उर्दू में गेसू-ए-घनश्याम के ख़म

पंडित दयाशंकर नसीम की ‘गुलज़ार-ए-नसीम’ में एक दिलचस्प बात पता चली और ऐसा लगा जैसे कोई पहेली खुली हो, तो वो पहेली ये थी कि गुलज़ार-ए-नसीम में एक शे’र है, साद आँखों के देख कर पिसर कीबीनाई के चेहरे पर नज़र की यहाँ साद से क्या मुराद है ये समझ नहीं आ रहा था, अपने… continue reading