Gauhar Jaan And Akbar Allahabadi

#QissaKahani: जब हिन्दोस्तान की एक मशहूर गायिका और एक तवाइफ़ अकबर से मिलने पहुँचीं

QissaKahani रेख़्ता ब्लॉग की नई सीरीज़ है, जिसमें हम आपके लिए हर हफ़्ते उर्दू शायरों, अदीबों और उर्दू से वाबस्ता अहम् शख़्सियात के जीवन से जुड़े दिलचस्प क़िस्से लेकर हाज़िर होते हैं। इस सीरीज़ की चौथी पेशकश में पढ़िए अकबर इलाहाबादी और मशहूर गायिका गौहर जान की मुलाक़ात का क़िस्सा।

आम तौर से ऐसा देखा गया है कि हास्य व्यंग्य लेखक जो अपनी तहरीरों से हर दुखी चेहरे पर एक मुस्कान ले आते हैं अपने निजी जीवन में काफ़ी हद तक बहुत ख़ुश्क, बोर कर देने वाले और उबाऊ होते हैं।

आप मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी को जानते ही होंगे और मुस्कुराहट-ओ-क़हक़हों से भरे उनके लेख भी पढ़े होंगे, उनसे मिलने वाला हर शख़्स उनके पास से ये तअस्सुर लेकर उठता था कि आख़िर बैंक की नौकरी करने वाला इतना ख़ुश्क आदमी कैसे ऐसे जुमले लिख सकता है जिन्हें पढ़ कर लोग बरसों से हँस रहे हैं और क़हक़हे लगा रहे हैं।

ख़ैर ये कोई ज़रूरी बात भी नहीं कि आदमी जैसा अपनी कला और आर्ट में दिखता है वैसा ही अपनी ज़िंदगी में भी हो। ये तज़ादात (अंतर्विरोध) तो हमारी आम ज़िंदगी का भी हिस्सा होते हैं।

हास्य व्यंग्य लेखक तो सबसे ज़्यादा इनका सामना करता है। वो तभी लोगों को हँसा पाने के क़ाबिल होता है जब वो अपनी ज़िंदगी में दुखों और तकलीफ़ों का अच्छा ख़ासा सरमाया जमा कर चुका होता है।

अकबर इलाहाबादी अपने पेशेवराना लिबास में

ख़ैर ये बातें तो बर-सबील-ए-तज़किरा थीं। अस्ल तो आपको अकबर इलाहाबादी का एक क़िस्सा सुनाना है।

अकबर, इलाहाबाद कोर्ट के सैशन जज थे। सारी उम्र वो भी हास्य-व्यंग्य की शायरी करते रहे। 1846 से 1921 उनका ज़माना है। ये वो समय था जब हिन्दोस्तान में बहुत कुछ बदल रहा था। अंग्रेज़ों के असर से न सिर्फ यहाँ की सियासत प्रभावित हुई थी बल्कि समाज का हर इदारा निशाने पर था। ज़बान, तहज़ीब और कल्चर की सारी शक्लें नए रंग ले रही थीं। इस बदलाव ने अकबर को हास्य-व्यंग्य लिखने का ज़बरदस्त मौक़ा फ़राहम किया। उन्होंने अंग्रेज़ों की हर चाल को व्यंग्य का निशाना बनाया और सारी दुनिया को हँसने के नए बहाने दिए। आज यही अकबर उर्दू साहित्य के सबसे बड़े हास्य-व्यंग्य शायरों में गिने जाते हैं।

अकबर अपनी निजी ज़िंदगी और महफ़िलों में भी बहुत बाग़-ओ-बहार आदमी थे। जो उनसे मिलता वो उनकी शायरी से ज़्यादा उनकी शख़्सियत के शगुफ़्ता पहलुओं से प्रभावित हो उठता।

एक बार का ज़िक्र है, कलकत्ता की मशहूर गायिका गौहर जान इलाहाबाद आई और जानकी-बाई तवाइफ़ के मकान पर ठहरी। जब गौहर जान रुख़स्त होने लगी तो अपनी मेज़बान से कहा,

“मेरा दिल ख़ान बहादुर सय्यद अकबर इलाहाबादी से मिलने को बहुत चाहता है।”

जानकी-बाई बोली, “आज मैं वक़्त मुक़र्रर कर लूँगी, कल अकबर से मिलने चलेंगे।”

चुनाँचे दूसरे दिन दोनों अकबर इलाहाबादी के घर जा पहुँचीं।

जानकी-बाई ने तआरुफ़ कराते हुए कहा, “ये कलकत्ता की निहायत मशहूर-ओ-मारूफ़ मुग़न्निया गौहर जान हैं। आपसे मिलने को बहुत बे-क़रार थीं। लिहाज़ा इनको आपसे मिलाने लाई हूँ।”

अकबर धीमी सी मुस्कुराहट के साथ बोले,

”ज़ह-ए-नसीब! वर्ना मैं न तो नबी हूँ, न इमाम, न ग़ौस, न क़ुतुब और न कोई वली जो क़ाबिल-ए-ज़ियारत ख़याल किया जाऊँ। पहले जज था अब रिटायर हो कर सिर्फ़ ‘अकबर’ रह गया हूँ। हैरान हूँ कि आपकी ख़िदमत में क्या तोहफ़ा पेश करूँ। ख़ैर एक शेर बतौर यादगार आपके लिए लिखे देता हूँ।”

ये कह कर अकबर ने एक शेर काग़ज़ पर लिखा और गौहर जान के हवाले कर दिया।
शेर ये था,

ख़ुश-नसीब आज भला कौन है गौहर के सिवा
सब कुछ अल्लाह ने दे रखा है शौहर के सिवा

गौहर की ज़िंदगी की सच्चाई यही थी। उसके पास दौलत थी, अपनी कला के कारण लोकप्रियता भी थी। हिन्दोस्तान के कोने-कोने में उसकी आवाज़ के जादू में गिरफ़्तार लोग मौजूद थे। लेकिन नहीं थी तो बस एक मामूल से बसर होने वाली ज़िंदगी।

अकबर का दिया हुआ छोटा सा काग़ज़ गौहर जान ने मुस्कुराते हुए अपनी मुट्ठी में दबा लिया और रुख़स्त हो गई।

पेशकश: हुसैन अयाज़