Articles By Vivek Pratap Singh

Women's Day

महिला-दिवस के अवसर पर रेख़्ता की ख़ास पेशकश

महिलाऍं आज बहुत से क्षेत्र में तरक़्क़ी कर रही हैं | ख़ासकर आज़ादी के बाद से चाहे वह महिला सशक्तिकरण की बात हो तो आज़ादी के बाद सरकारों ,महिला संगठनों और महिला आयोगों के प्रयासों से महिलाओं के लिए विकास के कई द्वार खुले उनमें शिक्षा का प्रचार जिससे उनके आत्मविश्वास में वृद्धि हुई | आज वे सियासत, समाजसुधार, ता’लीम, सहाफ़त, अदब, उद्योग, विज्ञान, ब्यूरोक्रेसी, सेना, डॉक्टरी आदि विभिन्न क्षेत्रों में पुरुषों के साथ बराबरी पर खड़ी हैं |

Meeraji

कहते हैं कि उन्हों ने अपनी प्रेमिका के नाम पर ही अपना नाम मीरा जी रखा

मीरा जी का असली नाम मोहम्मद सनाउल्लाह ‘सानी’ डार था। लाहौर में विलादत हुई , इनके वालिद का नाम मुंशी महताबउद्दीन था जो रेलवे में मुलाज़मत करते थे और इनकी वालिदा का नाम ज़ैनब बेगम था। इनके वालिद को मुलाज़मत के दौरान कई मुख़्तलिफ़ शह्रों में क़याम करना पड़ता कभी गुजरात के काठियावाड़ ,बलूचिस्तान वग़ैरह वग़ैरह। मीरा जी वालिद के साथ ख़ूब घूमे इसका उनके ज़ेहन पर बहुत गहरा असर पड़ा और छोटी उम्र से ही वो घुमक्कड़ क़िस्म के हो गए थे ।

Shankar Shailendra

शंकर शैलेंद्र के नग़्मे हमें आज भी याद हैं।

पंजाब के रावलपिंडी में 30 अगस्त 1923 को पैदा हुए पिता ने नाम रखा शंकर दास केसरी लाल लेकिन आगे चलकर ‘शैलेन्द्र’ के नाम से शोहरत पायी और इसे ही अपना तख़ल्लुस बनाया । इनके पूर्वज बिहार के आरा ज़िले के रहने वाले थे। एक बार इनके पिता बहुत बीमार पड़ गए घर में ग़रीबी,बदहाली थी ,सो ये सब रावलपिंडी छोड़ मथुरा मुन्तक़िल हुए और यहाॅं अपने एक रिश्तेदार जो रेलवे में काम किया करते थे उनके पास चले आए पर वहाॅं भी हालात सुधरे नहीं।

Nuqta

उर्दू शब्दों पर नुक़ता क्यों ज़रूरी है

जिन दिनों हिन्दी-उर्दू विवाद ज़ोरों पर था और अदालतों की भाषा उर्दू हो गई, अख़बारात भी उर्दू में ही शाए’ होते तो एक बड़ी ता’दाद में लोग जिन्हें उर्दू की रस्म-उल-ख़त सीखने में दिक़्क़त हो रही थी, उनके लिए राजा शिवप्रसाद सितारे ‘हिन्द’ ने कोशिश की कि ज़बान उर्दू ही रहे और वो नागरी लिपि में लिखी जाए। उन्होंने कहा फ़ारसी की सभी ध्वनियाँ देवनागरी में व्यक्त होनी चाहिए। जब उन्हें पता चला कि फ़ारसी की पाँच ध्वनियाँ (क़, ख़, ग़, ज़, फ़) नागरी में नहीं हैं तो उन्होंने अक्षर के नीचे नुक़्ता लगाने का सुझाव दिया।

Nazeer Akbarabadi

नज़ीर अकबराबादी: देसी मिट्टी की ख़ुश्बू

वली मोहम्मद नाम के गुमनाम शाइर अवाम के गीत गा रहे थे। कभी ककड़ी खीरा बेचने वाले के लिए नज़्म लिख देते तो कभी लड्डू बेचने वाले के लिए इस से ये हुआ कि लोग इन्हें बाज़ारी शाइर कहने लगे। पूरा नाम शेख़ वली मोहम्मद था लेकिन नज़ीर अकबराबादी के नाम से शोहरत पायी । इनका जन्म दिल्ली में 1735 के आसपास शेख़ मुहम्मद फ़ारूक़ के घर हुआ।

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