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Gulzar Dehlvi

गुलज़ार देहलवी : हमारी गंगा-जमुनी तहज़ीब के अलम -बरदार

पंडित आनंद मोहन ज़ुत्शी गुलज़ार देहलवी अपना जिस्मानी सफ़र तमाम करके हमारी अदबी और तहज़ीबी तारीख़ में एक ऐसी दास्तान के तौर पर दर्ज हो गए हैं, जिसे जब भी पढ़ा या सुना जाएगा तो आँखों से ओझल होती हुई हमारी मुशतर्का तहज़ीब का तमाम-तर हुस्न-ओ-जमाल मुजस्सम हो कर सामने आ जाएगा।

Ghazal

ग़ज़ल में मिसरे का टकरा जाना

आपने सबने ये जुमला ख़ूब सुना होगा कि फ़लाँ ग़ज़ल फ़लाँ ग़ज़ल की ज़मीन पर है। ग़ज़ल की ज़मीन से मुराद ग़ज़ल का ढाँचा है या’नी ग़ज़ल की बह’र, क़ाफ़िया और रदीफ़। मतलब ग़ज़ल की ज़मीन क्या है, ये उसके मतले से तय हो जाता है।

urdu lafz

ये शब्द हमें कहाँ कहाँ ले जाते हैं

उर्दू में हालाँकि लफ़्ज़ के सौत-ओ-आहंग से ये मुआमला उतना वाज़ेह नहीं होता, हाँ रिवाज की वजह से हमारे ज़हन पर इस लफ़्ज़ के मनफ़ी या मुसबत असरात पहले से नक़्श होते हैं लेकिन फिर भी लफ़्ज़ का माद्दा क्या है उसका मसदर क्या है उसका मूल क्या है, यह बातें बहुत हद तक अर्थ को ज़ाहिर कर देती हैं।

Sher mein Ek Lafz Ka Kamaal

शेर में एक लफ़्ज़ का कमाल

आज के ज़माने मे ये हुनर यानी एक, दो लफ़्ज़ों से मैयारी शायरी करना बड़े मुस्तनद और तजरबे-कार शाइरों मे ही पाया जाता है। मै चन्द मिसालों की मदद से रेख़्ता के कारईन बिल-ख़ुसूस नये लिखने वालों तक इस हुनर की तरसील करना चाहता हूँ…

Baat Se Baat Chale Abhishek Shukla Ke Saath

बात से बात चले: अभिषेक शुक्ला के साथ एक अदबी गुफ़्तगू

विकास शर्मा राज़ : शुरुआत एक रिवायती लेकिन बुनियादी सवाल से करते हैं ।आपकी शा’इरी की शुरुआत कैसे हुई ? अभिषेक शुक्ला: यह सन् 2004 की बात है विकास भाई.. यहाँ लखनऊ में एक डिबेट कंपटीशन हुआ करता था,मैंने भी उसमें हिस्सा लिया और मुझे उसमें पहला ईनाम भी मिला मगर मुश्किल यह थी कि… continue reading

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