Nuqta

उर्दू शब्दों पर नुक़ता क्यों ज़रूरी है

अगर तुम मिल जाओ ज़माना छोड़ देंगे हम।
अगर तुम मिल जाओ जमाना छोड़ देंगे हम।

नुक़्ता एक बड़ी बहस का मौज़ू’ रहा है लगना चाहिए या नहीं, जो लोग ये कहते हैं कि नुक़्ता लगाने से क्या फ़र्क़ पड़ता है? इसकी क्या ज़रूरत है? देवनागरी में ये कहाँ से आ गया? तो उन्हें बताने के लिए मेरे पास शायद इससे आसान मिसाल नहीं है।

अगर तुम मिल जाओ जमाना छोड़ देंगे हम।

• तसव्वुर कीजिए एक शख़्स है जिसकी ख़्वाहिश है अगर उसे दही का पैकेट मिल जाए तो वह जमाना (तरल पदार्थ को ठोस बनाना) छोड़ देगा।

अगर तुम मिल जाओ ज़माना छोड़ देंगे हम।**

**एक दोशीज़ा है जो विचलित हो रही है, अगर उसे उसका प्रेमी मिल जाए तो ज़ाहिर है वह ज़माना (वह लोक जिसमें हम प्राणी रहते हैं) छोड़ देगी।

अब दोनों मिस्रों’ को ग़ौर से पढ़िए तो एक नुक़्ते के ही फ़र्क़ ने दूसरे मिस्रे’ का पूरा मफ़्हूम बदल दिया।

जिन दिनों हिन्दी-उर्दू विवाद ज़ोरों पर था और अदालतों की भाषा उर्दू हो गई, अख़बारात भी उर्दू में ही शाए’ होते तो एक बड़ी ता’दाद में लोग जिन्हें उर्दू की रस्म-उल-ख़त सीखने में दिक़्क़त हो रही थी, उनके लिए राजा शिवप्रसाद सितारे ‘हिन्द’ ने कोशिश की कि ज़बान उर्दू ही रहे और वो नागरी लिपि में लिखी जाए। उन्होंने कहा फ़ारसी की सभी ध्वनियाँ देवनागरी में व्यक्त होनी चाहिए। जब उन्हें पता चला कि फ़ारसी की पाँच ध्वनियाँ (क़, ख़, ग़, ज़, फ़) नागरी में नहीं हैं तो उन्होंने अक्षर के नीचे नुक़्ता लगाने का सुझाव दिया जिसके मा’नी हैं ‘बिंदु’, यदि आप अपना पेंसिल बॉल-पेन या स्याही की पेन आदि उठाते हैं, और उसे काग़ज़ के टुकड़े से स्पर्श करते हैं, तो काग़ज़ पर एक निशान बन जाता है जो आपके लिए एक नुक़्ते का तसव्वुर पेश करेगा।

नुक़्ता ऐसी शय नहीं है जो बेवजह शोभा बढ़ाने के लिए लगाया जाए बल्कि ऐसी शय हैं जहाँ ज़रूरत हो वहाँ लगाया जाए। हिन्दी के कई अख़बारात में कभी-कभी आपने देखा होगा जहाँ ज़रूरत नहीं होती वहाँ भी नुक़्ता लगा रहता है।

अब कुछ मिसाल देखिए जहाँ बे-वजह नुक़्ता लगा रहता है~

*फ़िर (दुरुस्त~फिर),
*लहज़ा (दुरुस्त~ लहजा)
*इज़ाज़त (दुरुस्त~ इजाज़त)
*बावज़ूद (दुरुस्त~ बावजूद )
*शाक़िर (दुरुस्त~ शाकिर)
*क़फ़न ( दुरुस्त~ कफ़न)
*मिजाज़ (दुरुस्त~ मिज़ाज)
*जंज़ीर (दुरुस्त~ ज़ंजीर )
*ज़ुस्तजू ( दुरुस्त~ जुस्तजू)

नागरी के इन पाँच में से (क, ख, ग, ज, फ) जिस भी हर्फ़ पर नुक़ता लग जाएगा ये उसका तलफ़्फ़ुज़ बदल देगा।

अब इनके उच्चारण स्थान देखिए-

क़ (ق) ~ हलक़ + जिह्वामूल
ख़ (خ) ~ हलक़ + जिह्वामूल
ग़ (غ) ~ हलक़ + जिह्वामूल
फ़ (ف) ~ दंतोष्ठ्य से
ज़ (ذ، ز، ژ، ض، ظ) वर्त्स्य से

यहाँ ध्यान देने की बात यह है कि उर्दू में क, ख, ग, ज, फ ध्वनियाँ भी हैं और क़, ख़, ग़, ज़, फ़ भी। यह तय करने का कोई उपाय नहीं है कि किस क, ख, ग, ज, फ के नीचे नुक़्ता लगेगा और किसके नीचे नहीं लगेगा इसके लिए आपको ज़बान और रस्म-उल-ख़त दोनों का इल्म होना चाहिए, लेकिन ये ज़रूर है कि अरबी-फ़ारसी और अंग्रेज़ी मूल के शब्दों को सहीह लिखने और सहीह तलफ़्फ़ुज़ करने का एक मात्र तरीक़ा है नुक़्ते का सहीह इस्ते’माल। ध्यान रखें नुक़्ते वाले ध्वनियों के तलफ़्फ़ुज़ में हवा थोड़ी सी दबकर गूँज पैदा करती हुई निकलती है ।

कुछ मिसाल देखें ~

क़ (ق) ~ क़लम, क़फ़स, क़त्ल, क़ैद, क़ातिल

ख़ (خ) ~ ख़याल, ख़ातून, ख़ुश-मिज़ाज, ख़ारिज, ख़त

ग़ (غ) ~ ग़लत, ग़ैरत, ग़ुर्बत, ग़ज़ल, ग़ुरबा

फ़ (ف ) ~ फ़क़ीर, फ़रिश्ता, फ़ैज़, फ़िज़ूल, फ़ैसला

ज़ाल (ذ ) ~ ज़हीन, ज़िक्र, ज़ेहन

ज़े (ز ) ~ ज़कात, ज़मीन, ज़र्द, ज़ेवर

ज़्वाद (ض) ~ ज़ब्त, ज़रूर, ज़मीर, ज़िला, ज़’ईफ़

ज़ोय (ظ) ~ ज़फ़र, ज़ालिम, ज़ुल्म, ज़ुरूफ़

इसी तरह अंग्रेज़ी में क़ (q), ख़ (kha) ग़ (gh) फ़ (F) ज़ (Z) इस्ते’माल होंगे!

Note ~ ज़ के लिये ज़्वाद (ض)/ ज़े (ژ)/ ज़ाल (ذ)/ ज़ोए (ظ)- ये चार अक्षर होते हैं। यहाँ ग़ौर करें कि चार अक्षर ज़ के लिये होने के बावजूद ज के लिये जीम (ج) होता है।

अब उन अल्फ़ाज़ को देखिए जो देवनागरी में लिखते वक़्त अगर सहीह नुक़्तों के इस्ते’माल के साथ न लिखे जाएँ तो किस तरह उनका मा’नी बदल जाता है ~

ख़ाना ~ जगह
खाना ~ भोजन

ख़ीरा ~ निर्लज्ज, बेशर्म
खीरा ~ ककड़ी की जाति का एक फल

सज़ा ~ दंड
सजा ~ सजावट

क़मर ~ चन्द्रमा
कमर ~पीठ के नीचे शरीर का एक भाग

राज़ ~ रहस्य
राज ~ शासन

साग़र ~ शराब का प्याला
सागर ~ समुंद्र

ज़न ~ औरत
जन ~ प्रजा

नुक़्ता ~ बिंदु
नुक्ता ~ नई बात पैदा करना, ‘ऐब निकालना

क़िताब ~ कुर्ते का गला
किताब ~ पुस्तक

ख़सरा ~ पटवारी की ऐसी बही जिसमें खेत संबंधी अनेक बातें लिखी जाती हैं
खसरा ~ बीमारी

ज़लील ~ बे-‘इज़्ज़त करना
जलील ~ सम्मानित व्यक्ति

ज़रा ~ कम
जरा ~ बुढ़ापा

ज़माना ~ दुनिया
जमाना ~ ठोस करना

तेज़ ~ फुर्तीला
तेज ~ चमक

कहते हैं कि राजा शिवप्रसाद सितारे ‘हिन्द’ का हिन्दी-उर्दू वालों पर बहुत बड़ा एहसान है!