना।
सवा: ताल में एक और उसके चौथाई के बराबर मात्रा।
ज़रब: अंग्रेज़ी में beat। ताल में वह स्थान जहाँ गुणा का निशान लगाया जाता है यानी उस जगह ख़ाली नहीं है। पहली ज़रब पर “1” दूसरी पर “2” का अंक लगाया जाता है। इस क्रम को 3, 4 आदि अंकों से आगे बढ़ाया जाता है।
काल: अनुद्रुत, द्रुत, लघु आदि। ये किसी न किसी रूप में हर ताल में पाए जाते हैं।
कालपद: ताल में सोलह मात्राएं। इसका प्रतीक(+) है।
क्रिया: हरकत; ये दो प्रकार की होती है। शब्द अर्थात जिसमें ध्वनि पैदा हो और नि:शब्द जिसमें ध्वनि पैदा न हो। चौता लय में सम पर ज़रब है यह उदाहरण शब्द का है। रूपक के सम पर ख़ाली है यह उदाहरण नि:शब्द का है।
कला: ताल में समय की इकाई जो अक्षर के अलग अलग संख्याओं पर आधारित है जैसे अनुद्रुत एक अक्षर, द्रुत दो अक्षर, लघुतीन अक्षर, गुरु आठ अक्षर, प्लुत बारह अक्षर और कालपद सोलह अक्षर।
कवाड़ी: आड़ी छंद को फिर से आड़ी करना, आड़ी छंद को देवगुण करना।
गिरह: सम, बिसम, अतीत आदि।
लग्गी: तबला पर आड़ी चाल से धन धा धन धी नाड़ा आदि।
लहरा: लहर से बना हुआ शब्द; आम तौर पर तबला, पखावज आदि जब विशेष स्थान रखता हो तो उसे लहरा कहते हैं। ये एक रीति है। लहरा में तबला या पखावज की संगत के लिए हारमोनियम, सारंगी या कोई और साज़ होता है जिसमें केवल किसी राग की अस्थाई बजाई जाती है। बजाने के रिवाज में सेलामी, गत, रेला, चक्रदार और लग्गी आदि बजाया जाता है।
लय: हरकत, गति, विस्तार जो एक के बाद दूसरी सुनाई देने वाली आवाज़ों का फ़सल बता दे; रिथम। लय के तीन प्रकार हैं; विलंबित, मध्य और द्रुत।
मात्रा: माप, पुल, मिक़दार; मात्राएं ताल में गुणों पर विभाजित हैं। मात्रा से ताल को नापा जाता है।
मध्य लय: मध्य गति का ताल।
मोहरा: किसी प्रण या टुकड़े का किसी ताल के ठेके के शुरू करने से पहले और उसके बाद ठेका
शुरू करना।
नौबत: नौ फ़नकार, दो शहनाई नवाज़, दो नक़्क़ारची, एक झाँझ बजाने वाला, एक करनाची, एक दमामा बजाने वाला, एक बारीदार और एक जमादार।
विलंबित लय: सुस्त गति ताल।
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