साहिर लुधियानवी: नग़्मों में ज़िंदगी
अब्दुल हई उर्फ़ साहिर लुधियानवी के ख़ानदान में दूर-दूर तक शेर-ओ-शाइरी की रिवायत का नाम-ओ-निशान नहीं मिलता फिर भी उस्ताद फ़ैयाज़ हरियाणवी की पनाह में साहिर तक़रीबन पन्द्रह-सोलह की उम्र ही से शाइरी करने लगे थे। स्कूल के ही दिनों में साहिर को फ़ारसी, उर्दू की सैकड़ों ग़ज़लें और नज़्में हिफ़्ज़ थीं। साहिर अपने दोस्तों को अक्सर ग़ालिब, मीर, सौदा, इक़बाल और फ़िराक़ गोरखपुरी की शाइरी सुनाया करते थे।