Shariq Kaifi

मामूली चीज़ों को ग़ैर-मामूली बना देने वाला शाइर

अगरचे ये शाइरी क्लासिकी उर्दू शाइरी के रिवायती साँचे से बहुत मेल खाती हुई नज़र नहीं आती, लेकिन ये हम-अस्र इंसानी तज्रबात और नफ़्सियात की गहरी तहों को खंगालने में रिवायत और जिद्दत के हर टूल के सहारे से अपना काम करती है। उनकी ग़ज़ल महज़ तख़लीक़ी सलाहियतों के इज़हार का अमल नहीं बल्कि किसी नादीदा-ओ-नायाब नुक्ते की तलाश, समाजी हक़ीक़तों के बयान और इंसानी वुजूद की पेचीदा तहों को बे-नक़ाब करने का ज़रीआ है।

Achchi Shayari Kya Hoti Hai (2)

अच्छी शायरी क्या होती है (2)

शायरी बिल-ख़ुसूस ग़ज़ल की शायरी इशारों कनायों और तशबीह का फ़न है इसका अहम ज़ेवर इस्तिआरे हैं। इस्तिआरे का मानी उधार लेना है, यानी हम किसी लफ़्ज़ का मफ़हूम किसी दूसरे लफ़्ज़ से लेते हैं, तो वो इस्तिआरा कहलाता है, जैसे ‘सफ़र’ ज़िन्दगी का इस्तिआरा है, ‘दरिया’ वक़्त का इस्तिआरा है क्योंकि वक़्त की तरह आगे बढ़ता रहता है।

Achchi Shayari Kya Hoti Hai

अच्छी शायरी क्या होती है (1)

अच्छी शायरी क्या होती है इसका फ़ैसला करना बहुत मुश्किल है। बड़े बड़े दानिश-वरों और नाक़िदों ने मुख़्तलिफ़ तरीक़ों से अच्छी शायरी की तारीफ़ की है इनसे कोई एक ऐसा नतीजा निकालना जो सबको क़ुबूल हो, नामुमकिन सी बात है। आख़िर इसकी वजह क्या है क्यों कोई उसूल इस बारे में नहीं बन सकता।

Best Quotes of Premchand

प्रेमचंद की वो बातें जो हमेशा जीवन में नई रौशनी भरती हैं

प्रेमचंद पिछले सौ बरसों से तमाम तरह के अदबी-ओ-समाजी डिस्कोर्स के माध्यम से हमारे ज़हनों में मौजूद रहे हैं। यहाँ हम ख़ास आपके लिए प्रेमचंद के रचना-संसार से कुछ ऐसे चुनिंदा उद्धरण पेश कर रहे हैं जो न सिर्फ़ साहित्य को समझने में बल्कि जीवन के लिए भी रौशनी का स्रोत साबित होंगे।

Zabaan ke bhi pair hote hain-01

ज़बान के भी पैर होते हैं

उर्दू के सबसे बलन्द क़िले लखनऊ और दिल्ली में तामीर हुए। हिन्दवी के बाद यह दो शक्लों में तब्दील हुई जिनमें से एक हिन्दी के नाम से जानी गई जिसकी लिपि संस्कृत की लिपि यानी देवनागरी है और दूसरी उर्दू जिसकी लिपि फ़ारसी की लिपि है जिसे नस्तालीक़ कहा जाता है। उर्दू के हक़ में मैं इससे मुफ़ीद जुमला कुछ नहीं समझता कि उर्दू आम आदमी की ज़बान है। और आम आदमी के करोड़ों चेहरे करोड़ों मुँह हैं और जितने मुँह उतनी बातें।

Night Shayari, Shayari on night, A Metaphor to a Hundred Colours

Night- A Metaphor to a Hundred Colours

Ghalib, unconventionally romantic in his couplets, portrays night as the darkness in which the beloved shines. Perhaps it’s only the bewitching scattered tresses which deceive the lover into thinking that he alone enjoys sleep, peace and the night!

Twitter Feeds

Facebook Feeds