Shayari Blog

शेर हमारे जीवन से जुड़े रहते हैं

हम जैसों की ये कैसी मजबूरी है कि हम अपनी ख़ुशी या ग़म सिर्फ़ और सिर्फ़ शेरों में ढूंढते है। शायद हमारे पास और कोई तरीक़ा ही नहीं। ये अलग बात की आस-पास, दूर या नज़दीक तक कोई शाइरी वाला है ही नहीं। मगर कुछ शेर ऐसे भी होते है जो आपके सामने वो मंज़र याद दिला देते है जिसे आप बरसों से भूलने की कोशिश में होते है। आदिल मंसूरी का एक शेर मैं ज़ुबाँ पर कभी नहीं लाना चाहता मगर आदिल ऐसे थोड़ी मेरा पीछा छोड़ेगा। बात यूँ है कि मेरा एक क़रीबी दोस्त है। घर में सबसे बड़ा, इकलौता कमाने वाला। उसके पापा तो चल बसे है। माँ अभी ज़िंदा है मगर बीमार है। दो बच्चे जुड़वा और एक बड़ी बेटी है। मानो उस घर का शजर। अचानक पता नहीं उसकी बीवी को कहाँ से एक बीमारी लग गई। 6 महीने तक आंख नहीं झपकाई। मैं गवाह हूँ इस बात का। नींद नदारद थी। हाई डिप्रेशन, तनाव, बेक़रारी इतनी उदासी की आप उसके घर जाओ तो नासिर का शे’र ज़िन्दा लगे….

उदासी बाल-ओ-पर खोले घर में डेरा जमाए हुए। मैंने उस घर में क़सम से ये महसूस किया है। अस्पताल में इलाज भी शरू हुआ। दिमाग़ी हालत बिगड़ गई थी। मैं ख़ुद कई बार मिलने गया था। बहुत समझाया भी था, हौसला भी बढ़ाया था। वो मान भी गई कि सब ठीक हो जाएगा। लेकिन मन ही मन शायद उसने तय कर लिया था कि अगला पड़ाव ख़ुदकुशी है।

आख़िर वो दिन आ गया। उस दिन मैं पता नहीं क्यूँ जल्दी उठ खड़ा हुआ और सवेरे बे-वक़्त ही शहर चला गया था। चितरंजन भाई के ऑफ़िस पे बैठा हुआ था। और वो गवाह है कि मैंने कहा था, आज का दिन बहुत भारी है। जी उदास है शायद कुछ होने वाला है। मैंने उसे शेर भी सुनाया…

अभी बात ख़त्म नहीं कि थी कि दोस्त का कॉल आया की अस्पताल में इंतज़ाम करें आपकी भाभी ने केरोसिन छिड़क लिया है। मैं और चितरंजन जी दोनों अस्पताल पहुंचे। कुछ देर में एम्ब्युलेंस से वो भी आये। डॉक्टर ने राजकोट रिफ़र करने को कहा। वो जल्दी से निकले भी। जाते जाते मैंने पूछा कि ये क्या किया आपने। वो सिर्फ़ इतना बोली। “जो किया सही किया। शायद अब सुकून मिले।‘’ शायद वो मुझे समझा रही थी…

उनके जाते ही डॉक्टर ने हमें बताया ‘मुझे नहीं लगता ये अब ज़िन्दा वापस आएगी।‘ और यही हुआ। और घण्टे भर में फ़ोन आया ‘वो अब नहीं रही।’ और आदिल मंसूरी का शे’र मुझे याद आया…..

दोस्त के ससुराल वाले आये। बहुत अच्छे ख़ानदानी लोग थे। कोई शिकवा, शिकायत, गिला कुछ नहीं किया। एक लफ़्ज़ नहीं कहा। शायद वो भी जानते थे कि उदासी ने अपना काम किया है। लेकिन लौटते वक़्त बच्चों को साथ ले गए। शायद जानना चाहते थे कि कहीं कुछ हुआ तो नहीं था? इधर अब जो ग़मगीनी छाई थी मैं नहीं बता सकता। रात बहुत भारी और बोझल थी। मेरे दोस्त ने मुझे कान में कहा। कुछ भी करो मेरे बच्चें को ले आओ। इस मज़बूत, फ़ौलादी इंसान को मैंने इतना लाचार कभी नहीं देखा था। टूट गया था, बस बिखरने की देर थी। मैं कुछ काम नहीं आ सकता था लेकिन हिम्मत जुटा कर टेक्सी मंगवाई और चितरंजन भैया को उसके पास छोड़ते हुए एक शेर सुनाया….

बड़ी मेहनत लगी मगर परिंदों को तो मैं वापस ले आया। सुब्ह को मैं घर पहुंचा, बैचेनी के आलम में थोड़ी ख़ुशी मिली थी तो नींद भी आ गई। उस हादसे के बा’द नींद मेरी आँखों से भी ग़ायब है। मेरे बेटे ने सूरज के उगते ही उठाया की आपका फ़ोन बज रहा है। हड़बड़ा कर उठा, बात की तो दोस्त इतना बोला कि ‘यहाँ आओ और कह दो की ये हादसा ख़्वाब है।’ फिर सोचा उस गांव में, उस घर में क्या माहौल होगा..!? काश…. ये ख़्वाब ही होता…. आज भी वो मंज़र मैं नहीं भूल पाता। आज भी ये कुछ शेर मैं नहीं भूल पाता। अब मैं उस दोस्त के घर नहीं जाता, न तो जाना चाहता हूँ। मगर इत्तफ़ाक़न कभी उसकी गली से गुजरना हुआ और दोस्त मिल गया तो उसके माथे पर पड़ती शिकन में मुझे दो मिसरे उभरते दिखते है। ग़ौर करने पर मिसरे शेर में तब्दील हो जाते है। लगता है जैसे वो मुझे कहना चाहता है….

सुना है कि वहां अब सब ठीक हो गया है। सब कुशल मंगल है। सब हंसी ख़ुशी से रहते हैं। शजर फिर से हरा-भरा हो गया है। उसके परिंदों को भी अब पर निकल आये हैं। लेकिन कभी कभी ख़याल आता है…..

ये सब शेर ज़िंदा शेर हैं मेरे लिए। मैंने ज़िन्दगी में कुछ नहीं किया है। बस ऐसे शे’र को जीता रहता हूँ। हर मिसरे का लुत्फ़ लेता हूँ। मुझे बनाया ही ऐसा गया है। सिर्फ़ और सिर्फ़ शाइरी के लिए। यूं तो इस काइनात में मेरा कोई रोल ही नहीं। बे-वजह मुझे यहाँ भेजा गया है, मेरे पास खोने या पाने को कुछ नहीं है। बेटा बड़ा हो के पूछेगा की तूने ज़िन्दगी भर क्या किया तो गर्व से कहूंगा “मैंने सिर्फ़ शाइरी से मोहब्बत की…. सिर्फ़ शाइरी से”…. अगर वो मुझे समझ पायेगा तो ज़रूर मुस्कुरा देगा। और तअज्जुब भी नहीं होगा, अगर एक दिन हम भी इसी उदासी की आग़ोश से लिपटे हुए मगर मुस्कुराते हुए मिले। और एक लंबी नींद सो जाएं जो कभी नहीं टूटेगी।