Articles By Vijay Sharma

Urdu Blog

 आईना-दर-आईना

आईने ने शाइरों का काम बहुत आसान बनाया, इतना आसान कि उस पर हज़ारों शेर कहे गए और अब नए शोरा आईने पर शेर कहते हुए या तो नए ज़ाविए तलाश करते हैं, या इस इस्तिआरे से ही गुरेज़ करते नज़र आते हैं।

Majrooh Sultanpuri, ‎मजरूह सुल्तानपुरी

मजरूह सुल्तानपुरी : जिन्हें जिगर मोरादाबादी ने फ़िल्मों में लिखने के लिए राज़ी किया

एक दिन मजरूह साहब अपने रिकॉर्ड प्लेयर में मल्लिका-ए-तरन्नुम ‘नूरजहाँ’ की गायी और फ़ैज़ साहब की लिखी नज़्म “मुझसे पहली सी मुहब्बत…” सुन रहे थे। इस नज़्म में एक मिसरा आया ‘तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है’। मजरूह साहब इस मिसरे के दीवाने हो गए और उन्होंने फ़ैज़ साहब से बात की कि वो इस मिसरे को ले कर एक मुखड़ा रचना चाहते हैं। फ़ैज़ साहब ने इजाज़त भी दे दी।

Shankar Shailendra Blog

शैलेन्द्र के नाम

‘रूपहले परदे पर चमकते हर्फ़’ सीरीज़ में आज हम याद करेंगे गीतकार शैलेन्द्र को, जिन्होंने सैकड़ों ऐसे गीत हमें दिए, जिन्हें भुलाए भुलाया नहीं जा सकता | शायद आपको मालूम हो कि हिन्दुस्तानी सिनेमा को सैकड़ों मानीखेज़ गीत देने वाले शैलेन्द्र ने कभी ‘सेंट्रल रेलवे’ में वेल्डिंग अपरेंटिस के तौर पर भी काम किया था | उसके बाद वे एक थिएटर से जुड़े और फिर वहाँ से इन्होंने सिनेमा जगत् की तरफ़ अपना रुख़ किया |

Dilip Kumar

जब दिलीप कुमार ने एक लफ़्ज़ में अपनी ऐक्टिंग का राज़ बताया

टॉम अल्टर साहब एक जगह फ़रमाते हैं कि एफ़-टी-आई-आई से अदाकारी की डिग्री हासिल करने के बाद जब उनकी मुलाक़ात दिलीप साहब से हुई, तो उन्होंने दिलीप साहब से पूछा, “दिलीप साहब अच्छी एक्टिंग का राज़ क्या है ?” दिलीप साहब ने उन्हें एक बेहद सादा सा जवाब दिया था, “शेर ओ शायरी”|

Urdu Shayari

क्या शायरी परफ़ॉर्मिंग आर्ट है

आज डिजिटल दौर में ‘शायर बनना’ वाकई बहुत आसान हो गया है | शायरी में करियर ढूँढने से पहले अपनी शायरी का उद्देश्य ढूँढना एक ज़रूरी काम है | इस काम में जीवन गुज़र जाने जैसी बात है | रिल्के कहते हैं कि हम जीवन भर शायरी करते रहते हैं और अंत में पता चलता है कि हमने जीवन भर में एक नज़्म कही | बात सिर्फ़ उद्देश्य पर भी ख़त्म नहीं होती |

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