जब शायरों के शेर ज़रा सी तब्दीली के साथ फ़िल्मों में पेश किये गए
उर्दू शायरी में किसी दूसरे शायर के कलाम, शे’र या किसी मिस्रा से मुतअस्सिर हो कर, इसमें कुछ इज़ाफ़ा करके उसको अपना लेने की रिवायत हमेशा रही है जिसे तज़मीन कहते हैं। इसके अलावा तरही मुशायरों में किसी उस्ताद की ग़ज़ल से कोई मिस्रा दिया जाता था यानी ‘मिस्रा-ए-तरह’ और सब शायर इसी ज़मीन में इसी क़ाफ़िए और रदीफ़ के साथ ग़ज़लें कहते थे और इस ‘मिस्रा-ए-तरह’ पर अपने मिस्रे से ‘गिरह’ लगाते थे।
By Azra Naqvi
March 2, 2021