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Urdu zabaan

ज़बान और इश्क़ किसी तरह की पाबन्दियाँ पसन्द नहीं करते

ज़बान और इश्क़ किसी तरह की पाबन्दियाँ पसन्द नहीं करते, कितनी अजीब बात है कि लफ़्ज़ ‘मजनूँ’ पागल के अर्थ में है, क़ैस इश्क़ में पागल हुआ तो उसे मजनून या मजनूँ बोलने लगे, लेकिन जज़बा-ए-इश्क़ इस क़दर ग़ालिब और ज़ाहिर था कि क़ैस की वज्ह से इस लफ़्ज़ में रफ़ता रफ़ता इश्क़ का मफ़हूम समाता चला गया और डिक्शनरी बग़लें झाँकते रह गई।

Asraar-e-Huruuf: The Story of Be

Asraar-e-Huroof- ‘Be’ Kise Kahte Hain?

‘Be’. Written as (ب) in Urdu Rasm-ul-Khatt, and in (ब) Devanagari, it is the second letter of the Urdu alphabets (Huruf-e-Tahajji), and the twenty-third consonant of the Nagari alphabets (वर्णमाला).

Diwan aur Kulliyat ka farq

दीवान और कुल्लियात का फ़र्क़

दीवान से मुराद किसी शाइर की किसी किताब में ग़ज़लों की ता’दात से नहीं होती। दीवान शाइर की उस किताब को कहते हैं, जिसमें बा-क़ाएदा किताब की पहली ग़ज़ल की रदीफ़ का आख़िरी हर्फ़ अलिफ़ ‘अ’ (ا ) होता है और आख़िरी ग़ज़ल की रदीफ़ का आख़िरी हर्फ़ बड़ी ‘ये’ (ے) होता है।

Ghazal, Hard and Sur

ग़ज़ल की मक़बूलियत का सफ़र

मौसीक़ी को पसंद करने वाले की तादाद तब ज़ियादा बढ़नी शुरू हुई, जब इसमें ग़ज़लों को दौर शुरू हुआ | ग़ज़ल की सबसे बड़ी ख़ासियत आहंग और अरूज़ ने गुलूकारों को वो आसानी बख्शी कि कोई भी उस्ताद गुलूकार ग़ज़ल गाए बग़ैर नहीं रह सका |

Asraar-e-Huruuf: The Story of Alif

Asraar-e-Huroof: The Story of Alif

Alif echoes the sound ‘a’, as in the word ‘but’. In Devanagari, it’s written as “अ”. But to understand how monumental this little aspirant-letter is in the grand scheme of things

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