Articles By Tasneef Haider

Ghalib Blog

आइये! बनारस का हुस्न ग़ालिब की नज़र से देखते हैं

तख़लीक़ की इस दुनिया के बेताज बादशाह ‘ग़ालिब’ ने ऐसे में कलकत्ता का सफ़र किया, क्यों किया! ये आप सब जानते हैं, मगर वो रास्ते में कुछ जगहों पर रुकते भी गए, बांदा, लखनऊ और काशी या बनारस ऐसे ही मक़ामात हैं। जो लोग ग़ालिब के ख़तों को पढ़ चुके हैं, उसकी उर्दू-फ़ारसी शायरी का ठीक से अध्ययन कर चुके हैं, उन्हें ये बताने की ज़रुरत नहीं कि मिटती हुई दिल्ली और उजड़ती हुई दहलवी तहज़ीब से उसका लगाव ज़्यादा नहीं रह गया था।

Ghalib

ग़ालिब के दीवान का दिलचस्प क़िस्सा

ये बात तो तय है के ग़ालिब ख़ुद चाहे क़र्ज़ और ग़रीबी की ज़िन्दगी गुज़ार कर मरा हो, मगर उसने अपने मरने के बाद बहुत से लोगों को अमीर क्या बल्कि रईस बना दिया।

मैं एक औरत-दुश्मन शायर रहा हूँ

हम मिर्ज़ा ग़ालिब की नसीहत पर अमल करते हुए भी अदब के मैदान में ख़ुद को बड़ा शायर बनाना चाहते थे कि ‘मिस्री की मक्खी बनो, शहद की मक्खी नहीं बनो’। मगर हमने ग़ौर नहीं किया कि ये जुमला किस तरह औरत दुश्मनी की रिवायत का बीज हमारे ज़हन में बो रहा है। हमें लगा कि अदब में बेहतरीन क़िस्म का शायर वही होता है, जो बदन की शायरी करता हो।

Shamim Hanfi

शमीम हनफ़ी के जाने से अब ये शहर शहर-ए-अफ़्सोस में बदल चुका है

शमीम हनफ़ी जैसी साफ़-ओ-शफ़्फ़ाफ़ और दिल को छूती हुई बात-चीत मैंने किसी अदीब के यहाँ नहीं पाई। वो अगर आपको किसी शहर के बारे में बताते तो कोई ऐसा नुक्ता ज़रूर होता जो उस शहर की ख़ासियत को बिलकुल नए सिरे से आप पर रौशन करता। मिसाल के तौर पर उन्होंने अपने वतन सुलतानपुर के हवाले से एक दफ़ा’ बताया था कि ‘सुलतानपुर वो एकलौती जगह है’ जहाँ विभाजन के वक़्त एक भी फ़साद नहीं हुआ।

Faruqi ki Kahani

अदब फ़ारूक़ी साहब के लिए जीने और मरने का सवाल था

फ़ारूक़ी साहब की ज़िन्दगी एक मज़मून में नहीं समा सकती, उनका काम भी एक मज़मून में नहीं समा सकता। उन्होंने तनक़ीद लिखी और हर बार अपनी तनक़ीद से लोगों को चौंकाया। कुछ लोगों का मानना है कि वो तस्दीक़ के नहीं बल्कि तरदीद के नक़्क़ाद थे।

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