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Bhartendu Harishchandra blog

35 साल का जीवन मिला मगर बड़ा काम कर गए

भारतेन्दु हरिश्चंद्र को हिंदी अदब की दुनिया में एक हमा-दाँ अदीब के तौर पर बेपनाह शोहरत और मक़बूलियत हासिल है। बेशक भारतेन्दु ने हिंदी अदब में एक लासानी मक़ाम हासिल किया, लेकिन आपका क़लम सिर्फ़ एक मख़सूस ज़बान तक महदूद नहीं रहा। आपने कई दीगर ज़बानों में अपना क़लम चलाया, लेकिन आपकी उर्दू तसानीफ़ वाक़ई क़ाबिल-ए-ज़िक्र हैं।

Zabaan ke bhi pair hote hain-01

ज़बान के भी पैर होते हैं

उर्दू के सबसे बलन्द क़िले लखनऊ और दिल्ली में तामीर हुए। हिन्दवी के बाद यह दो शक्लों में तब्दील हुई जिनमें से एक हिन्दी के नाम से जानी गई जिसकी लिपि संस्कृत की लिपि यानी देवनागरी है और दूसरी उर्दू जिसकी लिपि फ़ारसी की लिपि है जिसे नस्तालीक़ कहा जाता है। उर्दू के हक़ में मैं इससे मुफ़ीद जुमला कुछ नहीं समझता कि उर्दू आम आदमी की ज़बान है। और आम आदमी के करोड़ों चेहरे करोड़ों मुँह हैं और जितने मुँह उतनी बातें।

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