जब शराब पीते हुए एक मैख़ाने में उनकी मौत हो गई
मजाज़ की शाइरी किसी वाहिद मौजू के इर्द गिर्द चक्कर नहीं लगाती, बल्कि एक नौजवान की ज़िंदगी के बेश्तर पहलुओं पर बिखरी हुई है। मजाज़ की शाइरी में रूमान भी है, एक कश्मकश भी है, आह-ओ-ग़म भी है, कहीं उम्मीद है तो कहीं ना-उम्मीदी की इंतिहा नज़र आती है।