शेर में एक लफ़्ज़ का कमाल
आज के ज़माने मे ये हुनर यानी एक, दो लफ़्ज़ों से मैयारी शायरी करना बड़े मुस्तनद और तजरबे-कार शाइरों मे ही पाया जाता है। मै चन्द मिसालों की मदद से रेख़्ता के कारईन बिल-ख़ुसूस नये लिखने वालों तक इस हुनर की तरसील करना चाहता हूँ…
अगरचे ये शाइरी क्लासिकी उर्दू शाइरी के रिवायती साँचे से बहुत मेल खाती हुई नज़र नहीं आती, लेकिन ये हम-अस्र इंसानी तज्रबात और नफ़्सियात की गहरी तहों को खंगालने में रिवायत और जिद्दत के हर टूल के सहारे से अपना काम करती है। उनकी ग़ज़ल महज़ तख़लीक़ी सलाहियतों के इज़हार का अमल नहीं बल्कि किसी नादीदा-ओ-नायाब नुक्ते की तलाश, समाजी हक़ीक़तों के बयान और इंसानी वुजूद की पेचीदा तहों को बे-नक़ाब करने का ज़रीआ है।
आज के ज़माने मे ये हुनर यानी एक, दो लफ़्ज़ों से मैयारी शायरी करना बड़े मुस्तनद और तजरबे-कार शाइरों मे ही पाया जाता है। मै चन्द मिसालों की मदद से रेख़्ता के कारईन बिल-ख़ुसूस नये लिखने वालों तक इस हुनर की तरसील करना चाहता हूँ…
इब्न-ए-इंशा की कई ग़ज़लें ऐसी हैं जिन्हें किसी बड़े फ़नकार ने अपनी ख़ुश नवाई से दवाम बख़श दिया है। जगजीत सिंह की गाई हुई उनकी ग़ज़ल ‘कल चौदहवीं की रात थी शब-भर रहा चर्चा तिरा’ आज भी हर तबक़े में इंतिहाई मक़बूल है।
तो क़िस्सा मुख़्तसर ये कि कुछ वक़्त ये दोनों यानी ‘ब-नाम’ और ‘वर्सेस’ इक अदालत में साथ रह लिए थे तो अदालत के हुक्म से एक के मानी दूसरे को दे दिये गये। बेचारा मूल-अर्थ जो की अस्ली हक़-दार था वो अदालत का मुंह तकता रह गया और उसकी जगह पर किसी और को बसा दिया गया।
Ali Sardar Jafri, the poet of love, peace, and courage, significantly graced the treasure of Urdu literature with his crowning work ‘Lucknow Ki Panch Raten’. A confluence of his travels, friendships, and acquaintance.
हमारी आम ज़बान में ख़ासतौर से दो लफ़्ज़ ‘ग़लती’ और ‘हरकत’ बहुत मक़बूल और राइज हैं पर शाएरी के हवाले से देखें तो इनका इस्तेमाल हम ग़लत तरीक़े से कर सकते हैं क्यों कि हम इन दोनों ही अल्फ़ाज़ के अस्ल तलफ़्फ़ुज़ से वाक़िफ़ नहीं हैं।
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