तस्वीर की आँखों से थकन झाँक रही है
तस्वीरों में उम्रें क़ैद होती हैं। अक्सर किसी तस्वीर को देखते हुए हम उन ज़मानों में चले जाते हैं, जब वो तस्वीरें पैदा होती हैं। तस्वीरें किसी शराब की ही तरह जितनी पुरानी होती जाती हैं, उतनी ही ज़ियादा असरदार भी होती जाती है। उर्दू शायरी में तस्वीरों का इस्तेयारा (रूपक) बेहद कारगर रहा है। शायर मुहब्बत और ज़िन्दगी के दूसरे मसाइल की तस्वीरें बेहद ख़ूबसूरती के साथ शायरी के फ़्रेम में जड़ देता है, और ऐसे उन तस्वीरों की उम्र और भी ज़ियादा हो जाती है। अस्ल शायर तो लफ़्ज़ों से ही ज़िन्दगी के ऐसे अक्स खींच देता है, कि देखने वाला सोचता रह जाए।
लफ़्ज़ों से बनती तस्वीरों पर हम बात किसी और करेंगे। आज हम तस्वीर के हवाले से कहे गए चंद बेहतरीन अशआर से रूबरू होंगे। सबसे पहले शायर इमाम बख़्श नासिख़ का एक मशहूर शेर देखिए, जिसे हम अक्सर किसी न किसी क़व्वाली में सुनते रहते हैं,
“तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत
हम जहाँ में तिरी तस्वीर लिए फिरते हैं”
इमाम बख़्श नासिख़
शायर जलील मानिकपूरी साहब अपनी महबूबा की तस्वीर देखते हुए कहते हैं कि इस तस्वीर में हर अदा अच्छी है, सिवाए इस बात के कि तस्वीर में महबूबा ख़ामोश है। अब ये सभी को पता है कि अपनी तस्वीर में कोई भी शख्स ख़ामोश ही रहेगा, लेकिन फिर भी शायर का ये बयान लुत्फ़ देता है। इस तरह जलील मानिकपुरी ने बिलकुल नया पहलू निकाला है। अब हो सकता है कि जब शायर अपनी महबूबा से रूबरू होता हो तो वो शायर से काफ़ी बातें करती हों।
शेर देखिए,
“आप ने तस्वीर भेजी मैं ने देखी ग़ौर से
हर अदा अच्छी ख़मोशी की अदा अच्छी नहीं”
जलील मानिकपूरी
हमारे अहद के एक बेहतरीन शायर विकास शर्मा ‘राज़’ ने एक तस्वीर में मुस्कुराता चेहरा देखते हुए उदास हो जाते हैं, वे कहते हैं,
“मुझ को अक्सर उदास करती है
एक तस्वीर मुस्कुराती हुई”
विकास शर्मा राज़
उदासी और मुस्कराहट को बुनियाद बना कर कहे गए इस शेर में एक अजब क़िस्म का दुःख भर गया है।
जब शायर माहिर उल क़ादरी ने सोचा कि महबूब को भुला ही दिया जाए, ऐसे में उनके जुनूँ ने उनकी महबूब की हज़ारों तस्वीरें उनके ज़हन में बिखेर दी। इस पर उन्होंने शेर कहा,
“इक बार तुझे अक़्ल ने चाहा था भुलाना
सौ बार जुनूँ ने तिरी तस्वीर दिखा दी”
माहिर-उल क़ादरी
शायर इक़बाल अशहर अपने एक शेर में अपने महबूब को रौशनी का साया क़रार देते हैं। वे कहते हैं,
“सोचता हूँ तिरी तस्वीर दिखा दूँ उस को
रौशनी ने कभी साया नहीं देखा अपना”
इक़बाल अशहर
देखिए एक बेहद दिलचस्प शेर, जिसमें शायर गर्दन झुकाने यानी सजदा करने को तस्वीर-ए-यार के ज़रिए किस तरह से दिखाया है। पहले मिसरे में बात बेहद आम है कि दिल में यार की तस्वीर बसती है। माशूक़ की तस्वीर तो हर आशिक़ के दिल में होती है। लेकिन दूसरा मिसरा सीधे उस यार को, महबूब को ख़ुदा का दर्ज़ा दे देता है।
“दिल के आईने में है तस्वीर-ए-यार
जब ज़रा गर्दन झुकाई देख ली”
लाला मौजी राम मौजी
हिज्र में परेशान शायर अपने महबूब की तस्वीर लगातार देखता रहता है। तस्वीर देखते रहने की ये कैफ़ियत उसे उस दुनिया में ले जाती है, जहाँ महबूब तस्वीर से बाहर आ जाता है।
“मैंने भी देखने की हद कर दी
वो भी तस्वीर से निकल आया”
शहपर रसूल
तस्वीर के हवाले से एक और शेर देखें, जिसके ज़रिए हम समझ पाएँगे कि एक फ़नकार की ज़ात उसके फ़न में किस ख़ूबसूरती से दख़्ल देती है।
“लगता है कई रातों का जागा था मुसव्विर
तस्वीर की आँखों से थकन झाँक रही है”
नामालूम
इन चंद शेरों के हवाले से ज़ाहिर होता है कि तस्वीर उर्दू शायरी का एक अहम ख़याल रहा है और शायरों ने अपने तजरबे को लफ़्ज़ों में ढाल महबूब की तस्वीर बनाते रहे हैं।
NEWSLETTER
Enter your email address to follow this blog and receive notification of new posts.