Tag : Jaun Elia

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ये जो मोहब्बत है: वैलेंटाइन डे स्पेशल

उर्दू शायरी में इश्क़ के बारे में ये और ऐसे कई शे’र मशहूर हैं मगर ऐसा नहीं है कि इश्क़ और आशिक़ की बरबादी के क़िस्से सिर्फ़ उर्दू शायरी तक महदूद रह गए हैं। हिंदुस्तान की और ज़बानों और इलाक़ों में भी देखा जाए तो पंजाब की तरफ़ हीर-राँझा, सोहनी-महीवाल, मिर्ज़ा-साहिबा और सस्सी-पुन्नू के क़िस्से हमें ख़ूब मिलते हैं जिन का असर बॉलीवुड में भी बहुत है।

Hazrat-e-Ishq, हज़रत-ए-इश्क़

हज़रत-ए-इश्क़, जो उस्तादों के उस्ताद हैं

हिन्दुस्तानी तहज़ीब से वाक़िफ़ हर शख़्स ये बात जानता है कि कोई भी फ़न सीखने के लिए, इल्म हासिल करने के लिए पहले उसके लायक़ बनना ज़रूरी है, ये वो ज़मीन है जहाँ गुरुओं, उस्तादों, शिक्षकों का सम्मान करना शिक्षित होने की पहली सीढ़ी माना जाता है, ऐसे में उस्तादों का एहतराम करने की रवायत बन जाती है जो कई शेरों में झलकती है।

Shayari Blog

शेर हमारे जीवन से जुड़े रहते हैं

हम जैसों की ये कैसी मजबूरी है कि हम अपनी ख़ुशी या ग़म सिर्फ़ और सिर्फ़ शेरों में ढूंढते है। शायद हमारे पास और कोई तरीक़ा ही नहीं। ये अलग बात की आस-पास, दूर या नज़दीक तक कोई शाइरी वाला है ही नहीं। मगर कुछ शेर ऐसे भी होते है जो आपके सामने वो मंज़र याद दिला देते है जिसे आप बरसों से भूलने की कोशिश में होते है।

Jaun Elia

जौन तो एक धड़कता हुआ दमाग़ था!!

जौन वो शमअ’ थी जिसको मालूम था कि लोग उसके बुझने का नज़्ज़ारा करना चाहते हैं। जौन एलिया ने कभी कोशिश भी नहीं की समाज की उस रस्म को निभाने की, जिसमें अपने ज़ख़्मों को छुपाया जाता है, उनकी सर-ए-आम नुमाइश नहीं की जाती। रोया तो बीच महफ़िल रो दिया।

Urdu Articles

बात करना या बात करनी – दिल्ली और लखनऊ वालों का मसअला

अस्ल में इस बखेड़े की वजह है दिल्ली और लखनऊ स्कूल का एक क़दीम इख़्तिलाफ़ मसदरी प्रतीक को लेकर। मसदरी प्रतीक कहते हैं वो अलामत जो फे़अल की अस्ल सूरत यानी मसदर पर लगती है। ‘खिलाना’ ‘पिलाना’ ‘खाना’ ‘देखना’ ‘भागना’ वग़ैरा ये मसदरी सूरतें हैं और उनके आख़िर में जो “ना” है वो अलामत-ए-मसदरी है।

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