Articles By Rahul Jha

दरभंगा के एक साहित्यिक परिवार में जन्मे राहुल झा का शुरूआती दिनों से ही साहित्य से ख़ासा लगाव रहा। 13 साल की छोटी उम्र से अपना साहित्यिक सफ़र शुरूअ करने वाले राहुल झा उर्दू की नई नस्ल के शोअरा की फ़ेहरिस्त में एक जाना-पहचाना नाम हैं| उर्दू के साथ ही मैथिली, हिंदी और अंग्रेज़ी भाषा पर भी एक जैसी क़ुदरत रखते हैं और अलग-अलग भाषाओं में सृजन एवं अनुवाद कार्य में मसरूफ़ हैं।

PANDIT VIDYA RATTAN ASI Blog

ज़िंदगी की तल्ख़ सच्चाइयों का शाइर: पं. विद्या रतन आसी

आसी ने ज़िंदगी की महरूमियों को क़बूल ज़रूर किया लेकिन कभी हालात के आगे झुके नहीं. कभी ख़ुदकुशी करने की नहीं सोची. मुस्तक़िल उदासियों की सौगात ने आसी को हस्सास से हस्सासतर बनाया और वे राह में आने वाले हर अजनबी से पूरे ख़ुलूस और मुहब्बत से मिले और यही वजह है कि उनसे मिलने वाला हर अजनबी उनका अपना बन गया.

Holi Shayari

आशिक़ों के गालों पर विसाल का रंग लगाने वाली होली

होली के दिन चारों ओर फ़ज़ा में रंग ही रंग दिखते हैं और सडकों, गलियों, आँगनों में लाल, हरे, नीले, पीले रंगों से पुते चेहरे| इन चेहरों पर एक उत्साह दिखता है जो इंसानों के बीच का अजनबियत मिटा देता है| सड़कों से गुजरते राहगीरों पर जब बच्चे रंग भरे ग़ुब्बारे फेंकते हैं तो उन राहगीरों के चेहरे पे एक मुस्कान उभर आती है|

Irfan Siddiqi

नई शायरी करनी हो तो इनके बारे में जानना ज़रूरी होगा

इरफ़ान सिद्दीक़ी के इस अकेले शेर में उनकी ज़िन्दगी की पूरी कहानी छुपी हुई है। उर्दू ज़बान के बेहतरीन शाइरों में से एक होने के बावजूद, वो मक़बूलियत और पज़ीराई उनके लिए बहुत देर से आई, जिसके वो हक़दार थे। इरफ़ान सिद्दीक़ी आधुनिक उर्दू ग़ज़ल के एक ट्रेंडसेटर के रूप में भी जाने जाते हैं, जिन्होंने अपनी समझ और तर्कशक्ति को शाइरी में ढालने की हिम्मत की, और उर्दू शाइरी के कैनवस पर एक ख़ूबसूरत पेंटिंग बनाई।

Rauf Raza - Rekhta Blog

रउफ़ रज़ा: जिन्हें भरी बहार में इस दुनिया से उठा लिया गया

रऊफ़ साहब ने उस वक़्त इस दुनिया को अलविदाअ’ कहा जब उनकी शाइरी अपने उरूज पर थी। रऊफ़ साहब का नाम जदीद शाइरी के उन मो’तबर नामों में शुमार होता है जिन्होंने अपने आस-पास की चीज़ों को शाइरी में ढालकर ज़िन्दगी को देखने का एक ऐसा नज़रीया पेश किया।

Rajinder Manchanda Bani

बानी: वो शायर जिसके यहाँ लफ़्ज़ तस्वीर में बदल जाते हैं

बानी का 1932 में मुल्तान जिले में हुआ था और हिन्दुस्तान की आज़ादी के बाद 1947 में दिल्ली चले आए। उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखी और अर्थशास्त्र में मास्टर्स की डिग्री हासिल की। बानी की ग़ज़लों से गुज़रते हुए आप उनकी मन्ज़र पैदा करने के हुनर के बारे में जानेंगे और आपको यक़ीन हो जाएगा कि वह एक शानदार मुसव्विरी की सलाहियत रखने वाले शायर थे।

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