Shariq Kaifi

मामूली चीज़ों को ग़ैर-मामूली बना देने वाला शाइर

अगरचे ये शाइरी क्लासिकी उर्दू शाइरी के रिवायती साँचे से बहुत मेल खाती हुई नज़र नहीं आती, लेकिन ये हम-अस्र इंसानी तज्रबात और नफ़्सियात की गहरी तहों को खंगालने में रिवायत और जिद्दत के हर टूल के सहारे से अपना काम करती है। उनकी ग़ज़ल महज़ तख़लीक़ी सलाहियतों के इज़हार का अमल नहीं बल्कि किसी नादीदा-ओ-नायाब नुक्ते की तलाश, समाजी हक़ीक़तों के बयान और इंसानी वुजूद की पेचीदा तहों को बे-नक़ाब करने का ज़रीआ है।

Nazeer Akbarabadi

नज़ीर अकबराबादी: देसी मिट्टी की ख़ुश्बू

वली मोहम्मद नाम के गुमनाम शाइर अवाम के गीत गा रहे थे। कभी ककड़ी खीरा बेचने वाले के लिए नज़्म लिख देते तो कभी लड्डू बेचने वाले के लिए इस से ये हुआ कि लोग इन्हें बाज़ारी शाइर कहने लगे। पूरा नाम शेख़ वली मोहम्मद था लेकिन नज़ीर अकबराबादी के नाम से शोहरत पायी । इनका जन्म दिल्ली में 1735 के आसपास शेख़ मुहम्मद फ़ारूक़ के घर हुआ।

Dilip Kumar

जब दिलीप कुमार ने एक लफ़्ज़ में अपनी ऐक्टिंग का राज़ बताया

टॉम अल्टर साहब एक जगह फ़रमाते हैं कि एफ़-टी-आई-आई से अदाकारी की डिग्री हासिल करने के बाद जब उनकी मुलाक़ात दिलीप साहब से हुई, तो उन्होंने दिलीप साहब से पूछा, “दिलीप साहब अच्छी एक्टिंग का राज़ क्या है ?” दिलीप साहब ने उन्हें एक बेहद सादा सा जवाब दिया था, “शेर ओ शायरी”|

Waqt, pal, paher

وقت کے پرانے پیمانے

وقت کے ساتھ ساتھ چیزوں کے پیمانے بھی بدلتے رہتے ہیں۔ ان تبدیلیوں کے پس پشت ضرورت اور حالات کی تبدیلیاں کارفرما ہوتی ہیں۔ تبدیلی وقت کا خاصہ ہے اور اس وصف سے خود وقت بھی مستثنیٰ نہیں رہا ہے۔چنانچہ وقت کے ساتھ ساتھ وقت ناپنے کے پیمانوں میں بھی بدلاؤ آتا رہا ہے۔ وقت کو ناپنے کی انسان کو سب سے پہلےکب ضرورت پڑی اس بارے میں وثوق سے کچھ نہیں کہا جاسکتا۔

Jagjit Singh

जगजीत सिंह: एक याद

ग़ज़ल गायकों में वैसे तो बहुत बड़े बड़े नाम हुए हैं, लेकिन इसको एक नया आहंग देने में जगजीत सिंह का बेहद अहम योगदान है। ग़ज़ल गायकी में पहली बार गिटार, वायलिन जैसे साज़ों का इस्तिमाल करके एक नया रूप पैदा करना ये सिर्फ़ जगजीत सिंह के बस की ही बात थी। उन्होंने वाक़ई उर्दू शायरी और उर्दू ग़ज़ल को वो मक़ाम दिया है जो उसे मिलना चाहिए था। उनके और उर्दू के चाहने वाले ये बात कभी नहीं भूल सकते।

Daagh Dehlvi

शायरी से सम्बंधित ये ज़रूरी बातें सब को जानना चाहिए

मिर्ज़ा दाग़ देहलवी कहते हैं कि आगे मैं आपको जो भी बताने-समझाने जा रहा हूँ उन तमाम बातों को ग़ौर से सुन लें क्यों कि इन सब बातों को जाने-समझे बग़ैर आप अच्छे शे’र नहीं कह पाएँगे। आपका बयान और ज़बान यूँही सी रहेगी उसमें कोई ख़ूब-सूरती, नया-पन और तख़्लीक़ी सलाहियत पैदा नहीं हो सकेगी।

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