किताबें तन्हा भी करती हैं और तन्हाई से बचाती भी हैं

किताबों से परे ज़िन्दगी का तसव्वुर करना भी तसव्वुर के सिवा और क्या है। बल्कि महसूस करके देखा जाए तो किताबों का एक-एक सफ़्हा न जाने कितनी ज़िन्दगियों से लिपटा हुआ होता है। तन्हाई में घुटता हुआ इंसान किताबों के साथ जीना सीख ले तो फिर वो इस दुनिया का नहीं रह जाता। किताब में तहरीर एक-एक लफ़्ज़ हमसे गुफ़्तगू करता है, एक-एक किरदार किताब से निकल कर हमारे सामने आ कर हमारे साथ जीने लगता है, ये न हुआ तो हम उनके साथ जीने लगते हैं।