मीर-ओ-ग़ालिब के क़ासिद: कितने मासूम कितने चालाक

शायरों के ख़यालात हर मुआमले में एक अनोखापन लिए हुए होते हैं, या यूँ कहिए कि उन्हें बयाँ करने का भी उनका एक अलग अंदाज़ होता है, ज़ाहिर है शायरों के तअल्लुक़ात भी जुदा होते हैं या कम अज़ कम अलाहिदा नज़रिए से देखे जाने का या बयान किये जाने का शरफ़ पाते हैं। अब… continue reading