Archives : June 2021

आइये ! देखते हैं कि शायरों ने ख़्बाव को किस तरह बरता है

हमारा ख़्वाब वो जगह है जहाँ हमारी इजाज़त के बिना कोई भी दाख़िल नहीं हो सकता है | वहाँ बस वही आ सकते हैं जिन्हें हमारा प्यार हासिल है, जो बातें हक़ीक़त से जितनी दूर हों, वो ख़्वाबों में उतनी ही क़रीब हो जाती हैं |

उर्दू शाइरी में हमारी लोक-कहानियाँ और तारीख़ किस तरह महफ़ूज़ हो गई?

मसनवी दर-अस्ल अरबी का लफ़्ज़ है जिसके मआनी दो-दो के हैं। हालाँकि मसनवी लफ़्ज़ अरबी का है, लेकिन मसनवी की सिन्फ़ फ़ारसी शोरा की ईजाद मानी जाती है और पहली मारूफ़ मसनवी के 10वीं सदी में फ़ारसी ज़बान में लिखे जाने के सुराग़ मिलते हैं। ईजाद के साथ ही ईरान में मसनवी की सिन्फ़ बेहद मक़बूल हुई और इस सिन्फ़ में बहुत अहम शाइरी भी हुई। मसलन शाहनामा और मौलाना रूमी की मसनवी। शाहनामा दुनिया की उन सबसे तवील नज़्मों में है जिन्हें किसी एक शख़्स ने लिखा है और इसमें तक़रीबन 50,000 शेर हैं।

Prose लिखने के लिए कुछ ज़रूरी बातें

नस्र ज़बान की वो सिन्फ़ है, जो तक़रीर के फ़ितरी बहाव (एक तय-शुदा क़वाइद के ढाँचे की पैरवी करते हुए) का इज़हार करती है। नस्र शाइरी की तमाम अस्नाफ़ से जुदा वो सिन्फ़ है, जो शाइरी से वाबस्ता किसी भी तरह की क़वाएद जैसे- बह्र, आहंग, लय, रदीफ़, क़ाफ़िया वग़ैरा पर नहीं बल्कि ज़बान के मुश्तर्का ढाँचे पर मबनी होती है।

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