उर्दू अदब का शाहकार : आग का दरिया
उर्दू के अज़ीम नावेल ‘आग का दरिया’ की मुसन्निफ़ा क़ुर्रतुलैन हैदर की पैदाइश 20 जनवरी 1927 को अलीगढ़ में हुई थी। सन 47 में तक़्सीम के ज़ेर-ए-असर वो पाकिस्तान चली गई थीं लेकिन जब सन 1959 में आग का दरिया शाए’ होता तो वो वापस हिन्दुस्तान लौट आईं।
शहर-ए-लखनऊ के इन्द्रप्रस्थ कॉलेज से तालीम-याफ़्ता क़ुर्रतुलैन ने अपनी ज़िन्दगी के आख़िरी दिन उत्तर- प्रदेश के नॉएडा शहर में गुज़ारे और उम्र के 80 सालों के बोझ को उतार कर 2007 में आज़ाद रूह के रंग में सितारों की मानिन्द आसमान में चस्पाँ हो गईं।
इस चमकदार सितारे की ज़ौ से उर्दू अदब आज तक रौशन है। आग का दरिया वो तारीख़ी नॉवेल है, जो बर्र- ए-सग़ीर की दो क़ौमी रियासतों में होने वाली तकलीफ़-देह तक़्सीम के सियाक़-ओ-सबाक़ फ़राहम करता है। ये हिन्द-ओ-पाक के मशहूर-तरीन नॉविलों में से एक है बल्कि लन्दन के मशहूर रिसाले The Times Literary Supplement में आमिर हुसैन ‘आग का दरिया’ के बारे में लिखते हैं, कि जिस तरह से Gabriel García Márquez के नॉवेल One Hundred Years of Solitude ने हिस्पैनिस (Hispanic literature) अदबी दुनिया में जो हैसियत क़ाएम की थी वही हैसियत उर्दू अदब की दुनिया में ‘आग का दरिया’ की है।
Gabriel García Márquez, Peter H. Stone को दिए अपने एक इण्टरव्यू में बताते हैं, “कि जिस मुसन्निफ़ ने कभी 600 कॉपीज़ का आँकड़ा पार न किया हो, जब उसे ये मालूम हो कि उसका पब्लिशर उस के नॉवेल Cien años de soledad (One Hundred Years of Solitude) की 8 हज़ार कॉपियाँ छापने जा रहा है, तो वो सकते में आने के सिवा क्या कर सकता था।”
ये बात और है, कि इस किताब की तबाअत का सिलसिला अब 5 करोड़ का आँकड़ा पार कर चुका है और 37 ज़बानों में ये किताब तर्जुमा हो चुकी है।
United kingdom से शाए होने वाले रिसाले वासफ़ियरी (Wasafiri) ने आग का दरिया को दुनिया के 25 दमदार नॉविलों की फ़ेहरिस्त में शुमार किया था।
The New York Review of Books में पंकज मिश्रा लिखते हैं कि आग का दरिया से क़ब्ल शायद ही उर्दू फ़िक्शन में इस क़िस्म के magisterial ambition और तकनीकी वसाइल की मौजूदगी देखने को मिलेगी। क़ुर्रतुलैन ने इस किताब में बेहद संजीदगी और ज़िम्मेदारी के साथ अपने नुक़्ता-ए-नज़र का इज़हार किया है।
क़ुर्रतुलैन के क़रीबी रहे प्रोफ़ेसर अब्दुल कलाम ने इस किताब के बारे में अपनी राय का इज़हार करते हुए कहा था कि आग का दरिया आपा क़ुर्रतुलैन की trilogy की तीसरी क़िस्त है। उनके पहले दो शाहकार ‘पतझड़ की आवाज़’ (Sound of the Falling Leaves) और A season of betrayal तक़्सीम की यादों से ख़ुद को पाक करने की कोशिशें थीं, जो उन पर भारी पड़ीं। उन्होंने देखा था, कि तक़्सीम के दौरान कितना ख़ून- ख़राबा हुआ था।
चन्द्र गुप्त मौर्य के हुकूमती दौर से लेकर लोदी वंश के ख़ात्मे, मुग़ल सल्तनत की इब्तिदा, अंग्रेज़ों की हुकूमत और हिन्दुतान-पकिस्तान की होने जा रही तक़्सीम तक के वक़्त की तारीख़ को समेटे ये नॉवेल हिन्दुतानी तहज़ीब के लगभग 2 हज़ार सालों का लेखा-जोखा है। मेरे नज़्दीक इस किताब का रुत्बा सलमान रुश्दी के कालजई उपन्यास ‘Midnight’s children’ से कम नहीं जिसे मैं बार-बार हज़ार, बार पढ़ सकता हूँ।
अदिति श्रीराम भी The New York Times में लिखती हैं, कि ये किताब 2019 में भी उतनी ही मुनासिबत रखती जितनी 1959 में रखती थी।
इस किताब को सिर्फ़ इसी लिए नहीं पढ़ना चाहिए कि इस में हिन्दुतानी तहज़ीब के लगभग 2000 सालों की तारीख़ की तफ़्सील है बल्कि इस लिए भी कि क़ुर्रतुलैन हैदर ने इस किताब को जिस ख़ास ढंग और तरीक़े से लिखा है वैसा कहीं और पढ़ने को नहीं मिलता। उन्होंने recrank character की तकनीक का इस्तिमाल किया है। यानी जो किरदार – नीलम, गौतम, चम्पा वग़ैरह नावेल के इब्तिदाई दौर (चन्द्रगुप्त शासन काल) में थे उसी नाम, उसी मज़हब के किरदार नॉवेल के आख़िर 1948 में भी हैं और वो किस तरह से एक-दूसरे से relate करते हैं ये आपको पढ़ कर ही मालूम होगा।
‘आग का दरिया’ का अंग्रेज़ी में तर्जुमा ‘River of Fire’ के उन्वान से ख़ुद क़ुर्रतुलैन हैदर ने किया था, जो सन 1998 में शाए हुआ।
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