Prose लिखने के लिए कुछ ज़रूरी बातें
नस्र ज़बान की वो सिन्फ़ है, जो तक़रीर के फ़ितरी बहाव (एक तय-शुदा क़वाइद के ढाँचे की पैरवी करते हुए) का इज़हार करती है। नस्र शाइरी की तमाम अस्नाफ़ से जुदा वो सिन्फ़ है, जो शाइरी से वाबस्ता किसी भी तरह की क़वाएद जैसे- बह्र, आहंग, लय, रदीफ़, क़ाफ़िया वग़ैरा पर नहीं बल्कि ज़बान के मुश्तर्का ढाँचे पर मबनी होती है।
आजकल नस्र से वाबस्ता इसकी तमाम अस्नाफ़ उर्दू अदब में मौजूद हैं, जैसे- मज़्मून (निबन्ध), नॉवेल, अफ़साना, ख़त, बायोग्राफ़ी, ऑटोबायोग्राफ़ी, आर्टिकल, तज़्किरा, नाटक वग़ैरा।
Prose (या’नी नस्र) लफ़्ज़ का इस्ते’माल पहले-पहल अंग्रेज़ी ज़बान में 14 वीं सदी में दिखाई दिया। ये क़दीम फ़्राँसीसी ज़बान से पैदा हुआ लफ़्ज़ है, जो लातिनी ज़बान के जुमले ‘prosa oratio’ से मुश्तक़ हुआ।
मज़्मून-निगारी, तब्सिरा, ख़त, अपने बारे में या दीगर मौज़ूअ पर नस्र लिखने की रिवायत उर्दू में बहुत पहले से रही है। लेकिन कहा जाता है, कि उर्दू में पहला नॉवेल ‘मिरात-उल-उरुस’ नज़ीर अहमद ने सन 1868- 1869 में लिखा, जिसकी 20 साल में लगभग 1 लाख के आस-पास प्रतियाँ बिकीं । बा’द में इस नॉवेल के बंगाली, गुजराती, कश्मीरी, बृज और पंजाबी वग़ैरा ज़बानों में तर्जुमे भी हुए। 1903 में G. E. Ward ने लन्दन में इसका अंग्रेज़ी तर्जुमा भी शाइअ किया। एक मिथ ये भी है कि ‘मिर्ज़ा हादी रुस्वा’ के नॉवेल ‘उमराव-जान’ को भी उर्दू का पहला नॉवेल माना जाता है।
अफ़्साना-ए-मुख़्तसर (Short stories) लिखने का चलन उर्दू में लगभग 100 साल से भी ज़ियादा पुराना है। Short stories लिखने वाले लेखकों में अहम् नाम- मुंशी प्रेमचन्द्र, मण्टो, ग़ुलाम अब्बास, इस्मत चुग़ताई, कृष्ण चन्दर और राजिन्दर सिंह बेदी हैं। इनके इलावा ‘आग का दरिया’ नॉवेल लिखने वालीं ‘क़ुर्रतुलऐन हैदर’ का नाम भी Short stories लिखने वालों की दुनिया में इज़्ज़त के साथ लिया जाता है।
नस्र की उमूमन तीन क़िस्में होती हैं
1– ग़ैर- अफ़्सानवी या हक़ीक़ी नस्र (Nonfictional prose)- मन-गढ़न्त या ख़याली बातें नहीं बल्कि दुरुस्त मा’लूमात के साथ लिखी जाने वाली नस्र को Nonfictional prose या ग़ैर अफ़्सानवी नस्र कहते हैं। जैसे- अख़बार, textbooks, articles वग़ैरा में लिखी जाने वाली नस्र।
2– अफ़्सानवी नस्र या ग़ैर-हक़ीक़ी नस्र (Fictional prose)- ये नस्र-निगारी की सबसे मशहूर सिन्फ़ है जिसमें हम काल्पनिक या मन-गढ़न्त ख़यालों को अल्फ़ाज़ की शक्ल में पिरोते हैं। जैसे नॉवेल, अफ़्साने या कहानियाँ वग़ैरा।
3– दास्तान गोई- यह उर्दू नस्र की सबसे पुरानी सिन्फ़ है, जो तक़रीबन 13 वीं सदी से राइज है। ये किसी महान घटना पर रची जाने वाली नस्र की वो सिन्फ़ है, जिसे आज भी सुनाने (recitation) का चलन है। हिन्दी में इसे हम किंवदन्ती या महाकथा कहते हैं। जदीद दास्तानगोई में ‘अमीर हम्ज़ा’ की ‘दास्तान-ए-अमीर हम्ज़ा’ ख़ासी मशहूर है।
नस्र लिखने के तरीक़े
Nonfictional Prose
लिखते वक़्त आपको फ़क़त इस बात का ख़याल रखना है, कि आप जिस मौज़ूअ पर नस्र लिख रहे हैं उसके मुताल्लिक़ आपकी मा’लूमात पुख़्ता हों। आपकी तहरीर में अल्फ़ाज़ की तरतीब Natural हो और ज़बान साफ़ हो। Nonfictional prose के दाएरे में नॉवेल या अफ़्साने भी आते हैं लेकिन इस शर्त के साथ कि उनमें लिखी गई तमाम बातें सच होती हैं। मिसाल के तौर पर When Breath Becomes Air. by Paul Kalanithi एक nonfiction नॉवेल है।
Fictional Prose
लिखते वक़्त आपकी नस्र में अल्फ़ाज़ की तरतीब Natural और ज़बान साफ़ होने के साथ-साथ आप को ये भी मा’लूम होना चाहिए कि आप जिस मौज़ूअ पर कहानी या नॉवेल लिखना चाहते हैं उसके बारे में आपका ज़ेहन कितना पुख़्ता है। बाज़-दफ़आ जब हम कोई कहानी या नॉवेल लिखने बैठते हैं, तो लिखते-लिखते अपने मौज़ूअ से भटक जाते हैं और उसकी दिशा ही बदल जाती है। लिहाज़ा सबसे पहले आप अपने अफ़साने या नॉवेल का Plot तैयार कर लें कि आपकी कहानी की इब्तेदा कहाँ से होगी और उसे ख़त्म कहाँ करना है? बेहतर होगा कि आप अपने अफ़साने या नॉवेल को टुकड़ों में तोड़ कर उन्हें मुख़्तलिफ़ chapters में तब्दील कर लें। आपकी कहानी या नॉवेल में कितने किरदार होंगे और किस किरदार का तअल्लुक़ किस किरदार से होगा, वो तअल्लुक़ कब तक रहेगा, कैसे रहेगा, कहाँ ख़त्म होगा, इस बात को भी लिखने से पहले ही पुख़्ता कर लें।
बावजूद इसके अगर आपको लिखने में दुश्वारी पेश आ रही है, तो आपको फ़िल-वक़्त लिखने का इरादा छोड़ कर पढ़ने में मन लगाना होगा; अगर ऐसा हो रहा है कि आप लिख तो पा रहे हैं, लेकिन कुछ वक़्त के बा’द न तो आपको अपनी कहानी का मौज़ूअ पसन्द आ रहा है और न ही अपना लिखा हुआ तब ऐसे में आपको क्या करना चाहिए:
1– आप रोज़ लिखने के लिए 30 मिनट निकालिए और बग़ैर कुछ सोचे, बग़ैर editing के पूरी रफ़्तार के साथ अपनी कहानी लिखते जाइए। रोज़ इसी तरह से 30 मिनट लिखिए, इससे आपके लिखने की रफ़्तार में इज़ाफ़ा होगा।
2– अगर आपको लिखते- लिखते ऐसा लगने लगता है, कि आपके पास लिखने के लिए इससे बेहतर मौज़ूअ है और आप पिछले मौज़ूअ पर ध्यान यकजा नहीं कर पा रहे हैं, तो आपको कुछ दिनों के लिए लिखना बन्द कर देना चाहिए। उसके बाद अगर आप वापस फिर उसी कहानी को लिखने में दिलचस्पी रखते हों, तभी उसे लिखें वर्ना नहीं।
3– ये तय करते हुए लिखें कि आपको कितने दिनों में कितने सफ़्हे लिखने हैं। जब वो तय-शुदा सफ़्हे लिख कर तैयार हो चुके हों, तब उन्हें लगभग 20 दिनों तक बिल्कुल न पढ़ें। 20 दिनों के बा’द दोबारा पढ़ें अगर इन 20 दिनों के वक़्फ़े के बा’द भी आपको अपना लिखा हुआ उतना ही बेहतर लगता है, जितना पहले दिन लगता था, तभी उसे आगे बढ़ाएँ वर्ना दोबारा कोशिश करें।
4– एक कहानी लिखने से क़ब्ल कम-अज़-कम 500 कहानियाँ और एक नॉवेल लिखने से क़ब्ल तक़रीबन 100 नॉवेल पढ़ डालें क्यों कि इन तमाम विधियों के बा’द सबसे ज़ियादा आपके काम आपका मुतालआ ही आएगा।
नॉवेल और अफ़्साने में बुनियादी फ़र्क़
नॉवेल और अफ़्साने में बुनियादी फ़र्क़ अल्फ़ाज़ की ता’दाद तो है लेकिन इसकी कोई ख़ास पाबन्दी नहीं है। बेश्तर पब्लिशर कहानियों को 1500 से 30000 अल्फ़ाज़ में और नॉवेल को कम-अज़-कम 50000 हज़ार अल्फ़ाज़ में लिखने की हिदायत देते हैं।
अफ़्सानों में उमूमन एक ही प्लॉट होता है, एक बात होती है और वो एक ख़ास किरदार पर मुन्हसिर होती है लेकिन नॉवेल में मौजूद तमाम किरदारों की मुख़्तलिफ़ कहानियाँ भी मौजूद होती हैं। या’नी हम कह सकते हैं, कि एक नॉवेल में एक प्लॉट के अन्दर भी कई प्लॉट हो सकते हैं। नॉवेल में किरदारों और घटनाओं की ता’दाद अफ़्सानों के मुक़ाबले में ज़ियादा होती है।
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