अच्छी शायरी क्या होती है (1)
अच्छी शायरी क्या होती है इसका फ़ैसला करना बहुत मुश्किल है। बड़े बड़े दानिश-वरों और नाक़िदों ने मुख़्तलिफ़ तरीक़ों से अच्छी शायरी की तारीफ़ की है इनसे कोई एक ऐसा नतीजा निकालना जो सबको क़ुबूल हो, नामुमकिन सी बात है। आख़िर इसकी वजह क्या है क्यों कोई उसूल इस बारे में नहीं बन सकता। वजह वही है पसन्द अपनी अपनी ख़्याल अपना अपना…
इन्सान की फ़ितरत होती है कि लाशऊरी तौर पर उसका झुकाव उन बातों की तरफ़ होता है जो उसको अच्छी लगती हैं या उसे मुतअस्सिर करती हैं। आलोचक भी चूंकि इन्सान है लिहाज़ा उसकी राय मे उसकी पसन्द ज़रूर दख़्ल-अंदाज़ होगी।
इस लिये हम अच्छी शायरी क्या है ये जानने के लिए Reverse Method अपनाएंगे, यानी पहले ये तय करेंगे कि ख़राब शायरी क्या है लेकिन उससे पहले आधुनिक और रवायती शायरी की भी थोड़ी सी बात कर लेते हैं।
जिन लोगों को किसी शेर में कोई ऐसी बात नज़र आ जाये जो उसने पहले किसी शेर मे न पढ़ी हो और वो बात उसे चौंकाए भी या मुतअस्सिर करे तो वो बरजस्ता कह देगा कि ”बड़ा जदीद शेर है” इसी तरह उसका सौ बार के सुने हुए किसी मफ़हूम का शेर उसे रवायती मालूम होगा। पता ये चला कि अक्सर आधुनिकता और रवायत का तय करना आपके मुतालिए यानी Study पर आधारित है। आपको मीर के यहाँ कोई जदीद शेर भी मिल सकता है और ज़फ़र इक़बाल के यहाँ रवायती शेर भी मिल सकता है।
अच्छी शायरी की बुनियादें
अगर हम अपने शेर मे अपने दौर/समाज का कोई ऐसा मसअला या वाक़िया बयान करते हैं जो मीर या ग़ालिब के दौर में नहीं था तो ये आधुनिक शेर हुआ। ये सोचना ही बेमानी है, ये शेर जदीद आपके लिये थोड़ी हुआ मीर और ग़ालिब के ज़माने वालों के लिये हुआ, वो इसे सुनने या पढ़ने के लिए मौजूद होते तो इसे जदीद कहते। आपके लिए तो आपके दौर का शेर हुआ। इस तरह से ये वक़्त वाला Base भी जदीद और क़दीम के संदर्भ में ज़ियादा असर-अंगेज़ नहीं है।
शायरी (यानी अदब के मेयारों पर पूरी उतरने वाली शायरी) की बुनियाद दर-अस्ल इंसान की फ़ितरी सोच, ज़रूरियात, मजबूरियों, दुख-सुख ,ख़ुशी और ग़म की नफ़्सियात, अपने ज़मीनी तजर्बे, मुशाहिदे और तजज़िये का एक निज़ाम है, जो चंद मुन्तख़ब शब्दों से तरतीब पाता है।
इंसान की फ़ितरी नफ़्सियात की बुनियाद वक़्त पर मुनहसिर नहीं है। ये कभी नहीं बदलती। मुहब्बत के मुख़्तलिफ़ शोबों जैसे ख़ुशी / ग़म हिज्र / वस्ल के अच्छे बुरे अहसास का मज़ा या दर्द आज भी वैसा ही है जैसा सदियों पहले था। वक़्त के साथ इन सब बातों के इज़हार के तरीके बदल जाते हैं बुनियादी सूरत-ए-हाल तो वही रहती है। मिसाल के तौर पर मीर के दौर की दुल्हन पालकी में बैठी हुई है, और हमारे ज़माने की दुल्हन कार में बैठी हुई है, मगर दोनों के दिलो ज़हन में उस वक़्त जो चल रहा है वो कम-ओ-बेश एक जैसा ही है।
रवायती और जदीद शायरी का फ़र्क़
‘अब अगर मैं पालकी में बैठी दुल्हन को अपने शेर का किरदार बनाऊँ तो मैं रवायती हूँ, कार या हवाई जहाज़ में बैठी दुल्हन की मन्ज़र-कशी करूँ तो जदीद हूँ’ अस्ल में ऐसा नहीं है। जब कि हक़ीक़त ये है कि मैं शायर ही नहीं हूँ, मुझे शायर होने के लिए पालकी या कार का ज़िक्र नहीं बल्कि उस का ज़िक्र करना चाहिये जो एक नई दुल्हन के जहन-ओ-दिल में चलता है, या चल रहा है। जो कि मीर के ज़माने में भी ऐसा ही था जैसा कि अब है, लिहाज़ा अस्ल शायरी (यानी दाख़िली शायरी) में जदीद और क़दीम की कोई तफ़रीक़ मुनासिब नहीं। हाँ!! ज़िन्दगी की कुछ क़दरें और रस्म-ओ-रिवाज बदलते रहते हैं अगर वो पहले से अच्छे हो गए हैं तो शायर उसका ज़िक्र नहीं करते। जैसे पहले लड़कियाँ सरकारी नौकरी नहीं करती थीं, शादी के बाद घरेलू काम-काज में ही ज़िन्दगी बसर हो जाती थी । ये एक Positive Change है, इसका ज़िक्र नहीं होगा या बराये नाम होगा। लड़की के कमाने की वजह से उसके घर मे जो मसाइल पैदा होते हैं, जैसे शौहर से तअल्लुक़ात में कशीदगी वग़ैरा, इस पर ख़ूब शायरी होगी और इसे जदीद भी कहा जायेगा। लेकिन ये आफ़ाक़ी Universal नहीं है, दुनिया की तीन अरब औरतों मे कितनी नौकरी करती हैं और कितनों के यहाँ इसकी वजह से फ़ैमिली टेंशन है Universal सिर्फ़ एक Subject है, मुहब्बत इश्क़ और बाक़ी सारी चीज़ें यानी हमारा हंसना, रोना, जीना, मरना, इबादत करना, खाना और खिलाना बच्चों को पालना, बीमार का इलाज करना, मुरदे को दफ़्न करना या जलाना सब मुहब्बत से ही जुड़े हुए Emotions हैं।
क्राफ़्ट की अहमियत
इस से पहले हम रवायती शायरी और जदीद शायरी के फ़र्क़ पर बात कर चुके हैं। इस गुफ़्तुगू में ये बात भी शामिल है कि शायरी में तर्ज़-ए-इज़हार यानी Crafting का रोल बहुत अहम है। शेर कहते वक़्त पहला Step बहर / वज़्न रदीफ़ क़ाफ़िया और दूसरे अरूज़ी लवाज़मात हैं। इन्हें आप किसी अरूज़-दाँ से सीख सकते हैं, किसी किताब से सीख सकते हैं, ये सिर्फ़ साँचा या Packing Material है। इसमें क्या भरना है, कैसा माल भरना है, ये आप के शेरी ज़ौक़, Study, और लगन पर मुनहसिर करेगा। मुख़्तसर ये कि उस्ताद आपको अरूज़ी (बहर के) नियम-क़ायदे सिखा सकता है, मगर शायरी नहीं सिखा सकता। यही सबब है कामयाब अरूज़-दाँ अक्सर कामयाब शायर नहीं होते। उनकी सारी सलाहियत Packing को ख़ूबसूरत और फिट रखने में ख़र्च हो जाती है। अंदर का माल यूँही सा होता है।
आइये अब शेर-गोई की तरफ़ आते हैं!!
आप दो तरह से शेर कह सकते हैं।
1- बराहे रास्त
2- इस्तिआरे और अलामतों के इस्तेमाल के ज़रिए
हमारे लिए ज़रूरी है कि सतही शायरी से बचने की कोशिश करें , जो बराह-ए-रास्त भी होती है और इस्तिआराती (रूपक) भी। यहाँ एक बात और clear करना ज़रूरी है कि मैं सतही शायरी की मिसालें शेर की शक्ल में नहीं दे सकता, फिर ये गुफ़्तगू तवील भी हो जाएगी और किसी की दिल आज़ारी का सबब भी हो सकती है।
बराहे रास्त (सतही) शायरी
हमारे यहाँ अदब में कुछ अक़वाल-ए-ज़र्रीँ मौजूद हैं जो सदियों से चले आ रहे हैं, जिन पर पुराने उस्तादों ने ला-तादाद शेर कह रखे हैं जो लोगों को रट गए हैं, इनका इस्तेमाल आपके शेर को सतही कर सकता है,
1- सच की हमेशा जीत होती है
2- मौत सब को आनी है
3- सब से बड़ा मज़हब इंसानियत है
4- वही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है
5- मुहब्बत अंधी होती है
6- आईना कभी झूट नहीं बोलता
ऐसे ही और बहुत से जुमले हैं, अगर आप इनका बराह-ए-रास्त इस्तेमाल करेंगे तो कोई बा-ज़ौक़ और सुख़न फ़हम Reader मुतअस्सिर नहीं होगा। आपका शेर सच्चा होते हुए भी सतही हो जाएगा।
हाँ ! अगर इनका इस्तेमाल अगर आप किसी मन्ज़र या वाक़िए की मदद से करेंगे तो आपका शेर अच्छा हो जाएगा।
इस क़ौल की एक शायराना मिसाल ये है कि ”मज़लूम की मदद अल्लाह करता है” ये शेर देखिये,
शिकारी ने तो इक इक तीर बे-आवाज़ फेंका था
परिंदे पेड़ पर बैठे हुए किसने उड़ा डाले
Note- इस की अगली क़िस्त कल यानी 10 तारीख़ को पब्लिश होगी।
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