आशिक़ों के गालों पर विसाल का रंग लगाने वाली होली
कहीं अबीर की ख़ुश्बू कहीं गुलाल का रंग
कहीं पे शर्म से सिमटे हुए जमाल का रंग
चले भी आओ भुला कर सभी गिले-शिकवे
बरसना चाहिए होली के दिन विसाल का रंग
लोकप्रिय शाइर अज़हर इक़बाल की ये क़ता होली के त्यौहार के महत्व, उल्लास और समरसता को बड़ी ही आसानी से व्यक्त कर देता है| हिन्दुस्तानी सभ्यता के सबसे प्रिय त्योहारों में से एक होली का इन्तिज़ार लोग बसंत के शुरू होते ही करने लगते हैं और बसंत-पंचमी के दिन गुलाल के साथ सूखी होली खेलकर होली के नज़दीक आने का ऐलान भी करते हैं| भारत में व्यापक रूप से मनाए जाने के अलावा, यह कैरिबियाई उपनिवेशों में भी काफी लोकप्रिय है, जहाँ हिंदुस्तानियों की बड़ी आबादी है। पिछले कुछ दशकों में, वैश्विक हिंदू डायस्पोरा ने इस त्योहार को पश्चिमी देशों में भी लोकप्रिय बना दिया है जहाँ स्थानीय ग़ैर-हिंदुस्तानी इस त्योहार का स्वागत करते हैं। बाक़ी ज़बानों के साथ-साथ, उर्दू ज़बान में भी अलग-अलग शाइरों ने होली के त्योहार के बारे में अपने जज़्बात का इज़हार किया है| प्रसिद्ध क्लासिकी शाइर नज़ीर अकबराबादी कहते हैं:
जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की
ख़ुम, शीशे, जाम, झलकते हों तब देख बहारें होली की
होली के दिन चारों ओर फ़ज़ा में रंग ही रंग दिखते हैं और सडकों, गलियों, आँगनों में लाल, हरे, नीले, पीले रंगों से पुते चेहरे| इन चेहरों पर एक उत्साह दिखता है जो इंसानों के बीच का अजनबियत मिटा देता है| सड़कों से गुजरते राहगीरों पर जब बच्चे रंग भरे ग़ुब्बारे फेंकते हैं तो उन राहगीरों के चेहरे पे एक मुस्कान उभर आती है| रंगों में पुती हुई और ठंडाई पीकर मस्त लोगों की टोली जब होरी गाकर और ढोलक पर थाप देकर गुज़रती है तो उन्हें देखकर बूढ़ों को अपन लडकपन याद आ जाता है| जब ये टोली “बुरा न मानो होली है” का नारा बुलंद करती है तो अजनबी राहगीर भी अजनबियत भूलकर उस टोली में शामिल हो जाते हैं| मश्हूर शाइर ने फ़राग़ रोहवी ने इस टोली की ख़ूब तस्वीर खींची है:
क्या ख़ूब आई होली
मस्तों की निकली टोली
क्या ख़ुश-गवार दिन है
इक पुर-बहार दिन है
उड़ता गुलाल देखो
चेहरे हैं लाल देखो
पिचकारियों के धारे
ख़ुश-रंग हैं नज़ारे
अहल-ए-मुहब्बत के लिए होली का दिल सबसे ख़ुशगवार तोहफ़ा लेकर आता है जब आशिक़ों को अपने महबूब के क़रीब जाने का मौक़ा मिलता है| जब आशिक़ों को महबूब की आँखों में झाँककर अपने लिए इश्क़ देखने का अनोखा मौक़ा मिलता है| उनके गालों पर रंग लगाकर अपने जज़्बात का इज़हार करने के मौक़ा मिलता है| दो शेर देखिए:
तेरे गालों पे जब गुलाल लगा
ये जहाँ मुझ को लाल लाल लगा
नासिर अमरोहवी
सजनी की आँखों में छुप कर जब झाँका
बिन होली खेले ही साजन भीग गया
मुसव्विर सब्ज़वारी
होली के दिन मस्तों की टोली संगीत की महफ़िल भी सजाती है और सभी होलियाड (होली में गाया जाने वाला हास्य-व्यंग्य गीत) का मज़ा लेते हैं| संगीत-प्रेमी आशिक़ अपने माशूक़ के लिए काफी राग में फाग (होली में गाया जाने वाला विशेष गीत) गाते हैं और माशूक़ इश्क़ के रंग में शराबोर हो जाता है| शेर देखिए:
डुबो दिया जो सलीक़े से उसने काफी में
मेरा लिखा हुआ हर फाग रंग-दार हुआ
राहुल झा
आख़िर में, होली का दिन क़रीब आ रहा है और मुझे उम्मीद है कि आप सब बड़े ही उत्साह से अपने परिवार और अज़ीज़ों के साथ खुलकर होली खेलें और जब अपनी टोली के साथ होली खेलने घर से निकलेंगे तो मश्हूर शाइर कँवल डिबाइवी के इन मिसरों को याद रखेंगे:
हो के सरशार बहुत इश्क़ से गाएँ होली
इक नए रंग से अपनों को सुनाएँ होली
ले के आई है अजब मस्त अदाएँ होली
मुल्क में आज नए रुख़ से दिखाएँ होली
आज हर शख़्स को देती है सदाएँ होली
दोस्तो आओ चलो ऐसी मनाएँ होली
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