Articles By Ajay Negi

अजय नेगी का जन्म 1998 में फ़रीदाबाद (हरियाणा) में हुआ। वर्तमान में आप पंडित जवाहरलाल नेहरू कॉलेज, फ़रीदाबाद में साइकोलॉजी के छात्र हैं। अजय नेगी की आरम्भ से ही साहित्य में रुचि रही है। आप हिंदी और उर्दू भाषा-ज्ञान के विकास की ओर निरंतर प्रयत्नशील हैं।

उर्दू के बग़ैर पुरानी फ़िल्मों की कल्पना नहीं की जा सकती

बॉलीवुड ने उर्दू का हाथ एक तवील वक़्त से थाम रक्खा है। बिला-शुबा ये बात कही जा सकती है कि उर्दू बॉलीवुड की फ़िल्मों, नग़्मों, डायलॉग्स की ख़ूबसूरती में दिन-ब-दिन इज़ाफ़ा करती आ रही है। शायद ही कोई ऐसी फ़िल्म, नग़्मा, डायलॉग हमारी ज़िंदगी से गुज़रा होगा जिस में आप को उर्दू का रंग कम दिखाई दिया हो, ज़ियादा असरात ज़ेहन-ओ-दिल पर उन्हीं फ़िल्मों, नग़्मों, डायलॉग्स ने किया जिस में उर्दू थी।

Habib Jalib Blog

उन्होंने हमेशा पाकिस्तानी फ़ौजी तानाशाहों का खुले-आम विरोध किया

अवाम के दर्द को जितना क़रीब से उन्होंने देखा उसे महसूस किया और उसके बारे में लिखा ऐसा उस दौर में बहुत ही कम शायरों ने किया। लोगों ने उन्हें शायर-ए-अवाम का दर्जा भी दिया। वो उस वक़्त के सबसे ज़ियादा पढ़े जाने वाले और मक़बूल शायरों की फ़ेहरिस्त में सबसे आगे थे। हबीब जालिब साहब ने पाकिस्तान में हमेशा मार्शल लॉ की मुख़ालिफ़त की क्योंकि वो जानते थे कि इस ‘लॉ’ में किस तरह से एक आम इंसान के हुक़ूक़ तलफ़ किए जाते हैं। इस सिलसिले में उन्हें पुलिस की लाठियाँ भी खानी पड़ी और जेल भी जाना पड़ा।

Sahir Ludhianvi and Majaz

साहिर ने मजाज़ से क्या कहा रेलवे स्टेशन पर

साहिर उस वक़्त के बेहद मक़बूल शायर मजाज़ के साथ वर्सोवा में रहते थे। दोनों काम की तलाश में यहाँ-वहाँ जाते। एक रोज़ उन्हें कोई प्रोड्यूसर साहब मिले जो कि मजाज़ के जानने वालों में से थे। आपस में बातचीत हुई तो मजाज़ ने बताया कि हम भी बम्बई में नग़्मे लिखने आएँ हैं। वो प्रोड्यूसर साहब उस वक़्त एक फ़िल्म बना रहे थे। उन्होंने दोनों को अगले दिन अपने ऑफ़िस में बुलाया और नग़्मे की सिचुएशन दी। दोनों ने रात में वो नग़्मा पूरा किया और अगले दिन ऑफ़िस गए।

Talat Mahmood

तलत महमूद: जिसने ग़ज़ल गायकी को आसान बना दिया

तलत महमूद को शहंशाह-ए-ग़ज़ल भी कहा जाता है। उन्होंने ग़ज़ल गायकी को आसान बनाया। उन्होंने लफ़्ज़ों को इतनी नरमी दे दी कि मानो जैसे वो फूल हों। मीर, मोमिन, ग़ालिब, जिगर मुरादाबादी, अमीर मीनाई, ख़ुमार बाराबंकवी, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, जाँ निसार अख़्तर जैसे बड़े शाइरों की ग़ज़लों को अपनी आवाज़ से छू कर उनकी ख़ूबसूरती में इज़ाफ़ा किया।

Bollywood and Urdu

जब महबूबा को मर्डरर के बजाए क़ातिल कहा जाए

उर्दू की तारीफ़ बयान करने के लिए मेरे पास सिर्फ़ एहसासात ही हैं क्यों कि ये काम लफ़्ज़ों को नहीं दिया जा सकता। मैं यक़ीन से कह सकता हूँ कि अगर उर्दू बॉलीवुड का हिस्सा न होती तो ऐसी फ़िल्में, ग़ज़लें, नग़्में, डायलॉग्स का हमारी ज़िंदगी पर कोई ख़ास असर न होता।

Twitter Feeds

Facebook Feeds