लता मंगेशकर : वो आवाज़ ही हमारी पहचान है
लता मंगेशकर उस ऐतिहासिक बदलाव का हिस्सा थीं, जब सिनेमा बदल रहा था, सिनेमा का संगीत बदल रहा था। सिनेमा के पर्दे पर पारसी शैली में गीतों के नाटकीय चित्रण से अलग उनकी आवाज़ हर तरफ छाने लगी। ग्रामोफोन के रिकार्ड्स के जरिए, रेडियो के जरिए और लोगों की गुनगुनाहट के जरिए। गीत अब महज किरदार की कहानी नहीं बयान करते थे, लोगों के दिलों की आवाज़ बनने लगे।