उर्दू जिसे कहते हैं
जो ज़बान अपने चारों तरफ देखती है वही ज़बान इनसानी जरूरतों को पूरा भी कर सकती है।
ज़बानें अपना कल्चर रखती हैं और वही ज़बान बड़ी तसव्वुर की जाती है जिस में ख़याल और इज़हार के लिए अल्फ़ाज़ की तंगी न हो, यूँ तो सारी ज़बानों के अपने लफ़्ज़ और अपना शब्द-कोश होता है। और दुनिया के मुखतलिफ़ हिस्सों में बस्ने वाले लोग अपनी ज़बान पर फ़ख्र भी करते हैं, इसी तरह से उर्दू ज़बान के साथ भी कुछ ऐसा मुआमिला है कि लोग इस की मिठास और इस ज़बान में पेश की जाने वाली मोहब्बत भरी शायरी के दीवाने हुए जाते हैं । इस हवाले से उर्दू ज़बान बहुत वसीअ ज़बान है कि इसमें हर एक नई पुरानी तब्दीलियों को न सिर्फ़ अपने अंदर समो लेने की सलाहियत है बल्कि उसे बयान करने और ख़ूबसूरती के साथ लोगों को बताने की अहलियत भी मौजूद है। ख़्वाह वो अदब हो साइंस, जुग़राफ़िया, माहौलियात, जंगल, झाड़ी, सहरा या उस में बस्ने वाले लोग हों, उन के एहसासात के इज़हार के लिए उर्दू के पास एक ख़जाना है, ऐसा ख़ज़ाना जो कानों को भी सुनने में भला लगता है और समझने में भी मुश्किल नहीं होती।
आइये हम देखते हैं कि उर्दू में जानवरों के बच्चों को क्या कहते हैं
इसी तरह जानदारों और ग़ैर-जानदारों कि भीड़ के लिए भी खास अल्फ़ाज़ उर्दू में मौजूद हैं : जैसे
उर्दू की अज़मत का अंदाज़ा इससे भी होता है कि हर जानवर की आवाज़ के लिए अलग अलग लफ़्ज़ मौजूद हैं : जैसे
इसी तरह कई चीज़ों की आवाज़ों के लिए भी मुख़तलिफ़ आवाज़ मौजूद है : जैसे
इसी तरह मसकन (रहने की जगह) के मुतआल्लिक़ भी कई अल्फ़ाज़ मौजूद हैं जिन का जानना हमारे लिए दिलचस्प होगा : जैसे
इन मिसालों से आप अंदाज़ा कर सकते हैं कि एक ज़बान की हैसियत से उर्दू में किस कदर रंगा-रंगी और लचक है। जो ज़बान अपने चारों तरफ देखती है वही ज़बान इनसानी जरूरतों को पूरा भी कर सकती है।
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