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मीना कुमारी का जौन एलिया से भी एक रिश्ता था
पाकिस्तानी पंजाब के ‘भेरा’ से हिन्दुन्तान आए ‘मास्टर अली बक्स’ की दूसरी पत्नी प्रभावती देवी जो आगे जाकर ‘इक़बाल बेगम’ के नाम से मशहूर हुईं, की कोख से जन्मीं बे- इन्तेहा ख़ूबसूरत, ‘ट्रेजेडी क़्वीन’ की तश्बीह से नवाज़ी जाने वाली ‘महजबीन बानो’ जिन्हें अब तमाम दुनिया ‘मीना कुमारी’ के नाम से जानती है। जानने वाले जानते होंगे कि मीना कुमारी की नानी हेम सुन्दरी टैगोर रवीन्द्रनाथ टैगोर के छोटे भाई की पत्नी थीं। जानने वाले ये भी जानते होंगे कि मीना कुमारी न केवल फ़िल्मी अदाकारा थीं बल्कि उन्होंने कई फ़िल्मों में पार्श्वगायन भी किया है। उनके द्वारा गाए गए तमाम गीतों में फ़िल्म ‘दुनिया एक सराए’ के ‘माँ देख री बदली हुई जवान’ और ‘सावन बीत गयो माई री’, फ़िल्म ‘पिया घर आ जा’ के दस नग़मों में से आठ- ‘एक बार फिर कहो’, ‘अँखियाँ तरस रहीं पिया’, ‘न कोई दिलासा है’, ‘देस पराए जाने वाले’, ‘नैन बसे हो राजा दिल में’, ‘नैन डोर से बाँध लियो चितचोर’, ‘मिलीं आज पिया से अँखियाँ’ और ‘मेरे सपनों की दुनिया बसाने वाले’, फ़िल्म ‘पाकीज़ा’ का ‘लेके अंगड़ाई’, फ़िल्म ‘बिछड़े बालम’ के ‘हसीनों को दिल में बसाना बुरा है’, ‘एक आग लगी दिल में’, ‘बोल रे बोल मेरे प्यारे पपीहे’, ‘हाए पिया मुझे ललचाए जिया’, ‘मेरे पिया न आए’ और ‘आता है दिल प्यार’, फ़िल्म ‘पिंजरे के पँछी’ का ‘ऐसा होगा’ जिसके बोल ‘गुलज़ार’ साहब ने लिखे थे, को भी मीना कुमारी की आवाज़ में जाविदानी नसीब हुई।
1 अगस्त 1933 को ‘बॉम्बे’ में पैदा हुई महजबीन बानो ने महजबीन बानो से मीना कुमारी होने तक ‘साहब बीवी और ग़ुलाम’, ‘मेरे अपने’, ‘पाकीज़ा’, ‘दिल एक मन्दिर’, ‘फ़ुट पाथ’, ‘परिणीता’, ‘बैजू बावरा’, ‘काजल’ और ‘दिल अपना और प्रीत पराई’ जैसी फ़िल्मों में बे- मिसाल अदाकारी करते हुए तमाम दुनिया में धड़कने वाले दिलों की जुम्बिश हो जाने का सवाब हासिल किया।
मीना कुमारी ने 4 फ़िल्म फ़ेयर के साथ-साथ कई फ़िल्मी ख़िताब हासिल किए। फ़िल्मी नाक़िदीन ने मीना कुमारी को हिन्दी सिनेमा की “historically incomparable actress” या’नी तारीख़ी तौर पर लाजवाब अदाकारा क़रार दिया था।
मीना कुमारी के शौहर मशहूर शाइर जौन एलिया के चचेरे भाई; महल, पाकीज़ा, दाएरा और रज़िया सुल्तान जैसी क्लासिक फ़िल्मों के निर्देशक कमाल अमरोही के नाम से फ़िल्मी दुनिया ख़ूब अच्छी तरह वाक़िफ़ है।
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जानने वाले जब इतना सब जानते हैं तो वो ये भी जानते ही होंगे कि मीना कुमारी से वाबस्ता तमाम ख़ूबियों में से एक ख़ूबी उनकी संजीदा शाइरी भी थी।
मीना कुमारी अपने इन्तक़ाल (31 मार्च 1972) से क़ब्ल अपनी वसीयत में अपनी डायरियों और शाइरी के कॉपीराइट गुलज़ार साहब के नाम लिख कर गई थीं।
(गुलज़ार साहब द्वारा सम्पादित ‘मीना कुमारी की शाइरी’ के दीबाचे में गुलज़ार लिखते हैं कि- मैं इस ‘मैं’ से बहुत डरता हूँ। शाइरी मीना जी की है, तो फिर मैं कौन? मैं क्यों?
मीना जी की वसीयत में पढ़ा कि वो अपनी रचनाओं और डायरियों के सर्वाधिकार मुझे दे गई हैं। हालाँकि उन पर अधिकार उनका भी नहीं था, शाइर का हक़ अपना शे’र भर सोच लेने तक तो है; कह लेने के बा’द उस पर हक़ लोगों का हो जाता है। मीना जी की शाइरी पर वास्तविक अधिकार तो उनके चाहने वालों का है और वो मुझे अपने चाहने वालों के अधिकारों की रक्षा का भार सौंप गई हैं।
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वो मीना कुमारी के अशआर से बात को आगे बढ़ाते हुए लिखते हैं-
न हाथ थाम सके न पकड़ सके दामन
बड़े क़रीब से उठकर चला गया कोई
मीना जी चली गईं। कहती थीं:
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा
और जाते हुए सचमुच सारे जहान को तन्हा कर गईं; एक दौर अपने साथ लेकर चली गईं। लगता है कि किसी दुआ में थीं। दुआ ख़त्म हुई, आमीन कहा, उठीं और चली गईं। जब तक ज़िन्दा थीं, सरापा दिल की तरह ज़िन्दा थीं। दर्द चुनती रहीं, बटोरती रहीं और दिल में समोती रहीं। कहती रहीं:
टुकड़े- टुकड़े दिन बीता धज्जी- धज्जी रात मिली
जिसका जितना आँचल था उतनी ही सौगात मिली
जब चाहा दिल को समझें हँसने की आवाज़ सुनी
कोई जैसे कहता हो लो फिर तुमको अब मात मिली
बातें कैसी घातें क्या चलते रहना आठ पहर
दिल- सा साथी जब पाया बेचैनी भी साथ मिली
समन्दर की तरह गहरा था दिल। वो छलक गया मर गया और बन्द हो गया। लगता यही है कि दर्द ला-वारिस हो गए, यतीम हो गए, उन्हें अपनाने वाला कोई नहीं रहा।
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गुलज़ार लिखते हैं कि मैंने जब एक बार उन्हें उनका पोर्ट्रेट नज़्म करके दिया था।
लिखा था:
शहतूत की शाख़ पे बैठी मीना
बुनती है रेशम के तागे
लम्हा- लम्हा खोल रही है
पत्ता- पत्ता बीन रही है
एक- एक साँस बजा कर सुनती है सौदाइन
एक- एक साँस को खोल के अपने तन पर लिपटाती जाती है
अपनी ही साँसों की क़ैदी
रेशम की ये शाइर इक दिन
अपने ही तागों में घुट कर मर जाएगी
पढ़कर हँस पड़ीं। कहने लगीं- ‘जानते हो न, वो तागे क्या हैं? उन्हें प्यार करते हैं। मुझे तो प्यार से प्यार है। प्यार के एहसास से प्यार है। प्यार के नाम से प्यार है। इतना प्यार कोई अपने तन से लिपटा कर मर सके, तो और क्या चाहिए?’)
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मीना कुमारी उन्हें प्यार करने वाले रेशम के तागों में घुटकर उनकी जानिब तहज़ीब से पड़ने वाली हर एक आँख को अलविदाअ कहकर आसमान में महताब-ए-दरख़्शाँ की मानिन्द रौशन हो गईं। और जाते- जाते कह गईं:
जब ज़ुल्फ़ की कालिख में गुम जाए कोई राही
बदनाम सही लेकिन गुमनाम नहीं होता
मीना ज़िन्दगी से उदास थीं या नाराज़ या तमाम उम्र की जागी हुई, अपनी आँखों के हक़ में सोचती थीं, जो कहती थीं:
मौत की गोद मिल रही हो अगर
जागे रहने की क्या ज़रुरत है
साँस भरने को तो जीना नहीं कहते या रब
दिल ही दुखता है न अब आस्तीं तर होती है
उनकी आँखों को ग़ौर से देखो तो आवाज़ आती है:
काले चेहरे काली ख़ुश्बू सबको हमने देखा है
अपनी आँखों से इन सबको शर्मिन्दा हर बार किया
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मीना कुमारी के बारे में सोचने बैठो तो ज़िन्दगी कम है, लिखने बैठो तो आइन्दा की बाक़ी 6 उम्रें भी। अब जब मैं चाहता हूँ कि इस तहरीर को उनकी एक नज़्म ‘रात सुनसान है’ के साथ ख़त्म कर दूँ तो उँगलियाँ नाराज़ हुई जाती हैं, दिल रूठा जाता है, मेरी अपनी आँखें मुझे ही घूरने लगी हैं लेकिन मुझे अपनी तमाम मजबूरियों के बाइस इस तहरीर को अब अंजाम देना ही पड़ेगा, बहरहाल:
रात सुनसान है
तारीक है दिल का आँगन
आसमाँ पर कोई तारा न ज़मीं पर जुगनू
टिमटिमाते हैं मेरी तरसी हुई आँखों में
कुछ दिए-
तुम जिन्हें देखोगे तो कहोगे आँसू
दफ़अतन जाग उठी दिल में वही प्यास जिसे
प्यार की प्यास कहूँ मैं तो जल उठती है ज़बाँ
सर्द एहसास की भट्टी में सुलगता है बदन
प्यास ये प्यास इसी तर्ह मिटेगी शाएद
आए ऐसे में कोई ज़ह’र ही दे दे मुझको
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