Harf aur Alfaaz

ज़बान सीखने के छ मरहले होते हैं

ज़बान की बुनियाद उसकी एल्फ़ाबेट होती है। या’नी सिलसिला-वार पहले हरूफ़ फिर अल्फ़ाज़ फिर ज़बान। लफ़्ज़ को समझने के लिए हुरूफ़ की समझ ज़रूरी है। और ज़बान को समझने के लिए अल्फ़ाज़ और उनके मआनी की समझ।

ज़ाहिर है अगर हम अँग्रेज़ी ज़बान के लफ़्ज़ Look को पढ़ना चाहते हैं, तो हमारा Abcd से वाक़िफ़ होना लाज़िम है। Look को पढ़ लेने के बा’द हम इसके मआनी की तरफ़ जाते हैं और अँग्रेज़ी की लुग़त उठाते हैं। चूँकि हम अब अँग्रेज़ी की एल्फाबेट समझ सकते हैं। लिहाज़ा हमें Look लफ़्ज़ की तलाश आसान गुज़रेगी और हम पाएँगे कि Look का मआनी है ‘देखना’। Watch का मआनी भी ‘देखना’ है और See का भी । ये ज़बान को सीखने का दूसरा मरहला है कि Look, Watch aur See जब तीनों का मीनिंग ‘देखना’ है, तो तीन मुख़्तलिफ़ अल्फ़ाज़ को लुग़त में शामिल करने की क्या ज़रुरत है? लेकिन ऐसा नहीं है ज़रुरत है।

Look का मतलब है- अपनी आँखों को किसी ख़ास सिम्त की तरफ़ राग़िब करना।

Watch का मतलब है- किसी शख़्स या चीज़ या घटना को ध्यान से कुछ देर या देर तक देखना।

See का मतलब है- अपनी आँखों का इस्ते’माल करके किसी को या किसी चीज़ को नोटिस करना या आगाह होना।

अँग्रेज़ी के एक लफ़्ज़ After पर भी ग़ौर करते हैं जिसका मतलब होता है ‘बाद में’। लेकिन, जब यही आफ़्टर लफ़्ज़ Look के साथ Look- After बनता है, तो इसका मीनिंग ‘देखभाल करना’ हो जाता है। लेकिन, See या Watch के साथ मिल कर ये कोई नया मीनिंग नहीं बनाता बल्कि See After या Watch After दोनों का इत्तेफ़ाक़ी मआनी ‘बाद में देखना’ या ‘के बाद देखना’ होगा।

अब हम उर्दू ज़बान की जानिब आते हैं- देखना (دیکھنا), ताकना (تاکنا), निहारना (نہارنا ), घूरना (گھورنا), झाँकना (جھانکنا)। ज़ाहिर है उर्दू रस्म- उल- ख़त में लिखे गए गए अल्फ़ाज़ دیکھنا، تاکنا، نہارنا، گھورنا اور جھانکنا को पढ़ने के लिए उर्दू के हुरूफ़ या’नी उर्दू हर्फ़- ए- तहज्जी से वाक़िफ़ होना बहरहाल ज़रूरी है जिसे आप aamozish.com पर लॉग ऑन कर के इसे आसानी से सीख सकते हैं।

और इनके पर्टिकुलर मआनी और इनका इस्ते’माल समझने के लिए उर्दू ज़बान का इल्म होना ज़रूरी है।

‘देखना’ का मतलब आम तौर पर किसी चीज़ को देखना या जाइज़े के तौर पर देखना होता है।

‘देखना’ है कब ज़मीं को ख़ाली कर जाता है दिन
इस क़दर आता नहीं है जिस क़दर जाता है दिन

शाहीन अब्बास

यहाँ देखना ‘देखने’, ‘जाइज़ा’ या ‘ऑब्ज़र्वेशन करने’ के मा’ना में इस्ते’माल हुआ है।

आप पेश किए गए शे’र से ‘देखना’ लफ़्ज़ हटा कर ‘ताकना’, ‘निहारना’ या ‘घूरना’ शामिल कर के देखिए क्या आपको लगता इसके बा’द भी शे’र का मतलब वही रहता है या उसका कोई मतलब ही नहीं रह जाता।

‘ताकना’ का मतलब होता है किसी को या किसी चीज़ को ध्यानपूर्वक (scrutinize) सकारात्मक- उदास या ख़ुश निगाह से देखना। ‘ताकने’ के मआनी ‘देखने’ और ‘निहारने’ के मआनी के काफ़ी क़रीब है जैसे ‘राह देखना’ भी ठीक है और ‘राह ताकना’ भी। ‘मुँह देखना’ भी और ‘मुँह ताकना’ भी।

राह तकना है अबस सो जाओ
धूप दीवार पे आ बैठी है

अब्दुल्लाह जावेद

चूल्हे- चौके से बे- ज़ारी फ़िक्र- ए- सुख़न आ’साब पे तारी
जागते सोते राह निहारूँ ‘रख़्शाँ’ मैं बन रात ग़ज़ल की

रख़शाँ हाशमी

एक ही राह को उम्र भर देखना
कोई आए न आए मगर देखना

आतिफ़ तौक़ीर

‘घूरना’ का मतलब है किसी को ग़ुस्से से एक टक देखना जैसे ”तुम मुझे ‘घूर’ क्यों रहे हो” या “वो मुझे ऐसे घूर रहा था जैसे खा ही जाएगा” वग़ैरा।

‘झाँकना’ का मतलब है दाएँ- बाएँ या ऊपर- नीचे आड़ में से किसी को या किसी चीज़ को टोह लेने के लिए देखना।

दीवानगी के ख़ौफ़ से फिर चीख़ चीख़ कर
कमरे में ‘झाँकते’ हुए बच्चे को ‘घूरना’

इमरान राहिब

एक और लफ़्ज़ ‘सिफ़त’ जिसके मआनी ‘के जैसा, की तरह, प्रकार, ता’रीफ़, ख़ूबी, वस्फ़, प्रभाव, या तासीर’ के होते हैं जैसे ‘उसके होंठों में गुलाब की- सी सिफ़त है’, ‘उसका चेहरा चाँद सिफ़त है’ या ‘उसकी सिफ़त का कोई भी दूसरा नहीं है’ वग़ैरा।

दिल- ए- सीमाब- ‘सिफ़त’ फिर तुझे ज़हमत दूँगा
दूर- उफ़्तादा ज़मीनों की मसाफ़त दूँगा

सलीम कौसर

इस शे’र में सिफ़त का इस्ते’माल ‘के जैसे’ के मआनी में हुआ है या’नी “पारे ‘के जैसे’ दिल फिर तुझे ज़हमत दूँगा”

तुझ लब की ‘सिफ़त’ लाल- ए- बदख़्शाँ सूँ कहूँगा
जादू हैं तिरे नैन ग़ज़ालाँ सूँ कहूँगा

वली मोहम्मद वली

इस शे’र में सिफ़त का इस्ते’माल प्रकार (type) या ख़ूबी के मा’ना में हुआ है।

अब ये ‘सिफ़त’ जहाँ में नायाब हो गई है
मलमल बदन पे उस के कम- ख़्वाब हो गई है

उबैद सिद्दीक़ी

इस शे’र में भी सिफ़त का इस्ते’माल प्रकार (type) या ख़ूबी के मा’ना में हुआ है।

ज़ाहिर ये सब सीखने और समझने के लिए हमें ज़बान का भरपूर इल्म होना स्वाभाविक है। सबसे अहम उसकी रस्म- उल जो हमें ज़बान और उसकी लुग़त तक ले कर जाएगी। और किसी भी ज़बान को सीखना आसान नहीं है लेकिन इसे आपके लिए रेख़्ता ने बे- हद आसान बनाते हुए alfaaz.aamozish.com का आग़ाज़ किया है। जहाँ आप उर्दू रस्म- उल- ख़त से ले कर शब्दों के मतलब और उनके इस्ते’माल से वाक़िफ़ हो सकते हैं। ये इतना आसान तरीक़ा है मानो कोई उस्ताद आपकी ऊँगली पकड़ कर उर्दू सिखा रहा हो। इसमें उर्दू सीखने के नए- नए और इन्तहाई आसान तरीक़ों का इस्ते’माल किया गया है।

ज़बान का सीखना छह मरहलों से हो कर गुज़रता है।

पहला- उसकी रस्म- उल- ख़त

दूसरा- उसके अल्फ़ाज़

तीसरा- अल्फ़ाज़ के लुग़वी मआनी (शब्द अर्थ और भाव अर्थ)

चौथा- अल्फ़ाज़ का तलफ़्फ़ुज़

पाँचवाँ- अल्फ़ाज़ बरतना और शाइरी या नस्र में बरते गए अल्फ़ाज़ का सटीक मीनिंग समझना।

छटवाँ- ग्रामर।

इस सब के बा’द बेश्तर लोग सम्बन्धित ज़बान का या तो बेहतरीन अदब पढ़ना चाहते हैं या लिखना। पढ़ने और लिखने दोनों में ये मुश्किल पेश आती है कि बरते गए अल्फ़ाज़ को किस मआनी की ग़रज़ से इस्ते’माल किया गया है।

उर्दू शाइरी में हम देखते हैं कि यहाँ किसी चीज़ की ख़ूबी का इज़्हार करने के तीन तरीक़े होते हैं—

एक ये कि हम साफ़- साफ़ कह दें कि फ़लाँ लड़की इन्तेहाई ख़ूब- सूरत है।

दूसरा ये कि हम उसका मुवाज़ना (compare) किसी ख़ूब- सूरत चीज़ की तश्बीह (उपमा / simile) देते हुए उसकी ता’रीफ़ करें कि फ़लाँ लड़की चाँद- जैसी है।

तीसरा ये कि हम मुवाज़ना और तश्बीह से आगे उसे वही चीज़ क़रार कर दें कि फ़लाँ लड़की चाँद है। ता’रीफ़ करने की यही सूरत इस्तिआरा (रूपक / metaphor) कहलाती है।

शाइरी में बुनियादी तौर पर तीन अहम पहलू होते हैं-

मआनी
मज़्मून
इस्तिआरा

मआनी से मुराद शे’र के मज़्मून की वज़ाहत है, मज़्मून से मुराद उस मौज़ूअ की है जिसका ज़िक्र शे’र में हो या शे’र जिसके बारे में हो और वो शे’र उस पर मबनी (आधारित / based) हो। बाज़- दफ़आ मज़्मून इस्तिआरे का काम करता है, लेकिन हमेशा ऐसा ज़रूरी नहीं बल्कि बहुत बार कोई ग़ैर- इस्तिआराती लफ़्ज़ भी मज़्मून का किरदार अदा कर सकता है बशर्ते वो शे’र के मआनी में इज़ाफ़ा करता हो।

उर्दू शाइरी में इस्तिआरा एक ऐसा मौज़ूअ है जिसकी बिना पर पूरी उर्दू शाइरी टिकी है जैसे ‘बुत’ का मतलब होता हैं ‘मूरत’ लेकिन माशूक़ा को बुत के मा’ना में इस्ते’माल किया जाता है क्यों कि मूरत भी हमसे बात नहीं करती है और प्रेमिका भी बुत की ही मानिन्द ख़ामोश और अक्सर प्रेमी की बातों का जवाब नहीं देती है। परस्त का मतलब होता है ‘पूजना’ लिहाज़ा बुत- परस्त— ‘मूर्ति पूजा’ करने वाले को कहेंगे लेकिन आशिक़ को भी बुत- परस्त कहा जाता है और यहाँ से ‘काफ़िर’ के मआनी भी बदल जाते हैं।

alfaaz.aamozish.com में इसी तरह के उर्दू शाइरी में इस्ते’माल होने वाले 100 बुनियादी और राइज अल्फ़ाज़ जिन्हें 14 मुख़्तलिफ़ क़िस्मों में बाँट कर उनकी बेहतरीन मिसालों के साथ पेश किया गया है।

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