संगीत की कला: गुण और दोष
संगीत मूल रूप से ध्वनि की कला है। संगीत में ध्वनि की अवधारणा बहुत पुरानी है। आवाज़ यंत्रों की ईजाद से बहुत पहले से मौजूद थी। और आवाज़ ही को नज़ीर बना कर संगीत के साज़ ईजाद हुए हैं। हिन्दोस्तान को राग-रागनियों का मुल्क कहा जाता है। संगीत हिन्दुस्तानी सभ्यता का एक मूल तत्व है। हिन्दुस्तानी संगीत को अपनी कुछ विशेषताओं के आधार पर हिन्दुस्तानी पहचान के तौर पर माना जाता है। मेलोडी, रागों और तालों की विस्तृत और व्यापक प्रणाली हिन्दुस्तानी संगीत की मुख्य विशेषताएं हैं। ऋग वेद के “हमदिया”(ईश्वर का स्तुतिगान) वह लय भरे गीत हैं जिनका ज्ञान हुआ है और जिन्हें हिन्दोस्तान के सबसे पहले साकिनों यानी आर्याओं ने क्रम दिया है। ये नग़मे 1500 ई.पू. से 500 ई.पू. के हैं।
सबसे पुरानी किताबों में देवताओं के स्तुतिगान हैं जो बलिदान संस्कार और मिथकों को फूँकने की उपासना पर आधारित हैं और जिन्हें खण्डों में एकत्र किया गया जो ‘वेद’ के नाम से जाने जाते हैं। ये वो गाने वाले अशआर थे जिन्हें वैदिक भजन का नाम दिया गया है। ई.पू.1500 में ऊपरी सिंध से आए हुए आर्यों ने सारे हिन्दोस्तान में उपासना का जो क्रमिक ढंग स्थापित किया उसमें ये भजन एक महत्वपूर्ण कारक की हैसियत रखते हैं।
चूँकि हिन्दोस्तान में आरम्भ से ही संगीत को उपासना के एक माध्यम के रूप में स्वीकार किया गया इसलिए न केवल ये कि उनके विद्वानों और विचारकों ने उस प्रणाली का विस्तार करने के लिए अपने ज्ञान और आविष्कारशील दिमाग़ का उपयोग किया बल्कि उन्होंने इस कला के लिए नियम और क़ानून भी निर्धारित किए। इस प्रकार दुनिया भर में कोई भी संगीत प्रणाली व्यापकता के एतबार से शास्त्रीय संगीत का मुक़ाबला नहीं कर सकता है। दूसरी चीज़ों के अलावा शास्त्रीय संगीत में गायक के गुण और दोष भी निर्धारित किए गए हैं। चूँकि संगीत को हिन्दोस्तान में एक पवित्र कला की हैसियत रही है इसलिए उन गुणों और दोष का ज्ञान होना संगीतकार और श्रोता दोनों के लिए ज़रूरी था। अफ़सोस अब न उन गुणों पर ज़ोर दिया जाता है और न दोष से बचने की कोशिश की जाती है। नीचे में हम उन गुणों और दोषों की विस्तार से चर्चा करते हैं।
विशेषताएं:
प्रजार: गायिकी की एक ख़ूबी कि गायक का व्यक्तित्व वैभवशाली दिखाई दे। यानी प्रस्तुति के दौरान गायक शिष्ट कपड़े पहने हो। अभी वो ज़माना गुज़रे ज़्यादा वक़्त न हुआ जब गुलूकार ख़ुश लिबास होते थे और प्रस्तुति के दौरान सर पर या तो पगड़ी रखते थे या फिर टोपी। हमारे ग़ज़ल गायक अक्सर अब भी उसी विधान के पाबंद हैं।
परसारी: गायकी का एक ऐब कि गायक गाते वक़्त इज़तरारी नौइयत के नाशाईस्ता इशारे करे।
झपल: गायिकी की एक ख़ूबी यह भी है कि आवाज़ न ज़्यादा बुलंद हो और न ज़्यादा पस्त, बल्कि गहरी और गंभीर हो। और गायक गाने के दौरान सांस को देर तक रोक सके और सांस की संकीर्णता में मुब्तला न हो। यानी गाने के दौरान ये एहसास न हो कि उसकी सांस कम पड़ रही है, क्योंकि जहाँ सांस कम पड़ती है वहाँ सुर ठीक तरह से नहीं लग सकता।
सालोहान: गायिकी की एक ख़ूबी यह है कि गायक किसी ठहराव के बिना देर तक गा सके।
सरादाक: गायिकी की एक ख़ूबी यह है कि आवाज़ खनकदार हो और दूर तक सुनाई दे।
सिखाबा: गायिकी की एक ख़ूबी यह है कि आवाज़ शीरीं हो जिसे सुनकर अहल-ए-महफ़िल ख़ुशी और सुरूर से झूम उठें।
किरण: गायिकी की एक ख़ूबी है कि गायक की आवाज़ में वो दर्द हो कि श्रोताओं के दिलों में गहरा असर पैदा करे।
गद: गायिकी की एक ख़ूबी है कि गायिकी में इतना पारंगत हो कि मंशा के अनुसार ऊंची और नीची आवाज़ निकाल सके।
गुण: गायिकी की एक ख़ूबी है कि आवाज़ साफ़ हो और उसमें थरथराहट न हो।
मधुर: गायिकी की एक ख़ूबी है कि आवाज़ मीठी और ख़ुशकुन हो।
मर्शट: गायिकी की एक ख़ूबी हैकि आवाज़ कुल श्रोताओं पर प्रभावकारी हो।
दोष:
अभाग पत: गायिकी का एक दोष यह है कि गायक बोल के शब्दों को एक दूसरे से मिला कर और गले से चपटा कर यूं अदा करे कि भाव अस्पष्ट हो जाए।
असे चित्त: गायिकी का एक दोष है कि गायक की आवाज़ में विघ्न पैदा हो।
भेहत: गायिकी का एक दोष है कि गायक भयभीत हो कर गाए।
जमपक: गायिकी का एक दोष है कि गायक प्रस्तुति के दौरान अपनी गर्दन और सर हिलाए।
सत्कारी: गायिकी का एक दोष है कि गायक गाने के दौरान गहरी साँसें ले।
संदिष्ट: गायिकी का एक दोष है कि गायक अपने दाँत दबा कर गाए।
संकट: गायिकी का एक दोष है कि गायक बिना विश्वास के गाए।
सन नासिक: गायिकी का एक दोष है कि गायक मिनमिना कर गाए।
कारागी: गायिकी का एक दोष है कि गायक पूरी तरह से मुँह खोल कर गाए।
कारिश: गायिकी का एक दोष है कि गायक की आवाज़ पतली और बारीक हो।
कागा: गायिकी का एक दोष है कि गायक की आवाज़ कव्वे की काएं काएं जैसी हो।
कागे: गायिकी का एक दोष है कि गायक गाने का आग़ाज़ शोर-ओ-गुल से करे।
कपिल: गायिकी का एक दोष है कि गायक नुमाइश कर कर के गाए।
क़राबा: गायिकी का एक दोष है कि गायक गाने के दौरान ऊंट की तरह अपनी गर्दन हिलाए।
कंपित: गायिकी का एक दोष है कि गायक आवाज़ में थरथराहट के साथ गाना शुरू करे।
नासिर: गायिक का एक दोष है कि गायक की आवाज़ बंद और रुँधी हुई हो।
नमेलक: गायिकी का एक दोष है कि गायक आँखें मीच कर गाए।
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