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Munawwar Rana

मुनव्वर राना का आख़िरी मुशायरा

मुनव्वर राना, जिन्होंने गुज़िश्ता रात लखनऊ के पी.जी.आई. अस्पताल में कैंसर के मूज़ी मरज़ में आख़िरी साँस ली, मौजूदा दौर में उर्दू शायरी की आबरू थे। उन्होंने बरस-हा-बरस उर्दू शायरी के दीवानों पर अपना सिक्का चलाया। मुनव्वर राना को जो मक़बूलियत और शोहरत हासिल हुई, वो उनके हम-अस्र शोरा में कम ही लोगों का मुक़द्दर हो सकी।

Rekhta Rauzan

रेख़्ता रौज़न देवनागरी लिपि में प्रकाशित होना क्यूँ ज़रूरी है?

उर्दू और हिन्दी को लेकर एक सवाल बार बार किया जाता है कि दोनों में क्या रिश्ता है और यहां तक कहा जाता है कि उर्दू मुसलमानों की ज़बान है तो सबसे पहले मैं स्पष्ट कर दूँ कि उर्दू किसी एक फ़िरक़े की ज़बान नहीं है। हमें मालूम होना चाहिए कि माहिर ए ग़ालिबयात मालिक राम रहे हैं, माहिर इक़बालियात पंडित जगन्नाथ आज़ाद रहे हैं, डॉ. गोपीचंद नारंग को पूरी अदबी दुनिया उर्दू के हवाले से जानती है। हम सभी को इल्म है कि यह दोनों ज़बानें एक दूसरे की पूरक कहलाती हैं, इस बारे में हमें यह भी मालूम होना चाहिए कि उर्दू हिन्द आर्याई ज़बान का ही नया रूप है।

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