तलत महमूद: जिसने ग़ज़ल गायकी को आसान बना दिया
ग़ज़ल गायकी में अगर अहम गुलूकारों की फ़ेहरिस्त बनाई जाए तो उसमें आपको ‛‛तलत महमूद’’ साहब का नाम भी ज़रूर नज़र आएगा। उन्हें शहंशाह-ए-ग़ज़ल भी कहा जाता है। उन्होंने ग़ज़ल गायकी को आसान बनाया। उन्होंने लफ़्ज़ों को इतनी नरमी दे दी कि मानो जैसे वो फूल हों। मीर, मोमिन, ग़ालिब, जिगर मुरादाबादी, अमीर मीनाई, ख़ुमार बाराबंकवी, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, जाँ निसार अख़्तर जैसे बड़े शाइरों की ग़ज़लों को अपनी आवाज़ से छू कर उनकी ख़ूबसूरती में इज़ाफ़ा किया। तलत साहब की आवाज़ में जब भी मैंने कोई ग़ज़ल सुनी या गाना सुना, उस वक़्त मुझे बस यही महसूस हुआ कि ये सब अल्फ़ाज़ कितने ख़ुश-क़िस्मत हैं। सच में तलत साहब ने एक एक लफ़्ज़ का मेयार ऊँचा कर दिया। पंजाबी, तेलुगु, मराठी, बंगाली, सिंधी, गुजराती, मारवाड़ी इत्यादि ज़बानों में भी बहुत से गाने गाए। तलत साहब की आवाज़ में जो असर है वो नायाब नज़र आता है। बॉलीवुड में उन्होंने गानों के साथ साथ कई ग़ज़लें भी गाईं। उनका गाया हुआ एक गाना याद आ रहा है।
फ़िल्म:- सुजाता (1959)
संगीतकार:- सचिन देव बर्मन
नग़्मा-निगार:- मजरूह सुल्तानपुरी
जलते हैं जिसके लिए, तेरी आँखों के दिए
ढूँड लाया हूँ वही गीत मैं तेरे लिए
जलते हैं जिस के लिए
दर्द बन के जो मेरे दिल में रहा ढल ना सका
जादू बन के तेरी आँखों में रुका चल ना सका
आज लाया हूँ वही गीत मैं तेरे लिये
जलते हैं जिसके लिए
‛‛तलत महमूद’’ साहब 24 फ़रवरी 1924 को लखनऊ में पैदा हुए। वो घर में छह बच्चों में से एक थे। उनके वालिद साहब का नाम मंज़ूर महमूद था। लखनऊ में उनकी बिजली के सामान की दुकान थी। छोटी उम्र से ही तलत साहब ने संगीत में दिलचस्पी दिखाई। धीरे धीरे उन्हें संगीत के रंग अपनी तरफ़ माइल करने लगे। ये चीज़ उनकी आंटी ने नोटिस की जिसके बाद वो उन्हें बड़े ग़ुलाम अली ख़ान, अब्दुल करीम ख़ाँ जैसे बड़े बड़े गुलूकारों को सुनाने के लिए ले जाने लगीं। वो सारी सारी रात जाग कर उन गुलूकारों को सुनते थे।
तलत साहब हाई स्कूल पास करने के बाद लखनऊ के मैरिस कॉलेज ऑफ़ म्यूज़िक में गए, यही कॉलेज अब भातखण्डे संगीत संस्थान विश्वविद्यालय के नाम से मशहूर है। यहाँ तक पहुँचते पहुँचते तलत साहब संगीत में काफ़ी पक्के हो गए थे। अपने पहले साल के दौरान ही उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो के लिए मीर, ग़ालिब, मोमिन जैसे मक़बूल शाइरों की ग़ज़लें गाना शुरू कर दिया। यहाँ से उनकी पहचान और बढ़ने लगी। उस वक़्त उनकी उम्र ग़ालिबन 16 या 17 साल रही होगी। इसके बाद उन्हें गाने के कई ऑफ़र्स आने लगे। एच-एम-वी कंपनी ने तलत का गाना सुना और उनसे एक गाने के लिए कॉन्ट्रैक्ट साइन किया। इतने बड़े लैवल पर ये उनका पहला गाना था, जिसके लिए उन्हें 80 रुपए दिए गए। गाना देखें।
सब दिन एक समान नहीं था
बन जाऊँगा क्या से क्या मैं
इसका तो ध्यान नहीं था
उस के गले का हार कभी था
मुझ से उस को प्यार कभी था
बसा हुआ संसार हृदय का
सब दिन तो शमशान नहीं था
सब दिन एक समान नहीं था
बन जाऊँगा क्या से क्या मैं
इसका तो ध्यान नहीं था
अपनी संगीत की शिक्षा पूरी करने के बाद तलत साहब कलकत्ता जा पहुँचे। यहाँ उन्होंने एक गीत गाया जो कि काफ़ी ज़ियादा हिट हुआ। आज भी ये सब से बड़ी ग़ैर-फ़िल्मी हिट गानों में से एक है। इससे उनकी मक़बूलियत में और इज़ाफ़ा हुआ। गाना देखें।
तस्वीर तेरी दिल मेरा बहला न सकेगी
ये तेरी तरह मुझ से तो शर्मा न सकेगी
तस्वीर तेरी …
मैं बात करूँगा तो ये ख़ामोश रहेगी
सीने से लगा लूँगा तो ये कुछ न कहेगी
आराम वो क्या देगी जो तड़पा न सकेगी
तस्वीर तेरी …
इस गाने के सुपर हिट होने के बाद कलकत्ता की सबसे बड़ी कंपनी न्यू थिएटरस ने तलत साहब को काम दिया, कलकत्ता में तलत साहब ने अपना नाम बदल कर ‛‛तपन कुमार’’ रख लिया और इसी नाम से कई बंगाली गाने गाए। न्यू थिएटरस में ही तलत को के-एल सहगल और पंकज मलिक मिले। तलत ने “राजलक्ष्मी” फ़िल्म में अभिनय किया और गाने भी गाए।
1949 में तलत साहब बम्बई चले आए। बम्बई में रह रहे कई कलाकार तलत की गायकी से वाक़िफ़ थे जिससे उन्हें थोड़ी सी कम मेहनत करनी पड़ी। संगीत निर्देशक अनिल विश्वास ने तलत की गायकी सुनकर उन्हें अपनी फ़िल्म आरज़ू (1950) में गाने का मौका दिया। गाना देखें।
फ़िल्म:- आरज़ू (1950)
संगीतकार:- अनिल विश्वास
नग़्मा-निगार:- मजरूह सुल्तानपुरी
ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहाँ कोई न हो
अपना पराया मेहरबाँ ना-मेहरबाँ कोई न हो
ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल
उल्फ़त का बदला मिल गया
वो ग़म लुटा वो दिल गया
चलना है सब से दूर दूर अब कारवाँ कोई न हो
अपना पराया मेहरबाँ ना-मेहरबाँ कोई न हो
ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहाँ कोई न हो
इस गाने की मक़बूलियत के बाद बॉलीवुड में तलत साहब की डिमांड की जाने लगी। हर संगीतकार अब उनके साथ काम करना चाहता था। फ़िल्म बाबुल (1950) में मशहूर संगीतकार नौशाद के साथ भी उन्होंने काम किया। गाना देखें।
मिलते ही आँखें दिल हुआ दीवाना किसी का
अफ़्साना मेरा बन गया, अफ़्साना किसी का
हँसते ही ना आ जाएँ कहीं, आँखों में आँसू
भरते ही छलक जाए ना, पैमाना किसी का
तलत साहब ने फ़रवरी 1951 को कलकत्ता की एक बंगाली ईसाई लड़की लतिका मल्लिक से शादी की, जिसका नाम बाद में ‛‛नसरीन’’ हुआ। 1953 में तलत साहब के बेटे ख़ालिद का जन्म हुआ और 1959 में उनकी बेटी सबीना का। तलत साहब और दिलीप कुमार की आपस मे काफ़ी अच्छी दोस्ती थी। उन्होंने ने कुछ फ़िल्मों में अदाकारी भी की। ऐसा कई बार हुआ कि जिस फ़िल्म में तलत साहब गाते थे उसी में दिलीप कुमार साहब अदाकार भी होते थे ऐसे में दोनों की जोड़ी और कामयाब होती चली गई। संगीतकार खय्याम ने फ़िल्म फ़ुटपाथ (1953) के लिए तलत साहब की आवाज़ को चुना यहाँ भी दिलीप कुमार उनके साथ थे। इसके बाद तलत साहब ने फ़िल्म बाज़ में गुरु दत्त के साथ काम किया। तलत साहब ने अब पूरे हिन्दोस्तान को अपना दीवाना बना लिया था। उन्होंने लगभग हर एक नग़्मा-निगार के साथ काम किया जिनमें मजरूह सुल्तानपुरी, साहिर लुधियानवी, हसरत जयपुरी, शकील बदायुनी, जाँ निसार अख़्तर, असद भोपाली, एस-एच बिहारी, कैफ़ी आज़मी, क़मर जलालाबादी, शैलेन्द्र शामिल हैं। इसी के साथ उन्होंने कई संगीतकारों के साथ भी काम किया जिनमें जय किशन, मदन मोहन, नौशाद, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, खय्याम, रवि, अनिल विश्वास, ओ.पी नय्यर, कल्याण जी आनंद जी, जय देव, सचिन देव बर्मन, सलील चौधरी, ग़ुलाम मोहम्मद शामिल हैं।
तलत साहब ने दर्ज़नों फ़िल्मों के लिए गीत गाए, जिनमें चंद नाम ये हैं।
01:- मिर्ज़ा ग़ालिब
02:- तितली
03:- आशियाना
04:- दाग़
05:- साक़ी
06:- आग का दरिया
07:- अलिफ़ लैला
08:- फ़रमाइश
09:- लैला मजनूँ
10:- दोस्त
11:- हम सफ़र
12:- नया घर
13:- नग़्मा
14:- शहंशाह
15:- शिकस्त
16:- देवदास
17:- इंसानियत
18:- कारवाँ
19:- मुमताज़ महल
20:- अब्दुल्ला
उन्हें कई पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है, जिनमें चंद नाम ये हैं।
1:- ग़ालिब पुरस्कार
2:- पद्मभूषण पुरस्कार
3:- नौशाद अली पुरस्कार
4:- बेगम अख़्तर पुरस्कार
9 मई 1998 को तलत साहब ने हम सभी को अलविदा कह दिया।
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