Sahir Ludhianvi and Majaz

साहिर ने मजाज़ से क्या कहा रेलवे स्टेशन पर

ऐ ग़म-ए-दुनिया तुझे क्या इल्म तेरे वास्ते
किन बहानों से तबीअ’त राह पर लाई गई

साहिर लुधियानवी को इस दुनिया से गए चालीस साल गुज़र गए हैं, मगर आप जब भी उनकी शायरी और फ़िल्मी नग़्मों की तरफ़ जाएँगे तो आपको यक़ीनन ऐसा महसूस होगा कि वो अब भी मौजूद हैं। वो अपनी शायरी और फ़िल्मी नग़्मों में ही कहीं साँसें ले रहे हैं। वो आज भी शायरी और फ़िल्मी नग़्मों में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए मिसाल बने हुए हैं। उनकी शायरी और फ़िल्मी नग़्मों की अब भी बहुत लम्बी उम्र बाक़ी है। अपनी शायरी के लिए साहिर कॉलेज के दिनों से ही काफ़ी मशहूर रहे और फिर बम्बई का आकर उन्होंने जो किया उसे उनका हर चाहने वाला बहुत अच्छी तरह जानता है। अपनी किसी बातचीत में ‛‛जावेद अख़्तर’’ साहब ने कहा था कि:

‛‛उर्दू शायरों में एक ख़ूबी होती है, उन्हें फ़ोनेटिक का बहुत ख़्याल होता है। वो कभी ऐसे लफ़्ज़ इस्तिमाल नहीं करेंगे जो कानों को खटके’’

1945 में साहिर लुधियानवी लाहौर में नौकरी कर रहे थे। उसी दौरान उनकी किताब ‛‛तल्ख़ियाँ’’ जिसमें उनकी ग़ज़लें और नज़्में थीं पहली बार मंज़र-ए-आम पर आई। साहिर लुधियानवी अपनी ज़िंदगी में किस रंज-ओ-ग़म से गुज़र रहे थे। उन्हें कितनी मुश्किलों से दिन-ब-दिन लड़ना पड़ रहा था। इसका अंदाज़ा आप उनकी किताब के नाम तल्ख़ियाँ से लगा सकते हैं। साहिर ने अपनी ज़िंदगी में कभी हार नहीं मानी इसकि सबसे अहम वजह मुझे उनकी माँ लगती हैं। उन्होंने साहिर की ज़िंदगी पर अपनी गहरी छाप छोड़ी कभी किसी तकलीफ़ के आगे झुकने नहीं दिया।

Group of Poets

सवेरा पत्रिका में साहिर ने एक मज़मून लिखा जो कि रिलीजियस फंडामेंटलिस्म के ख़िलाफ़ था। जिसकी वजह से उन पर वारंट जारी किया गया। उन्हें फ़तवे भी दिए गए। इन्हीं सब चीज़ों की वजह से उन्हें दिल्ली आना पड़ा। साहिर की ज़िन्दगी में मुसीबत ने उनका साथ यहाँ भी नहीं छोड़ा, इधर उधर दौड़ने के बाद बहुत मुश्किल से कहीं जाकर छोटी मोटी नौकरी मिली। दिल्ली में रहते हुए ही ग़ालिबन उनकी मुलाक़ात पहली बार अमृता प्रीतम से हुई।

हर क़दम मरहला-दार-ओ-सलीब आज भी है
जो कभी था वही इंसाँ का नसीब आज भी है

ये तिरी याद है या मेरी अज़ियत-कोशी
एक नश्तर सा रग-ए-जाँ के क़रीब आज भी है

जगमगाते हैं उफ़ुक़ पर ये सितारे लेकिन
रास्ता मंज़िल-ए-हस्ती का मुहीब आज भी है

Majaz

साहिर अब नौकरी से उकता गए थे उनकी तकलीफ़ें वैसी की वैसी ही बनी हुई थीं जिसकी वजह से उन्हें बम्बई की तरफ़ जाना पड़ा। मजरूह सुल्तानपुरी, शकील बदायुनी जैसे बड़े बड़े नग़्मा-निगार भी यहीं काम रहे थे। साहिर ने भी यहाँ वहाँ जाकर काम तलाशना शुरू किया और अपनी ज़िन्दगी के फ़ैसले को बम्बई पर छोड़ दिया। साहिर उस वक़्त के बेहद मक़बूल शायर मजाज़ के साथ वर्सोवा में रहते थे। दोनों काम की तलाश में यहाँ-वहाँ जाते। एक रोज़ उन्हें कोई प्रोड्यूसर साहब मिले जो कि मजाज़ के जानने वालों में से थे। आपस में बातचीत हुई तो मजाज़ ने बताया कि हम भी बम्बई में नग़्मे लिखने आएँ हैं। वो प्रोड्यूसर साहब उस वक़्त एक फ़िल्म बना रहे थे। उन्होंने दोनों को अगले दिन अपने ऑफ़िस में बुलाया और नग़्मे की सिचुएशन दी। दोनों ने रात में वो नग़्मा पूरा किया और अगले दिन ऑफ़िस गए। प्रोड्यूसर साहब मजाज़ के दोस्त थे तो उन्होंने पहले मजाज़ से ही उनका लिखा नग़्मा सुना। नग़्मा सुन कर मजाज़ को प्रोड्यूसर साहब ने बीच मे ही रोक दिया और कहा कि ‛‛ठीक है मगर वो बात नहीं है’’ ये सुनते ही मजाज़ बिल्कुल हैरत-ज़दा हो गए। इतने बड़े शायर के लिए ये बात सुनना यक़ीनन बेहद अजीब रहा होगा। इसके बाद दोनों अपने घर पहुँचे और मजाज़ ने फ़ैसला किया कि वो वापस लखनऊ जाएँगे। साहिर का कोई घर नहीं था जिस वजह से उन्हें बम्बई में ही रुकना पड़ा। अगले दिन या कुछ दिन बाद साहिर ने मजाज़ को जब ट्रैन में बैठाया तो एक बात कही। साहिर ने कहा कि ‛‛मजाज़ अगली बार जब तुम आओगे तो इस स्टेशन पर मेरी गाड़ी तुम्हारा इंतज़ार कर रही होगी’’ मगर अफ़सोस मजाज़ कभी दोबारा बम्बई न आ सके, उनका लखनऊ में निधन हो गया। कहा जाता है कि उन्हें स्ट्रोक हुआ था। साहिर जो अब अकेले रह गए थे उन्होंने काम ढूँढना शुरू किया और उन्हें जल्द ही काम भी मिल गया। ये दौर 1951-1952 का था।

अव्वल अव्वल जिस दिल ने बर्बाद किया
आख़िर आख़िर वो दिल ही काम आया है

Sahir Ludhianvi

साहिर ने यूँ तो कितने ही बेहतरीन नग़्मे लिखे होंगे मगर ये फ़ैसला करना कि उनमें से कौन सा सबसे बेहतरीन नग़्मा है यक़ीनन बेहद मुश्किल काम है। साहिर की उर्दू और हिंदी पर कितनी जबरदस्त पकड़ थी ये बात आपको उनके चंद नग़्मे सुनकर मालूम हो जाएगी। साहिर के चंद बेहतरीन नग़्मे जिन्हें आपको अपनी पूरी ज़िंदगी में एक बार तो सुनना ही चाहिए।

1:- बेबसी ये मेरा हाल-ए-ज़ार देख तो ले
फ़िल्म:- अलिफ़ लैला 1953

बेबसी ये मेरा हाल-ए-ज़ार देख तो ले
खड़ा हूँ देर से उम्मीदवार देख तो ले
ख़िज़ाँ ने लूट लिया दिल की आरज़ू का चमन
कहाँ है ऐ मेरी खोई बहार देख तो ले

2:- उन्हें खोकर दुखी दिल की दुआ से और क्या माँगूँ
फ़िल्म:- अँगारे 1954

उन्हें खोकर दुखी दिल की दुआ से और क्या माँगूँ
मैं हैरां हूँ कि आज अपनी वफ़ा से और क्या माँगूँ
मेरी बर्बादियों की दास्ताँ, उन तक पहुँच जाए
सिवा इस के मोहब्बत के ख़ुदा से और क्या माँगूँ

3:- हर वक़्त तेरे हुस्न का होता है समाँ और
फ़िल्म:- चिंगारी

हर वक़्त तेरे हुस्न का होता है समाँ और
हर वक़्त मुझे चाहिए अंदाज़-ए-बयाँ और
भरने नहीं पातीं तेरे जलवों से निगाहें
थकने नहीं पातीं तुझे लिपटा के ये बाहें

4:- चाँद मद्धम है आसमाँ चुप है
फ़िल्म:- रेलवे प्लेटफ़ार्म 1955

रोज़ की तरह आज भी तारे
सुब्ह की गर्द में न खो जाएँ
आ तेरे ग़म में जागती आँखें
कम से कम एक रात सो जाएँ

5:- हम आप की आँखों में इस दिल को बसा दें तो
फ़िल्म:- प्यासा 1957

हम आप की आँखों में इस दिल को बसा दें तो
हम मूँद के पलकों को इस दिल को सज़ा दें तो
हम आप के क़दमों पर गिर जाएँगे ग़श खा कर
इस पर भी न हम अपने आँचल की हवा दें तो

6:- फिर न कीजे मेरी गुस्ताख़ निगाही का गिला
फ़िल्म:- फिर सुबह होगी 1958

इस क़दर प्यार से देखो न हमारी जानिब
दिल अगर और मचल जाए तो मुश्किल होगी
तुम जहाँ मेरी तरफ़ देख के रुक जाओगे
वही मंज़िल मेरी तक़दीर की मंज़िल होगी

7:- तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ
फ़िल्म:- धूल का फूल 1959

तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ
वफ़ा कर रहा हूँ, वफ़ा चाहता हूँ
हसीनों से अहद-ए-वफ़ा चाहते हो
बड़े ना समझ हो ये क्या चाहते हो

8:- मैंने शायद तुम्हें पहले भी कहीं देखा है
फ़िल्म:- बरसात की रात 1960

देख कर तुम को किसी रात की याद आती है
एक ख़ामोश मुलाक़ात की याद आती है
ज़ेहन में हुस्न की ठंडक का असर जागता है
आँच देती हुई बरसात की याद आती है

9:- रात भी है भीगी-भीगी
फ़िल्म:- मुझे जीने दो 1963

तपते दिल पर यूँ गिरती है
तेरी नज़र से प्यार की शबनम
जलते हुए जंगल पर जैसे
बरखा बरसे रुक-रुक थम-थम

10:- नग़्मा-ओ-शेर की सौग़ात किसे पेश करूँ
फ़िल्म:- ग़ज़ल 1964

नग़्मा-ओ-शेर की सौग़ात किसे पेश करूँ
ये छलकते हुए जज़्बात किसे पेश करूँ
शोख़ आँखों के उजालों को लुटाऊँ किस पर
मस्त ज़ुल्फ़ों की सियाह रात किसे पेश करूँ

इन सभी नग़्मों को आप यूट्यूब पर सुन सकते हैं। साहिर लुधियानवी की मज़ीद शायरी पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

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