वो इकलौता लफ़्ज़ जिसका बटवारा अदालत में हुआ
हम अक्सर एक लफ़्ज़ सुनते हैं “ब-नाम”, क्रिकेट मैच में, या किसी भी तरह के मुक़ाबले में, मसलन “भारत ब-नाम न्यूज़ीलैंड का लाइव टेलीकास्ट आ रहा है”। किसी से भी पूछिए कि इस ‘’ब-नाम’’ के मआनी क्या हैं, तो वो यही कहेगा कि इसका मतलब वही है जो अंग्रेज़ी में ‘वर्सेस’ का है, या हिन्दी में ‘विरुद्ध’ का है। यानी किन्ही दो फ़रीक़ में झगड़ा या मुक़ाबला होता है तो उस जगह ये इस्तिमाल होता है।
जबकि ‘ब-नाम’ का मतलब है “इन दी नेम आफ़” यानी किसी के नाम पर। जैसे “ब-नाम-ए-ख़ुदा” यानी ख़ुदा के नाम पर।
अब सवाल ये है कि इस लफ़्ज़ में अंग्रेज़ी के ‘वर्सेस’ के मानी भला कहाँ से और कैसे आ गए। तो इसका ठेकरा फूटेगा हमारी क़ानूनी ज़बान और उसकी इस्तिलाहात पर। ग़ौर करने पर मुझे जो वजह समझ आई वो ये है कि हमारे यहाँ जब मुक़दमा लिखा जाता है तो दोनों फ़रीक़ )पार्टीज़) के नाम लिखे जाते हैं, और उनके दरमियान ‘ब-नाम’ लिखा जाता है। जैसे ‘भारत सरकार ब-नाम मुन्शी रतन लाल’ इस में पहला नाम मुद्दई यानी पेटीशनर और दूसरा नाम मुद्दआ-अलैह यानी रिस्पोंडेंट का होता है। तो इनके दरमियान जो ‘ब-नाम’ होता है उसके आने से ये मतलब निकलता है कि ये मुक़दमा पेटीशनर फ़लाँ ने रिस्पोडेंट फ़लाँ “के नाम पर” दर्ज करवाया है।
लेकिन अंग्रेज़ी की अदालती इस्तिलाह (जुडिशियल टर्मिनोलोजी) में दोनों पार्टीज़ के नामों के दरमियान ‘वर्सेस’ लिखा जाता था। धीरे धीरे उर्दू और फ़ारसी का इल्म कम होता गया, लोग अब ‘ब-नाम’ के मानी नहीं जानते थे, अदालत की ज़बान और मुक़दमे में उर्दू और अंग्रेज़ी दोनों फ़ार्मेटस देख के अंग्रेज़ी के ‘वर्सेस’ को ब-नाम का ट्रांसलेशन समझा जाने लगा, गोया यही इसका मतलब मान लिया गया।
अदालती कांटेक्सट में तो ये फ़र्क़ इतना ज़ाहिर इस लिए नहीं होता क्योंकि दोनों इक दूसरे के अपोनेन्टस भी हैं और एक ने दूसरे के “नाम पे” भी मुक़दमा दर्ज करवाया है, लेकिन अदालत के बाहर भी ये लफ़्ज़ इन्हीं मानी में इस्तिमाल होने लगा। जैसे कहते हैं कि “भारत ब-नाम न्यूज़ीलैंड का मैच है” तो इसमें इस लफ़्ज़ के अस्ली मानी (नाम पर) सिरे से ग़ाएब हैं, और वो “वर्सेस” वाला मतलब मैजूद है यहाँ, जिसका इस लफ़्ज़ से कोई लेना-देना नहीं था। पाकिस्तान में चूँकि हमारे यहाँ के मुक़ाबले उर्दू का इस्तिमाल और उसकी तालीम का रिवाज ज़्यादा है तो वहाँ अभी भी शायद ये लफ़्ज़ अपने अस्ली मानी में ही इस्तिमाल होता है, और “वर्सेस” वाली ग़लती नहीं हुई। हमारे यहाँ चूँकि ऐसा नहीं है तो हमारे यहाँ ये लफ़्ज़ पिछले कुछ सालों से ग़लत मानी में इस्तिमाल होने लगा, और सितम ये की बहुत सारे उर्दू न्यूज़पोर्टलस भी ये ग़लती कर रहे हैं।
तो क़िस्सा मुख़्तसर ये कि कुछ वक़्त ये दोनों यानी ‘ब-नाम’ और ‘वर्सेस’ इक अदालत में साथ रह लिए थे तो अदालत के हुक्म से एक के मानी दूसरे को दे दिये गये। बेचारा मूल-अर्थ (माना-ए-अस्ली) जो की अस्ली हक़-दार था वो अदालत का मुंह तकता रह गया और उसकी जगह पर किसी और को बसा दिया गया। लेकिन ज़बरदस्ती बसाया गया था, या यूँ कहिये की अज्ञानता और कम-इल्मी की वजह से बसाया गया था, इस लिए अब तक इसे वो मक़बूलियत हासिल नहीं हुई कि अहल-ए-इल्म ने भी इसको अपना लिया हो।
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