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 आईना-दर-आईना

आईने ने शाइरों का काम बहुत आसान बनाया, इतना आसान कि उस पर हज़ारों शेर कहे गए और अब नए शोरा आईने पर शेर कहते हुए या तो नए ज़ाविए तलाश करते हैं, या इस इस्तिआरे से ही गुरेज़ करते नज़र आते हैं।

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इन शायरों ने या तो आत्महत्या की या जल्दी ही इस दुनिया से उठ गए

वाक़ई शाइर बना या बनाया नहीं जा सकता। शाइर या शाइरी को तराशना एक मुख़्तलिफ़ काम है। शाइर होना पैदाइशी हुनर है और ये किसी के हाथ में नहीं। शाइरी की मश्क़ आपके हाथ में है और रियाज़त के हाथ में है, कि वो आप पर असर कब करेगी।

Waqt Par Shayari

आइये वक़्त के साथ चलते हैं कुछ शेरों के सहारे

अव्वल तो ये कि वक़्त फ़ारसी का लफ़्ज़ है। लेकिन फ़ारसी में इसका तलफ़्फ़ुज़ कुछ इस तरह से है कि ये ‘बख़्त’ बन जाता है मगर लिखा वक़्त ही जाता है। फ़ारसी में वक़्त का मतलब समय का हिस्सा, ज़माना या मौसम होता है। हिंदी-उर्दू में इस्तेमाल होने वाला बख़्श भी इसी ‘वक़्त’ का रूप है। जिस तरह से हिंदी में ‘व’ – ‘ब’ में बदलता है, ठीक उसी तरह से फ़ारसी में भी। वक़्त जब रूप बदलकर बख़्त बना तो उसका मतलब भी समय से बदलकर क़िस्मत या भाग्य हो गया।

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ज़िन्दगी के ज़ख़्मों से लहू-लुहान शायर : शकेब जलाली

शकेब जलाली की शायरी का उस्लूब मुनफ़रिद और मुमताज़ है और उनकी ग़ज़ल में क़ुदरत रात-दिन, जंगल-सेहरा, बहार-ख़िज़ाँ, अपने हर रूप में जलवा-नुमा है। उनकी शाइरी में ख़िज़ाँ-रसीदा शजर, चाँद, दरिया के इस्तिआरे क़सरत से इस्तेमाल हुए हैं।

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