आईना-दर-आईना
उर्दू शाइरी के सब से मशहूर इस्तिआरों में एक है ‘आईना’। शायद ही कोई ऐसा शाइर रहा हो, जिसने अपने किसी शेर में, किसी नज़्म में इस का इस्तेमाल नहीं किया। लेकिन ये यूँ ही नहीं है, आईने ने शाइरों को ज़िन्दगी और एहसास-ए-वजूद का वो ज़ाविया फराहम किया, जिस में उन्हें अपनी उम्र का फ़र्क़ ही नहीं बल्कि वक़्त के साथ अपनी ज़ात और वजूद में आई तब्दीलियाँ भी दिखाई दीं। हम ये कह सकते हैं कि आईने का इस्तेमाल बस वहीं तक महदूद नहीं कि ख़ुद को देखा, बाल सँवारा और चल दिए। बल्कि इस तेज़-रौ दुनिया में ये ख़ुद पर नज़र करने का, खुद से रू ब रू होने का भी एक आसान ज़रिया है। लोग पागल न कहें तो हम वो सारे सवालात आईने से कर लें, जिसे हम किसी और से नहीं कर सकते हैं।
आईने ने शाइरों का काम बहुत आसान बनाया, इतना आसान कि उस पर हज़ारों शेर कहे गए और अब नए शोरा आईने पर शेर कहते हुए या तो नए ज़ाविए तलाश करते हैं, या इस इस्तिआरे से ही गुरेज़ करते नज़र आते हैं।
लेकिन ये बात ज़रूर है कि आईना उसी के काम आएगा, जिसके पास ‘आँखें’ हैं, जिसे मुशाहिदे का फ़न हासिल है, तभी तो ख़ुदा-ए-सुख़न मीर तक़ी मीर कहते हैं :
जिस की बात ऊपर की जा रही थी कि आईना उम्र में आए फ़र्क़ ही नहीं बल्कि ज़ात में आई तब्दीली भी बताता है, उसकी एक मिसाल शाइर शकेब जलाली कुछ ऐसे देते हैं :
क्या ये सच नहीं कि हम सभी एक दूसरे के अक्स हैं? हम सभी एक दूसरे के साथ वैसा ही बर्ताव करते हैं, जैसा हम ख़ुद के लिए उम्मीद करते हैं। आईने के सामने खड़े होकर मुस्कुराने से अक्स भी मुस्कराहट वाला मिलेगा और चेहरा ग़ुस्से में बिगाड़ने से अक्स भी ख़ुद-ब-ख़ुद बिगड़ जाएगा। शाइर जनाब इरफ़ान सिद्दीक़ी हमें आईना ऐसे दिखाते हैं कि :
ये तशरीह तो आम है, बैठ कर इस शेर को सोचा जाए तो जाने क्या-क्या मानी हाथ लगें।
आईने की एक ख़ास बात ये है कि ये चीज़ों को बिना किसी लाग-लपेट के हमारे सामने रखता है। कोई शय जैसी होती है, आईने में भी ठीक वैसी ही नज़र आती है। जबकि दुनिया ठीक इस की उल्टी है। दुनिया के बाज़ार में अगर सही क़ीमत अदा की जाए तो कई सच झूठ तले दब जाते हैं। लेकिन आईना तो जस का तस बना रहता है, ये माल ओ ज़र की फ़िक्र नहीं करता। फिर शाइर जनाब कृष्ण बिहारी नूर फ़रमाते हैं :
कभी-कभी एक आम शेर को भी आईने का इस्तिआरा बेहद दिलचस्प बना देता है। बाज़ दफ़ा शाइरों ने अपनी महबूबा के हुस्न के कमाल को बयान करने के लिए आईने का सहारा लिया। जनाब बेख़ुद देहलवी फ़रमाते हैं :
शाइर अमीर मीनाई तो अपनी महबूबा को जाने किस ख़तरे से आगाह करते हुए कहते हैं :
इसी तरह के शेर में शाइर इम्दाद इमाम असर ने अपने महबूबा की जानिब से कहा,
तो हम आईना-दर-आईना गुज़रते हुए इस जगह आ पहुँचे जहाँ से आपका सफ़र शुरू’ होता है। अब आप झाँकिए। अपने आईने में और ढूँढ निकालिए कोई मोती अपनी रूह के दरिया से!
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