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Urdu Zabaan

हिन्दुस्तानी अदालत के ज़रिये उर्दू के ये शब्द हटा दिए गए

ज़बान और ज़िन्दगी के लिहाज़ से आसान वो है जो हमारे हाथ में है या हम जो कर सकते हैं और मुश्किल वो है जो हम नहीं कर सकते। कहने का मतलब ये है कि हमारे लिए आसान ज़बान वो है जो हम समझ पाते हैं और मुश्किल वो जो समझ नहीं पाते।

Harf aur Alfaaz

ज़बान सीखने के छ मरहले होते हैं

ज़बान की बुनियाद उसकी एल्फ़ाबेट होती है। या’नी सिलसिला-वार पहले हरूफ़ फिर अल्फ़ाज़ फिर ज़बान। लफ़्ज़ को समझने के लिए हुरूफ़ की समझ ज़रूरी है। और ज़बान को समझने के लिए अल्फ़ाज़ और उनके मआनी की समझ।

Zabaan ke bhi pair hote hain-02

ज़बानें तो दरिया की तरह होती हैं, जो हर पल नए नए पानियों का जलवा दिखाती हैं

ज़बानें हमारे जैसे इंसानों की तरह नहीं होतीं। उनका आपस में कभी झगड़ा नहीं होता। फ़ारसी उर्दू के पास आती है, तो संस्कृत से अल्फ़ाज़ लेते हुए उर्दू को दे जाती है। उर्दू और हिन्दी के नज़्दीक अंग्रेज़ी आती है, तो वो कुछ अल्फ़ाज़ ले जा कर दुनिया भर में बाँट देती है। ये सिलसिला हज़ारों साल से चलता चला आ रहा है।

Kya-Urdu-Khichdi-Zabaan-Hai

क्या उर्दू ‘खिचड़ी’ ज़बान है?

बहुत सी भाषाएँ शहरों और इलाक़ों के नाम से संबद्ध होती हैं जैसे सिंध से ‘सिंधी’, पंजाब से ‘पंजाबी’, बंगाल से ‘बंगाली’ आदि, बिल्कुल वैसे ही उर्दू भाषा का नाम भी शहर के नाम पर पड़ा है, यानी शाहजहान आबाद के नाम ‘उर्दू’ पर। इसका लश्कर से कोई सम्बंध नहीं है और न ही ये भाषा किसी छावनी में विकसित हुई।

Urdu Rasm-ul-Khat

उर्दू रस्म-उल-ख़त सीखना क्यों ज़रूरी है

किसी भी ज़बान को पूरी तरह से समझने के लिए, उसके एक-एक लफ़्ज़ के मआनी तक पहुँचने के लिए सबसे पहले ज़रूरी है, कि हमें उस ज़बान की रस्मुल-ख़त यानी लिपि (script) का इल्म होना चाहिए। जब तक हम कोई ज़बान अच्छी तरह से पढ़ और लिख नहीं सकते, हम उस ज़बान से पूरी तरह वाक़िफ़ भी नहीं हो सकते।

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